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This Article is From Jul 29, 2020

राजस्थान का मामला फिर SC में, स्पीकर ने हाईकोर्ट के पायलट खेमे पर कार्रवाई रोकने के फैसले को दी चुनौती

राजस्थान विधानसभा के स्पीकर ने हाईकोर्ट के 19 विधायकों की अयोग्यता पर फैसला लेने पर रोक लगाने को चुनौती दी

राजस्थान का मामला फिर SC में, स्पीकर ने हाईकोर्ट के पायलट खेमे पर कार्रवाई रोकने के फैसले को दी चुनौती
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत.
नई दिल्ली:

राजस्थान (Rajasthan) की राजनीतिक उठापटक का मामला फिर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) पहुंच गया है. राजस्थान विधानसभा (Rajasthan Assembly) के स्पीकर ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है. उन्होंने 24 जुलाई के राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है. याचिका में हाईकोर्ट के 19 विधायकों की अयोग्यता पर फैसला लेने पर रोक लगाने को चुनौती दी गई है.

याचिका में कहा गया है कि हाईकोर्ट को सुप्रीम कोर्ट के किहोतो फैसले के मुताबिक अनुशासनहीनता से रोका जाए. याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट को यह सुनिश्चित करना होगा कि हाईकोर्ट किहोतो मामले में शीर्ष अदालत द्वारा तैयार की गई लक्ष्मण रेखा को पार न करे. जिसमें लंबित अयोग्य कार्यवाही में न्यायिक हस्तक्षेप को निर्णायक रूप से रोका गया है.

स्पीकर ने अयोग्य ठहराए जाने के फैसले पर रोक लगाने के हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की मांग की है. स्पीकर ने राजस्थान हाईकोर्ट की आगे की कार्यवाही पर भी रोक की मांग की है. याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ द्वारा तय किए गए मुद्दों को फिर से खोलकर उच्च न्यायालय ने घोर न्यायिक अनुशासनहीनता बरती. सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर हाईकोर्ट फैसला नहीं सुना सकता.

याचिका में कहा गया है कि उच्च न्यायालय के पास दसवीं अनुसूची के पैरा 2 (1) (ए) की वैधता तय करने का कोई अधिकार नहीं है. पार्टी की आलोचना अयोग्यता के लिए एक आधार है जो स्पीकर को तय करना है. लोकतांत्रिक असहमति या फ्लोर क्रॉसिंग या दलबदल के लिए विधायकों के आचरण का फैसला स्पीकर को करना होता है और उच्च न्यायालय द्वारा तथ्य खोजने पर रोक लगाना अनुचित है.

स्पीकर ने कहा है कि राजस्थान उच्च न्यायालय ने अयोग्यता की कार्यवाही को रोकने के लिए कोई कारण नहीं दिया है. सुप्रीम कोर्ट के 1992 के फैसले ने हाईकोर्ट को  दूसरे पक्ष द्वारा मांगे गए दलबदल विरोधी कानून प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को पहले ही रोक दिया था. सन 1992 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर हाईकोर्ट के समक्ष दूसरे पक्ष (सचिन कैंप) की याचिका सुनवाई योग्य नहीं थी.

दूसरी तरफ बहुजन समाज पार्टी (BSP) ने राजस्थान में पार्टी के छह विधायकों के सत्तारूढ़ कांग्रेस में विलय को चुनौती देते हुए बुधवार को राजस्थान उच्च न्यायालय (Rajasthan High Court) में रिट याचिका दाखिल की. संदीप यादव, वाजिब अली, दीपचंद खेरिया, लाखन मीणा, जोगेंद्र अवाना और राजेंद्र गुढ़ा ने 2018 के विधानसभा चुनाव में बसपा के टिकट पर जीत दर्ज की थी. ये सभी सितंबर 2019 में बसपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे.

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बसपा के प्रदेश अध्यक्ष भगवान सिंह बाबा ने कहा, ‘‘हमने बसपा विधायकों के कांग्रेस में विलय के खिलाफ उच्च न्यायालय में आज रिट याचिका दाखिल की है.''उन्होंने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष के कार्यालय में भी याचिका दायर कर विलय को चुनौती दी जाएगी. बाबा ने कहा, ‘‘हम विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष भी याचिका दाखिल करेंगे और विलय को रद्द करने की मांग करेंगे.''

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भाजपा विधायक मदन दिलावर ने मंगलवार को उच्च न्यायालय में रिट याचिका दाखिल कर अपनी शिकायत पर विधानसभा अध्यक्ष द्वारा दिए गए आदेश को चुनौती दी थी. दिलावर ने विलय के खिलाफ इस वर्ष मार्च में अध्यक्ष को शिकायत दी थी, लेकिन अध्यक्ष ने 24 जुलाई को उनकी शिकायत अस्वीकार कर दी थी. 

विधायक ने आरोप लगाया कि शिकायत पर फैसला करते वक्त अध्यक्ष ने उनका पक्ष नहीं सुना. अध्यक्ष के इसी आदेश को उन्होंने उच्च न्यायालय में चुनौती दी है. बसपा विधायकों के सत्तारूढ़ कांग्रेस में विलय से प्रदेश की अशोक गहलोत सरकार को मजबूती मिली थी और 200 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस की सदस्य संख्या बढ़कर 107 हो गई थी. 

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