पंजों के फर को पैराशूट की तरह इस्तेमाल करके उड़ने वाली दुर्लभ गिलहरी उत्तरकाशी के गंगोत्री नेशनल पार्क में देखी गई है. उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र के सर्वेक्षण में प्रदेश के 13 फारेस्ट डिवीजनों में से 18 जगहों पर यह गिलहरी देखी गई है, जबकि IUCN की रेड लिस्ट में वूली गिलहरी 70 साल पहले विलुप्त मान ली गई थी. हालांकि देहरादून वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट के साइटिंस्ट ने भागीरथ घाटी में इसके होने की बात कही है और इसके दुर्लभ फोटो भी मिले हैं.
यह गिलहरी ज्यादातर ओक, देवदार और शीशम के पेड़ों पर अपने घोंसले बनाती हैं. सुनहरे, भूरे और स्याह रंग में उड़न गिलहरियां देखी गई हैं. कोटद्वार के लैंसडोन में 30-50 सेंटीमीटर लंबी उड़न गिलहरी भी देखी गई है. गले पर धारी होने के कारण स्थानीय लोग पट्टा बाघ भी इनको कहते हैं. पहले इन गिलहरियां की तादात ज्यादा थी लेकिन कटते जंगल और ग्लोबल वार्मिंग के चलते इनकी तादात कम होने लगी है. अब ये वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट के शेड्यूल-2 में दर्ज हैं.
अपने पंजों के फर को पैराशूट की तरह इस्तेमाल करके ये 400 से 500 मीटर मीटर तक ग्लाइड कर सकती हैं. इन गिलहरियों पर शोध करने वाले ज्योति प्रकाश बताते हैं कि 10 से 12 दिन तक जंगल में इनका घोंसला खोजने में लग गए. फिर 7 से 8 दिन लगातार कैमरा ट्रैप लगाने के बाद उड़न गिलहरी की कुछ फोटो और वीडियो मिल पाए हैं.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं