एनडीटीवी यूथ फॉर चेंज कार्यक्रम में पर्यावरण के मुद्दे पर चर्चा करते पैनलिस्ट
नई दिल्ली:
बॉलीवुड अभिनेत्री दीया मिर्जा ने पर्यावरण को लेकर चिंता जताते हुए कहा कि हर किसी के लिए कुदरत की महत्ता समझना जरूरी हैं. एनडीटीवी के विशेष कार्यक्रम 'यूथ फॉर चेंज' के पहले सत्र 'साथी हाथ बढ़ाना' में पर्यावरण के मुद्दे पर चर्चा करते हुए दीया ने कहा, 'आप किसी भी क्षेत्र से हों कुदरत की महत्ता को समझना होगा.' वह कहती हैं, 'हम पहले जंगलों से भरा हुआ देश हुआ करते थे, लेकिन आज छिटपुट जगहों पर ही जंगल बचे हैं.'
'प्लास्टिक और कचरे से सबसे ज्यादा डर'
इसके साथ ही दीया ने कहा, 'धरती अपनी किसी चीज़ पर टैक्स नहीं मांगती. वह हमें हर चीज़ फ्री में देती है. पानी, जंगल हमें मुफ़्त में मिला, लेकिन दक्षिण भारत में पानी को लेकर झगड़ रहे हैं. हमें झगड़ा करना ही है, तो धरती को बचाने के लिए करें.'
दीया कहती हैं, हम सबसे ज़्यादा कचरा फैलाते हैं. मुझे सबसे ज़्यादा डर कचरे से, प्लास्टिक से लगता है. सब कुछ जानते हुए भी हम कुदरत को नष्ट कर रहे हैं. किसी भी चीज़ को उपयोग कर फेंकने से पहले हमें सोचना चाहिए कि यह कहा से आ रहा है और जा कहां रहा है. हमारा कचरा नदी, जंगल हर जगह पहुंचता है. अगर हमारे विकास के विचार में हमारी पर्यावरण और स्वास्थ्य चिंताओं को शामिल नहीं किया जाता, तब तक हम आगे नहीं बढ़ पाएंगे'
'प्रकृति से लड़ने नहीं, जुड़ने की ज़रूरत'
वहीं जैविक (ऑर्गेनिक) खेती करने वाले किसान भारत भूषण त्यागी ने कार्यक्रम में कहा, शुद्ध भोजन, पर्यावरण सबको चाहिए, लेकिन खेती करने को आज कोई तैयार नहीं. हम धरती के साथ संबंध को समझ नहीं पाए, हम पानी का महत्व नहीं समझें तो अच्छा नहीं होगा.'
वह कहते हैं, 'देश में ज्यादा से ज्यादा लोगों को खेती से जुड़ना चाहिए. मेरी सात पीढ़ियां खेती में हैं और रहेंगी. हम एक एकड़ ज़मीन पर खेती से चार से पांच लाख रुपये तक कमा सकते हैं. प्रकृति से लड़ने नहीं जुड़ने की ज़रूरत है.'
'महिलाओं ने जंगलों के महत्व को सबसे पहले समझा और आगे आईं'
एनडीटीवी के इस खास कार्यक्रम में आए मशूहर गांधीवादी पर्यावरणविद सच्चिदानंद भारती ने जगलों के महत्व और इस पर मंडराते खतरों की ओर ध्यान दिलाया. वह बताते हैं, 'देश के मैदानों और पहाड़ों में पानी और जंगल की समस्या है. उत्तराखंड के पौड़ी ज़िले के बीरोंखाल नाम की जगह पर काम कर रहा हूं. एक गांव से काम शुरू हुआ और आगे बढ़ता गया. आज हमने 150 से ज़्यादा गांवों में पानी की समस्या को दूर किया.'
वह कहते हैं, '1987 में देश में बहुत बड़ा सूखा पड़ा था. ऐसे में पेड़ों को बचाने के लिए हमने उनके पास छोटे-छोटे गड्ढे खोदे, ताकि पेड़ ज़िंदा रहे हैं.' भारती ने कहा कि जंगलों के कम होने से महिलाओं को सबसे ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ा. इसलिए सबसे पहले उन्होंने इस बात का समझा और आगे आईं.
इस कार्यक्रम के विभिन्न सत्रों से जुड़ी ये खबरें भी पढ़ें...
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वह कहते हैं, 'देश में ज्यादा से ज्यादा लोगों को खेती से जुड़ना चाहिए. मेरी सात पीढ़ियां खेती में हैं और रहेंगी. हम एक एकड़ ज़मीन पर खेती से चार से पांच लाख रुपये तक कमा सकते हैं. प्रकृति से लड़ने नहीं जुड़ने की ज़रूरत है.'
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वह कहते हैं, '1987 में देश में बहुत बड़ा सूखा पड़ा था. ऐसे में पेड़ों को बचाने के लिए हमने उनके पास छोटे-छोटे गड्ढे खोदे, ताकि पेड़ ज़िंदा रहे हैं.' भारती ने कहा कि जंगलों के कम होने से महिलाओं को सबसे ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ा. इसलिए सबसे पहले उन्होंने इस बात का समझा और आगे आईं.
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