सातवां वेतन आयोग लागू होने से केंद्रीय कर्मचारियों को होगा फायदा
नई दिल्ली:
भारत सरकार ने अपने अधीन काम करने वाले करीब 43 लाख कर्मचारी और करीब 57 लाख पेंशनधारियों के लिए सातवां वेतन आयोग 1-1-2016 से लागू कर दिया है. अगस्त महीने की अंतिम तारीख को इन लाखों कर्मचारियों और पेंशनधारियों के खाते में बढ़ा हुआ वेतन भी आ गया है. आधे से ज्यादा कर्मचारियों के खाते में एरियर भी आ गया है. वहीं, वेतन आयोग की सिफारिशों से जुड़ी कई विसंगतियों (अनोमली) और शिकायतों को दूर करने के लिए सरकार की ओर से कहा गया था कि हर मुद्दे का हल समितियां बनाकर किया जाएगा.
अब तक 7वें वेतन आयोग की सिफारिशों को लेकर कर्मचारियों की नाराजगी के बाद उठे सवालों के समाधान के लिए सरकार की ओर से तीन समितियों के गठन का ऐलान किया गया था. जानकारी के अनुसार, सरकार की ओर से सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट में अलाउंस को लेकर हुए विवाद से जुड़ी एक समिति, दूसरी समिति पेंशन को लेकर और तीसरी समिति वेतनमान में कथित विसंगतियों को लेकर बनाई जानी थी.
तीनों अहम समितियों का हुआ गठन
ऑफिशियल नोटिफिकेशन के बाद तीनों समितियों का गठन कर दिया गया है और विवादों पर सरकार और कर्मचारी संगठनों के नेताओं के बीच बातचीत शुरू हो गई है. कर्मचारी संगठन के नेताओं में पेंशन को लेकर आयोग की सिफारिशों में कुछ आपत्तियां जताई हैं और उनको सरकार के समक्ष समिति की बैठक में उठाया भी है. इन सभी समितियों को अपनी रिपोर्ट 4 महीने के भीतर देनी है.
सबसे अहम समिति विसंगतियों को लेकर बनाई गई है. इस एनोमली समिति का नाम दिया गया है. इसी समिति के पास न्यूनतम वेतनमान का मुद्दा भी है. चतुर्थ श्रेणियों के कर्मचारियों के न्यूनतम वेतनमान का मुद्दा भी इस तीसरी समिति का पास है. यही समिति न्यूनतम वेतनमान को बढ़ाने की मांग करने वाले कर्मचारी संगठनों से बात कर रही है. सूत्रों के अनुसार गुरुवार को इस समिति ने पहली बार मुद्दे पर यूनियन नेताओं से बात की है. (सातवां वेतन आयोग : जानिए किस-किस विभाग में मिला बढ़ा वेतन, नहीं मिला एरियर)
वित्त सचिव की अध्यक्षता में इस समिति का गठन किया गया है. समिति में छह मंत्रालयों के सचिव शामिल हैं.
कर्मचारी यूनियनों के संयुक्त संगठन एनजेसीए के संयोजक और ऑल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन के सेक्रेटरी जनरल शिव गोपाल मिश्रा ने एनडीटीवी को बताया कि समिति के साथ बैठक में हमने न्यूनतम वेतनमान का मुद्दा उठाया है. साथ ही उन्होंने बताया कि संगठन ने मांग की है कि एचआरए को पुराने फॉर्मूले के आधार पर तय किया जाए. संगठन ने सचिवों की समिति से कहा है कि ट्रांसपोर्ट अलाउंस को महंगाई के हिसाब से रेश्नलाइज किया जाये. संगठन ने सरकार से यह मांग की है कि बच्चों की शिक्षा के लिए दिया जाने वाले अलाउंट को कम से कम 3000 रुपये रखा जाए. संगठन ने मेडिकल अलाउंस की रकम भी 2000 रुपये करने की मांग की है. संगठन ने सरकार से यह भी कहा है कि कई अलाउंस जो सातवें वेतन आयोग ने समाप्त किए हैं उनपर पुनर्विचार किया जाए. संगठन ने सरकार से कहा है कि इन सभी अलाउंस को आयकर फ्री किया जाए. और यह मांगे 1-1-2016 लागू की जाएं.
