नई दिल्ली:
दरअसल यूपीए के 42 फीसदी वोट हैं जिनमें तृणमूल के 4.4 फीसदी वोट शामिल हैं।
इनमें समाजवादी पार्टी के 6.2 फीसदी वोट मिलते तो यूपीए और समाजवादी पार्टी के वोट मिलकर 48.2 फीसदी वोट हो जाते हैं। तब यूपीए छोटे−मोटे दलों के समर्थन से काम चला लेता। लेकिन अगर यूपीए से तृणमूल और समाजवादी पार्टी अलग हो जाते हैं तब यूपीए के वोट घटकर 37.6 फीसदी पर आ जाते हैं।
सवाल है इसके बाद यूपीए क्या कर सकता है। अगर वह लेफ्ट और बीएसपी को जोड़ता है तो यूपीए के 37.6 फीसदी वोटों के साथ लेफ्ट के 4.7 फीसदी और बीएसपी के 3.9 फीसदी वोट मिलकर 46.2 फीसदी वोट बनते हैं। फिर भी 3.8 फीसदी वोटों की मशक्कत बची रह जाएगी।
एक दूर की कौड़ी यह हो सकती है कि यूपीए और एनडीए में तालमेल हो जाए और राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव पर सहमति बन जाए। तब तृणमूल को छोड़कर यूपीए के 37.6 और एनडीए 28 फीसदी वोट मिलकर 65.6 फीसदी वोट हो जाते हैं। लेकिन क्या इसके बाद सरकार बची रहेगी।
इनमें समाजवादी पार्टी के 6.2 फीसदी वोट मिलते तो यूपीए और समाजवादी पार्टी के वोट मिलकर 48.2 फीसदी वोट हो जाते हैं। तब यूपीए छोटे−मोटे दलों के समर्थन से काम चला लेता। लेकिन अगर यूपीए से तृणमूल और समाजवादी पार्टी अलग हो जाते हैं तब यूपीए के वोट घटकर 37.6 फीसदी पर आ जाते हैं।
सवाल है इसके बाद यूपीए क्या कर सकता है। अगर वह लेफ्ट और बीएसपी को जोड़ता है तो यूपीए के 37.6 फीसदी वोटों के साथ लेफ्ट के 4.7 फीसदी और बीएसपी के 3.9 फीसदी वोट मिलकर 46.2 फीसदी वोट बनते हैं। फिर भी 3.8 फीसदी वोटों की मशक्कत बची रह जाएगी।
एक दूर की कौड़ी यह हो सकती है कि यूपीए और एनडीए में तालमेल हो जाए और राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव पर सहमति बन जाए। तब तृणमूल को छोड़कर यूपीए के 37.6 और एनडीए 28 फीसदी वोट मिलकर 65.6 फीसदी वोट हो जाते हैं। लेकिन क्या इसके बाद सरकार बची रहेगी।
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं