नई दिल्ली:
जनता दल (यू) के अध्यक्ष शरद यादव ने पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम पर उनकी इन टिप्पणियों के लिए हमला किया कि 2004 में वह सोनिया गांधी के खिलाफ जबर्दस्त लॉबिंग के बावजूद उन्हें प्रधानमंत्री नियुक्त करने को तैयार थे।
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के संयोजक शरद यादव ने कहा, उनकी (कलाम की) अन्तरात्मा देर से जगी है। यह खुद के अभ्युदर के लिए है। हम उनका बहुत सम्मान करते थे, लेकिन इस तरह की टिप्पणियों के बाद अब बहुत दुखी हैं।
राजग के कार्यकाल में राष्ट्रपति बने कलाम के खिलाफ जेडीयू प्रमुख की टिप्पणी पूर्व राष्ट्रपति द्वारा किताब में यह खुलासा किए जाने के बाद आई है कि सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे को लेकर कुछ हलकों में जबरदस्त राजनीतिक विरोध के बावजूद वह 2004 में उन्हें बिना किसी झिझक के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ दिलाने के लिए तैयार थे।
अपनी पुस्तक ‘टर्निंग प्वाइंट्स’ में कलाम ने यह भी कहा है कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी 2002 के दंगों के बाद उनकी गुजरात यात्रा के पक्ष में नहीं थे। कलाम की इस टिप्पणी पर कांग्रेस को वाजपेयी की 'राजधर्म' वाली नसीहत पर सवाल उठाने का मौका मिल गया। यह सलाह वाजपेयी ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को दी थी।
शरद ने यह भी पूछा कि कलाम आठ साल तक चुप क्यों रहे, जब राजनीतिक जगत में अफवाहों और चर्चाओं का दौर जारी था। शरद ने कहा, संवैधानिक प्रमुख को सच तभी बोलना चाहिए, जब इसकी जरूरत हो। अन्तरात्मा की आवाज पर बोलने का तब कोई मतलब नहीं है, जब उससे आपका हितसाधन हो। गांधी जी अपनी अन्तरात्मा के अनुरूप तत्काल बोला करते थे। उन्होंने (कलाम ने) उस समय अपनी अन्तरात्मा (की आवाज) को क्यों मार दिया।
उन्होंने कहा, सच तभी बोलना चाहिए, जब इसकी आवश्यकता हो। यदि यह तब बोला जाता है, जब इसकी जरूरत नहीं हो, तो यह दिखावा होता है। राष्ट्रपति भवन में बैठे व्यक्ति का दायित्व है कि वह इन हालात में सच बोले और सच बोलने के लिए किसी अवसर का इंतजार नहीं करे।
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के संयोजक शरद यादव ने कहा, उनकी (कलाम की) अन्तरात्मा देर से जगी है। यह खुद के अभ्युदर के लिए है। हम उनका बहुत सम्मान करते थे, लेकिन इस तरह की टिप्पणियों के बाद अब बहुत दुखी हैं।
राजग के कार्यकाल में राष्ट्रपति बने कलाम के खिलाफ जेडीयू प्रमुख की टिप्पणी पूर्व राष्ट्रपति द्वारा किताब में यह खुलासा किए जाने के बाद आई है कि सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे को लेकर कुछ हलकों में जबरदस्त राजनीतिक विरोध के बावजूद वह 2004 में उन्हें बिना किसी झिझक के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ दिलाने के लिए तैयार थे।
अपनी पुस्तक ‘टर्निंग प्वाइंट्स’ में कलाम ने यह भी कहा है कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी 2002 के दंगों के बाद उनकी गुजरात यात्रा के पक्ष में नहीं थे। कलाम की इस टिप्पणी पर कांग्रेस को वाजपेयी की 'राजधर्म' वाली नसीहत पर सवाल उठाने का मौका मिल गया। यह सलाह वाजपेयी ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को दी थी।
शरद ने यह भी पूछा कि कलाम आठ साल तक चुप क्यों रहे, जब राजनीतिक जगत में अफवाहों और चर्चाओं का दौर जारी था। शरद ने कहा, संवैधानिक प्रमुख को सच तभी बोलना चाहिए, जब इसकी जरूरत हो। अन्तरात्मा की आवाज पर बोलने का तब कोई मतलब नहीं है, जब उससे आपका हितसाधन हो। गांधी जी अपनी अन्तरात्मा के अनुरूप तत्काल बोला करते थे। उन्होंने (कलाम ने) उस समय अपनी अन्तरात्मा (की आवाज) को क्यों मार दिया।
उन्होंने कहा, सच तभी बोलना चाहिए, जब इसकी आवश्यकता हो। यदि यह तब बोला जाता है, जब इसकी जरूरत नहीं हो, तो यह दिखावा होता है। राष्ट्रपति भवन में बैठे व्यक्ति का दायित्व है कि वह इन हालात में सच बोले और सच बोलने के लिए किसी अवसर का इंतजार नहीं करे।
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