न्यूनतम वेतनमान का मुद्दा क्यों है पेचीदा
कई ऐसे सवाल हैं, जिनके जवाब का सभी को इंतजार है. सभी श्रेणियों के कर्मचारियों के मन में वास्तविक बढ़ोतरी को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है. इस सबके पीछे तृतीय और चतुर्थ श्रेणियों के कर्मचारियों की हड़ताल की धमकी के बाद सरकार द्वारा न्यूनतम वेतनमान बढ़ाने की मांग को स्वीकार कर करीब 33 लाख कर्मचारियों को लिखित में आश्वासन देना है. सरकार ने इसके लिए एक समिति के गठन की बात भी कही जो चार महीनों में सभी संबंधित पक्षों से बात करके अपनी रिपोर्ट देगी. इस रिपोर्ट के आधार पर सरकार न्यूनतम वेतनमान को बढ़ाने का फैसला लेगी.
न्यूनतम वेतनमान बढ़ाने की मांग के चलते अब क्लास वन और क्लास टू श्रेणी के केंद्रीय कर्मचारियों में भी इस वेतन आयोग की सिफारिशों को लेकर हुए वास्तविक बढ़त को लेकर तमाम प्रश्न हैं. सभी लोगों को अब इस बात का इंतजार है कि सरकार कौन से फॉर्मूले के तहत यह मांग स्वीकार करेगी. सभी अधिकारियों को अब इस बात का बेसब्री से इंतजार है. ऐसे में कई अधिकारियों का कहना है कि हो सकता है कि न्यूनतम वेतन बढ़ाए जाने की स्थिति में इसका असर नीचे से लेकर ऊपर के सभी वर्गों के वेतनमान में होगा. कुछ अधिकारी यह उम्मीद लगाए बैठे हैं कि हो सकता है कि इससे वेतन आयोग की सिफारिशों से ज्यादा बढ़ोतरी हो जाए. ऐसा होने की स्थिति में सरकार पर केंद्रीय कर्मचारियों को वेतन देने के मद में काफी फंड की व्यवस्था करनी पड़ेगी और इससे सरकार पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा.
वहीं, कुछ अन्य अधिकारियों का यह भी मानना है कि सरकार न्यूनतम वेतनमान बढ़ाए जाने की स्थिति में कोई ऐसा रास्ता निकाल लाए जिससे सरकार पर वेतन देने को लेकर कुछ कम बोझ पड़े. कुछ लोगों का कहना है कि सरकार न्यूनतम वेतनमान में ज्यादा बढ़ोतरी न करते हुए दो-या तीन इंक्रीमेंट सीधे लागू कर दे जिससे न्यूनतम वेतन अपने आप में बढ़ जाएगा और सरकार को नीचे की श्रेणी के कर्मचारियों को ही ज्यादा वेतन देकर कम खर्चे में एक रास्ता मिल जाएगा. सवाल उठता है कि क्या हड़ताल पर जाने की धमकी देने वाले कर्मचारी संगठन और नेता किस बात को स्वीकार करेंगे.
अब तक 7वें वेतन आयोग की सिफारिशों को लेकर कर्मचारियों की नाराजगी के बाद उठे सवालों के समाधान के लिए सरकार की ओर से तीन समितियों के गठन का ऐलान किया गया था. जानकारी के अनुसार, सरकार की ओर से सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट में अलाउंस को लेकर हुए विवाद से जुड़ी एक समिति, दूसरी समिति पेंशन को लेकर और तीसरी समिति वेतनमान में कथित विसंगतियों को लेकर बनाई जानी थी.
तीनों अहम समितियों का हुआ गठन
ऑफिशियल नोटिफिकेशन के बाद तीनों समितियों का गठन कर दिया गया है और विवादों पर सरकार और कर्मचारी संगठनों के नेताओं के बीच बातचीत शुरू हो गई है. कर्मचारी संगठन के नेताओं में पेंशन को लेकर आयोग की सिफारिशों में कुछ आपत्तियां जताई हैं और उनको सरकार के समक्ष समिति की बैठक में उठाया भी है. इन सभी समितियों को अपनी रिपोर्ट 4 महीने के भीतर देनी है.
सबसे अहम समिति विसंगतियों को लेकर बनाई गई है. इस एनोमली समिति का नाम दिया गया है. इसी समिति के पास न्यूनतम वेतनमान का मुद्दा भी है. चतुर्थ श्रेणियों के कर्मचारियों के न्यूनतम वेतनमान का मुद्दा भी इस तीसरी समिति का पास है. यही समिति न्यूनतम वेतनमान को बढ़ाने की मांग करने वाले कर्मचारी संगठनों से बात कर रही है. सूत्रों के अनुसार गुरुवार को इस समिति ने पहली बार मुद्दे पर यूनियन नेताओं से बात की है. (सातवां वेतन आयोग : जानिए किस-किस विभाग में मिला बढ़ा वेतन, नहीं मिला एरियर)
वित्त सचिव की अध्यक्षता में इस समिति का गठन किया गया है. समिति में छह मंत्रालयों के सचिव शामिल हैं.
