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This Article is From Apr 14, 2022

सौहार्द की मिसाल : हिंसा के दौरान मुस्लिमों की 'ढाल' बन निडरता के साथ इस हिंदू महिला ने किया भीड़ का मुकाबला

मधुलिका और उनके भाई संजय ने अपने परिवार की परवाह किए बिना करीब 15 मुस्लिमों को घर में शरण दी और इनकी जान बचाने के लिए निडर हो कर दंगाइयों का सामना किया.

दंगाइयों से डरे बगैर मधुलिका सिंह ने कई लोगों को अपने घर में पनाह दी

जयपुर:

राजस्थान के करौली में हुए सांप्रदायिक हिंसा और तनाव के बाद वहां राजनीति चरम पर है. जैसा कि अकसर होता है, सियासी दल अपने फायदे के लिए इस मुद्दे को भुनाने की कोशिश में जुटे हैं और प्रमुख दलों कांगेस और बीजेपी के बीच इस मामले में आरोप-प्रत्‍यारोप का दौर जारी है. लेकिन करौली में हुए दंगा फसाद और सियासत के इस 'खेल' से हटकर इंसानियत की मिसाल पेश करने का ऐसा पहलू सामने आया है जिसका जिक्र करना बेहद जरूरी है. जब दंगा भड़क रहा था तो वहां के कुछ लोगों ने मुस्लिम समुदाय के लोगों की जान बचाई और दुकानों में लगी आग को भी बुझाने का प्रयास किया. जो लोग, दूसरे की मदद के लिए सामने आए, वे बेशक साधारण लोग थे लेकिन मदद का उनका जज्‍बा बेहद बड़ा था. इसमें महिला मधुलिका सिंह भी शामिल हैं. मधुलिका और उनके भाई संजय ने अपने परिवार की परवाह किए बिना करीब 15 मुस्लिमों को घर में शरण दी और इनकी जान बचाने के लिए निडर हो कर दंगाइयों का सामना किया.

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ऐसी ही शख्‍स हैं मिथिलेश सोनी, जो ब्यूटी पार्लर चलाती है जिन्‍होंने तीन महिलाओं के साथ बाल्टी भर-भरकरआस पास की दुकानों में लगी आग को बुझाने का प्रयास किया. मधुलिका सिंह जादौन करौली के सांप्रदायिक तनाव के बीच में लोगों के लिए मददगार बनीं, इस अकेली महिला ने ने दंगाइयों का सामना करते हुए करीब 15 लोगों की जान बचाई. मधुलिका का बाजार में एक कपड़े की दुकान है. दो अप्रैल को जुलस जब इस बाजार से गुज़र रहा था तो दंगा भड़क गया. मधुलिका ने तोड़फोड़ और आगजनी की आवाज सुनी.उन्होंने देखा कि लोग दुकानों बंद करके भाग रहे हैं. लेकिन सामने से उग्र भीड़ आ रही थी,ऐसे  में मधुलिका डरी नहीं. उन्‍होंने दंगे में फंसे लोगों को अंदर बुलाकर अपने घर में शरण दी.ये लोग उनके घर में करीब दो घंटे तक रहे. मधुलिका बताती हैं, '" मैं बाहर आई और पूछा कि शटर क्यों डाउन कर रहे हो तो उन्होंने जवाब दिया कि दंगा हो गया है. मामले की गंभीरता को देखते हुए मैंने उन्‍हें अपने घर में शरण देकर गेट लॉक कर दिया. मैंने उनको इंसानियत की नाते से बचाया है. " उन्‍होंने बताया कि अफरातफरी का माहौल था.भीड़ दुकानों में तोड़ फोड़ कर रही थी और आग भी लगा रही थी. उनके भाई संजय सिंह ने बताया, " लगभग 16-17 लोग थे, जिनमें बारह तरह मुस्लिम थे और चार या पांच हिन्दू समुदाय से थे. हमने उन सबसे कहा किआप घबराये नहीं, आप लोग यहां सुरक्षित है "

आस पास के दुकानों में आग लग रही थी. ऐसे में मॉल में ब्यूटी पार्लर चलने वाली मिथिलेश सोनी ने नी महिलाओं के साथ मिलकर बाल्टियों से आग बुझाने की कोशिश की. इस दौरान उन्होंने यह नहीं पूछा कि दुकानें किसकी है और उनका धर्म क्या है? उन्‍होंने बताया, 'हमने मुस्लिम बच्चों को बाहर नहीं निकलने दिया क्योंकि बाहर लोग हिंसा पर उतारू थे. फिर हमने देखा कि दुकानों में आग लगाइ जा रही है, ऐसे में हमने बाल्टियों टंकी से भर-भरकर पानी डाला.' करौली के इस मुख्य बाजार में सालों से दोनों संप्रदाय के लोग अपना धंधा करते है. जिन मुस्लिम समुदाय के लोगों की जान मधुलिका और संजय ने बचाई, वे कहते हैं कि वे जिंदगीभर इनके अहसानमंद रहेंगे.

दुकानदार मोहम्मद तालिब खान बोले, "बाहर भगदड़ मच गई. पत्थरबाजी हो रही थी और लोग डंडे लेकर घूम रहे थे.दीदी ने हमें बुलाया कि कोई टेंशन नहीं हैलोग दुकान लूट रहे थे, लेकिन दीदी ने हमें बचाया. " दरअसल, करौली में दो अप्रैल को हिन्दू नववर्ष के उपलक्ष्‍य में जलूस निकल रहा था जिस पर पथराव हुआ और फिर दंगा भड़क उठा. ये अब एक राजनीतिक मुद्दा बन चुका है. लेकिन यहां के लोग कहते हैं कि शान्ति और सद्भाव के साथ रहना चाहते हैं.अध्यक्ष सदर बाजार व्‍यापार संघ राजेंद्र शर्मा बताते हैं,"हमारे बाजार में हर जाती और हर वर्ग का व्यापारी हैं. करीब 50 दुकान मुसलमान भाइयों की हैं. ऐसी स्थिति कभी नहीं रही कि दरारें पड़ें. हम चाहते है भाईचारा कायम रहे . '

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