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This Article is From Jul 19, 2016

'पर्यावरण के नाम पर धार्मिक कार्यक्रमों पर रोक नहीं लगायी जा सकती'

'पर्यावरण के नाम पर धार्मिक कार्यक्रमों पर रोक नहीं लगायी जा सकती'
नई दिल्ली: राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने मंगलवार को कुछ लोगों को उनकी यह दलील रखने का मौका दिया कि यमुना के किनारे धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन को पर्यावरण कानूनों के दायरे में लाकर उन पर रोक नहीं लगाई जा सकती।

अधिकरण ने उन्हें मामले में सुनवाई की मंजूरी दी। मामला इस साल मार्च में श्रीश्री रविशंकर के आर्ट ऑफ लिविंग (एओएल) द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम के आयोजन से कथित रूप से नदी के डूब क्षेत्र को पहुंची क्षति को लेकर एनजीटी द्वारा की जा रही जांच से जुड़ा है।

एनजीटी के प्रमुख स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ के सामने याचिका आई थी, जिसपर दस अगस्त को सुनवाई तय की गई।

एनजीटी ने नौ मार्च को तीन दिन के 'विश्व सांस्कृतिक उत्सव' के आयोजन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। उत्सव का आयोजन 11 से 13 मार्च के बीच हुआ था। हालांकि एनजीटी ने उससे यमुना की जैवविविधता और जलीय जीवन को क्षति पहुंचाने के लिए पांच करोड़ का मुआवजा देने को कहा था।

प्रांजय चौधरी, अनिल कपूर और आनंद माथुर द्वारा दायर याचिका में कहा गया कि यह अवधारणा आधारहीन है कि नदी के मैदानों में उत्सवों और दूसरे धार्मिक एवं सांस्कृतिक सभाओं से जलाशय प्रदूषित हो रहे हैं।

उनकी तरफ से पेश हुए वकील अनिरुद्ध शर्मा ने कहा कि भारत का संविधान लोगों को विश्व सांस्कृतिक उत्सव जैसे कार्यक्रमों के आयोजन की मंजूरी देता है और किसी भी तरह की रोक का मतलब उन्हें इन अधिकारों से वंचित रखना होगा।

वकील ने दावा किया कि अधिकारियों ने डूब क्षेत्रों में निर्माण को लेकर आंख मूंद रखी है और ओखला में यमुना नदी के किनारे और नदी तट की दूसरी जगहों के निरीक्षण की मांग की। उन्होंने इन इलाकों में इमारतों के निर्माण के संबंध में एक विस्तृत रिपोर्ट भी सौंपी।

(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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