कर्मचारी यूनियनों के संयुक्त संगठन एनजेसीए के संयोजक और ऑल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन के सेक्रेटरी जनरल शिव गोपाल मिश्रा ने एनडीटीवी को बताया कि समिति के साथ बैठक में हमने न्यूनतम वेतनमान का मुद्दा उठाया है. साथ ही उन्होंने बताया कि संगठन ने मांग की है कि एचआरए को पुराने फॉर्मूले के आधार पर तय किया जाए. संगठन ने सचिवों की समिति से कहा है कि ट्रांसपोर्ट अलाउंस को महंगाई के हिसाब से रेश्नलाइज किया जाये. संगठन ने सरकार से यह मांग की है कि बच्चों की शिक्षा के लिए दिया जाने वाले अलाउंट को कम से कम 3000 रुपये रखा जाए. संगठन ने मेडिकल अलाउंस की रकम भी 2000 रुपये करने की मांग की है. संगठन ने सरकार से यह भी कहा है कि कई अलाउंस जो सातवें वेतन आयोग ने समाप्त किए हैं उनपर पुनर्विचार किया जाए. संगठन ने सरकार से कहा है कि इन सभी अलाउंस को आयकर फ्री किया जाए. और यह मांगे 1-1-2016 लागू की जाएं.
न्यूनतम वेतनमान का मुद्दा क्यों है पेचीदा
कई ऐसे सवाल हैं, जिनके जवाब का सभी को इंतजार है. सभी श्रेणियों के कर्मचारियों के मन में वास्तविक बढ़ोतरी को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है. इस सबके पीछे तृतीय और चतुर्थ श्रेणियों के कर्मचारियों की हड़ताल की धमकी के बाद सरकार द्वारा न्यूनतम वेतनमान बढ़ाने की मांग को स्वीकार कर करीब 33 लाख कर्मचारियों को लिखित में आश्वासन देना है. सरकार ने इसके लिए एक समिति के गठन की बात भी कही जो चार महीनों में सभी संबंधित पक्षों से बात करके अपनी रिपोर्ट देगी. इस रिपोर्ट के आधार पर सरकार न्यूनतम वेतनमान को बढ़ाने का फैसला लेगी.
न्यूनतम वेतनमान बढ़ाने की मांग के चलते अब क्लास वन और क्लास टू श्रेणी के केंद्रीय कर्मचारियों में भी इस वेतन आयोग की सिफारिशों को लेकर हुए वास्तविक बढ़त को लेकर तमाम प्रश्न हैं. सभी लोगों को अब इस बात का इंतजार है कि सरकार कौन से फॉर्मूले के तहत यह मांग स्वीकार करेगी. सभी अधिकारियों को अब इस बात का बेसब्री से इंतजार है. ऐसे में कई अधिकारियों का कहना है कि हो सकता है कि न्यूनतम वेतन बढ़ाए जाने की स्थिति में इसका असर नीचे से लेकर ऊपर के सभी वर्गों के वेतनमान में होगा. कुछ अधिकारी यह उम्मीद लगाए बैठे हैं कि हो सकता है कि इससे वेतन आयोग की सिफारिशों से ज्यादा बढ़ोतरी हो जाए. ऐसा होने की स्थिति में सरकार पर केंद्रीय कर्मचारियों को वेतन देने के मद में काफी फंड की व्यवस्था करनी पड़ेगी और इससे सरकार पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा.
वहीं, कुछ अन्य अधिकारियों का यह भी मानना है कि सरकार न्यूनतम वेतनमान बढ़ाए जाने की स्थिति में कोई ऐसा रास्ता निकाल लाए जिससे सरकार पर वेतन देने को लेकर कुछ कम बोझ पड़े. कुछ लोगों का कहना है कि सरकार न्यूनतम वेतनमान में ज्यादा बढ़ोतरी न करते हुए दो-या तीन इंक्रीमेंट सीधे लागू कर दे जिससे न्यूनतम वेतन अपने आप में बढ़ जाएगा और सरकार को नीचे की श्रेणी के कर्मचारियों को ही ज्यादा वेतन देकर कम खर्चे में एक रास्ता मिल जाएगा. सवाल उठता है कि क्या हड़ताल पर जाने की धमकी देने वाले कर्मचारी संगठन और नेता किस बात को स्वीकार करेंगे.
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