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This Article is From Feb 02, 2012

2-जी : 122 लाइसेंस रद्द, चिदंबरम की जांच का फैसला निचली अदालत पर

नई दिल्ली: 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में गृहमंत्री पी चिदम्बरम को बड़ी राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ सीबीआई जांच करने या न करने का फैसला निचली अदालत (सुनवाई अदालत) पर छोड़ दिया है, और सुनवाई अदालत को निर्देश दिया है कि वह गृहमंत्री के बारे में दो सप्ताह के भीतर फैसला करे। इसके अलावा एक अन्य अहम फैसले में कोर्ट ने 2-जी से जुड़े 122 लाइसेंस भी रद्द कर दिए हैं, और कहा है कि लाइसेंस मनमाने और असंवैधानिक तरीके से आवंटित किए गए। सुप्रीम कोर्ट ने ट्राई से भी कहा है कि कि वह 2-जी लाइसेंस आवंटन के लिए ताजा सिफारिशें दे, और स्पेक्ट्रम आवंटन चार महीने के भीतर नीलामी के आधार पर किए जाएं। इसके अलावा मामले में सीबीआई जांच की निगरानी के लिए एसआईटी के गठन की मांग करने वाली प्रशांत भूषण की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है, और सीबीआई से जांच पर स्थिति रिपोर्ट मुख्य सतर्कता आयुक्त को देने के लिए कहा गया है।
कोर्ट ने छह टेलीकॉम कंपनियों पर भी जुर्माना लगाया है। कंपनियों को यह जुर्माना 4 महीने के भीतर देना होगा। गौरतलब है कि जनता पार्टी नेता सुब्रह्मण्यम स्वामीने चिदम्बरम को पूर्व टॉलीकॉम मंत्री ए राजा के बराबर जिम्मेदार मानते हुए उनकी भूमिका की सीबीआई जांच कराने की मांग की थी। स्वामी का दावा था कि स्पेक्ट्रम के दाम और उसे बांटने के बारे में सारे फैसले राजा और चिदम्बरम ने मिलकर लिए, और चिदम्बरम चाहते तो सरकार को नुकसान से बचा सकते थे। इन आरोपों पर सरकार ने भी हथियार नहीं डाले, और स्वामी के दावों का सुप्रीम कोर्ट में पूरी तरह विरोध किया।

केंद्र सरकार ने कोर्ट में कहा कि निचली अदालत मामले की सुनवाई कर रही है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट को यह मामला नहीं सुनना चाहिए। सरकारी एजेंसियों ने भी स्वामी के दावों को खोखला बताया। सीबीआई ने चिदम्बरम को क्लीन चिट देते हुए कहा कि सारे दस्तावेजों को परखा गया है और चिदम्बरम के खिलाफ कुछ नहीं मिला है।

लेकिन इसके बावजूद चिदम्बरम की दिक्कतें कम नहीं हुईं, और पिछले साल अक्टूबर में वित्त मंत्रालय का एक नोट सामने आया, जिसमें जिक्र था कि चिदम्बरम चाहते तो 2-जी स्पेक्ट्रम के लाइसेंस का आवंटन रुकवा सकते थे। इसके बाद सरकार बैकफुट पर दिखने लगी, और विपक्ष संसद के अंदर और बाहर हंगामा करता रहा।

सीबीआई के पास भी मामले में चिदम्बरम की भूमिका को लेकर अपने तर्क हैं, और जांच एजेंसी तत्कालीन वित्त सचिव डी सुब्बाराव के बयान का इस्तेमाल कर रही है, जिसमें उन्होंने कहा था कि 'पहले आओ पहले पाओ' का विचार पी चिदम्बरम को पसंद नहीं था, लेकिन तत्कालीन टेलीकॉम मंत्री ए राजा ने बैठक स्थगित कर दी। इसके अलावा ए राजा के खिलाफ लिखा गया चिदम्बरम का खत भी सीबीआई के पास है।

जबकि जनता पार्टी नेता सुब्रमण्यम स्वामी पूरे मामले में गृहमंत्री पी चिदम्बरम को सह-आरोपी बनाकर सीबीआई से जांच करवाना चाहते हैं। उनका आरोप है कि गृह मंत्रालय के तहत आने वाली जांच एजेंसियां चिदम्बरम को बचा रही हैं। स्वामी चाहते हैं कि वर्ष 2008 में जब पी चिदम्बरम वित्तमंत्री थे, उस दौरान उनकी भूमिका की जांच करवाई जाए, क्योंकि उसी दौरान 2-जी स्पेक्ट्रम के लिए दाम तय किए गए थे। स्पेक्ट्रम लाइसेंस के लिए एंट्री फीस वर्ष 2001 वाली रखी गई, जबकि इस दौरान मोबाइल इस्तेमाल करने वाले लोगों की तादाद तकरीबन सौ गुना बढ़ चुकी थी।

स्वामी का आरोप है कि चिदम्बरम ने स्पेक्ट्रम की नीलामी पर ज़ोर नहीं दिया और एंट्री फीस बढ़ाने की भी मांग नहीं की, वरना सरकार को घाटा न होता। चिदम्बरम ने घोटाले के कथित मास्टरमाइंड ए राजा को भी नहीं रोका और स्वान और यूनीटेक को अपना हिस्सा एतिसलात और यूनीनॉर को बेचने के लिए हरी झंडी दी, जिन्होंने लाइसेंस हासिल करने के लिए जितना पैसा दिया था, उससे कहीं ज़्यादा में उसे बेचा। इस बात को छिपाया गया कि एतिसलात और यूनीनॉर भारत में काली सूची में हैं। लाइसेंस दी जाने वाली कंपनियों में यूनिटेक वायरलेस, एस-टेल, सिस्टेमा श्याम, स्वान टेलीकॉम, डाटाकॉम सर्विसेज़, लूप टेलीकॉम, टाटा टेलीसर्विसेज़, स्पाइस कम्युनिकेशन्स तथा आइडिया सेल्युलर भी शामिल हैं।

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