राफेल केस : सुप्रीम कोर्ट ने कहा- याचिकाएं खारिज होने के बावजूद जांच कर सकती है सीबीआई

सीबीआई शिकायतकर्ता की शिकायत पर एफआईआर दर्ज कर जांच कर सकती है क्योंकि यह संज्ञेयनीय अपराध दिखाई देता है

राफेल केस : सुप्रीम कोर्ट ने कहा- याचिकाएं खारिज होने के बावजूद जांच कर सकती है सीबीआई

सुप्रीम कोर्ट.

खास बातें

  • याचिकाओं का खारिज होना सीबीआई की जांच के बीच में नहीं आएगा
  • जांच एजेंसी को सरकार से स्वीकृति लेनी होगी
  • सुप्रीम कोर्ट ने राफेल डील पर पुनर्विचार याचिकाएं खारिज कीं
नई दिल्ली:

राफेल मामले (Rafale Deal Case) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले में जस्टिस केएम जोसेफ ने कहा है कि इन पुनर्विचार याचिकाओं के खारिज होने के बाद भी सीबीआई शिकायतकर्ता की शिकायत पर एफआईआर दर्ज कर जांच कर सकती है क्योंकि यह संज्ञेयनीय अपराध दिखाई देता है. लेकिन इसके लिए एजेंसी को प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट की धारा 17 के तहत सरकार से स्वीकृति लेनी होगी. पुनर्विचार याचिकाओं का खारिज होना सीबीआई की जांच के बीच में नहीं आएगा.

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को राफेल डील पर सरकार को क्लीन चिट देने के अपने निर्णय पर पुनर्विचार की मांग कर रही सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया. यह याचिकाएं पूर्व केंद्रीय मंत्री - यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी तथा कार्यकर्ता-वकील प्रशांत भूषण समेत कुछ अन्य ने दाखिल की थीं. इनमें पिछले साल के 14 दिसंबर के उस फैसले पर पुनर्विचार की मांग की गई थी जिसमें फ्रांस की कंपनी ‘दसॉल्ट' से 36 लड़ाकू विमान खरीदने के केंद्र के राफेल सौदे को क्लीन चिट दी गई थी. प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति केएम जोसफ की पीठ ने राजनीतिक रूप से संवेदनशील इस मामले पर 10 मई को सुनवाई पूरी की थी. पीठ ने कहा था कि इस पर फैसला बाद में सुनाया जाएगा.

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने ललिता कुमारी मामले में एक फैसले का उल्लेख किया जिसमें कहा गया था कि संज्ञेय अपराध होने का खुलासा होने पर प्राथमिकी आवश्यक है. ‘पीठ ने कहा था कि सवाल यह है कि आप ललिता कुमारी फैसले का पालन करने के लिए बाध्य हैं या नहीं.' अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने पीठ से कहा था कि प्रथम दृष्टया एक मामला होना चाहिए, अन्यथा वे (एजेंसियां) आगे नहीं बढ़ सकतीं. सूचना में संज्ञेय अपराध का खुलासा होना चाहिए.

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न्यायमूर्ति जोसेफ ने पहले के सौदे का हवाला दिया था और केंद्र से पूछा था कि राफेल पर फ्रांसीसी प्रशासन के साथ अंतर-सरकारी समझौते में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण का उपबंध क्यों नहीं है. विधि अधिकारी ने कहा, ‘‘अदालत इस तरह के तकनीकी पहलुओं पर फैसला नहीं कर सकती है.'

समझौते में संप्रभु गारंटी की छूट आदि से जुड़े सवाल पर वेणुगोपाल ने कहा था कि यह ‘‘अभूतपूर्व कवायद'' नहीं है और रूस तथा अमेरिका के साथ ऐसे समझौतों का उल्लेख किया, जिसमें ऐसी छूट दी गई.

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उन्होंने कहा, ‘‘यह राष्ट्रीय सुरक्षा का सवाल है. दुनिया की कोई अन्य अदालत इस तरह के तर्कों पर रक्षा सौदे की जांच नहीं करेगी.' पूर्व मंत्रियों और अधिवक्ता भूषण जवाब में केन्द्र ने हलफनामा दाखिल किया था.  न्यायालय में दाखिल अपने हलफनामे में केंद्र ने कहा कि दिसम्बर, 2018 के फैसले में शीर्ष अदालत के स्पष्ट निष्कर्ष में ऐसी कोई त्रुटि नहीं है जिसके लिए इस पर पुनर्विचार किया जाए.

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क्या था मामला
14 दिसम्बर 2018 को शीर्ष अदालत ने 58,000 करोड़ के इस समझौते में कथित अनियमितताओं के खिलाफ जांच का मांग कर रही याचिकाओं को खारिज कर दिया था. सुनवाई पूरी करते हुये शीर्ष अदालत ने सौदे के संबंध में विभिन्न मुद्दों पर केंद्र से ‘‘संप्रभु गारंटी से छूट और समझौते में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण उपबंध का ना होने'' आदि पर सवाल किए थे. इस फैसले को लेकर पूर्व केंद्रीय मंत्री - यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी तथा कार्यकर्ता-वकील प्रशांत भूषण समेत कुछ अन्य ने पुनर्विचार याचिकाएं दाखिल की थीं.

VIDEO : राफेल केस में सभी रिव्यू पिटीशन खारिज

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