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This Article is From Aug 26, 2015

धार्मिक आधार पर जनगणना के आंकड़े आते ही राजनीति शुरू

धार्मिक आधार पर जनगणना के आंकड़े आते ही राजनीति शुरू
नई दिल्ली: धार्मिक आधार पर 2011 की जनगणना के आंकड़े आए तो अचानक जैसे यह हवा चल पड़ी कि हिंदुओं की आबादी घट रही है और मुसलमानों की बढ़ रही है, जबकि सच्चाई यह है कि जनसंख्या सबकी बढ़ी है, लेकिन जनसंख्या वृद्धि की रफ़्तार सबकी घटी है। बेशक, मुसलमानों की उतनी नहीं, जितनी दूसरे समुदायों की। मगर इसके आर्थिक कारणों को पहचानने की जगह इस पर राजनीति शुरू हो गई है।

धार्मिक आधार पर जनसंख्या के आंकड़े आते ही बीजेपी को अपना राजनैतिक एजेंडा याद आ गया। आबादी के अनुपात में जो बहुत मामूली सा फर्क आया है, उसे वो खतरनाक बताने लगी। बीजेपी सांसद योगी आदित्यनाथ ने कहा कि जनसंख्या नियंत्रण के लिए सरकार को कानून बनाना चाहिए।

जनसंख्या के आंकड़ों की सच्चाई यह है कि हिंदू आबादी 96.63 करोड़ है जबकि मुस्लिम आबादी 17.22 करोड़। कुल आबादी में हिंदुओं का अनुपात 0.7% कम हुआ है वहीं मुस्लिम अनुपात 0.8% बढ़ा है।

जेडी-यू के वरिष्ठ महासचिव केसी त्यागी नाराज हैं कि एनडीए सरकार ने जाति-आधारित आंकड़े जारी करने की उनकी मांग पूरी नहीं की और धार्मिक आधार पर आबादी के आंकड़े जारी कर दिए। उन्होंने एनडीटीवी से कहा, बिहार में चुनाव से पहले और गुजरात में चल रहे आरक्षण आंदोलन से ध्यान बंटाने के लिए इसे लाया गया। यह धार्मिक ध्रुवीकरण की कोशिश है।

उधर कांग्रेस ने आरोप लगाया कि बीजेपी फिर समाज को धर्म के नाम पर बांटने की कवायद में जुट गई है। कांग्रेस महासचिव शकील अहमद कहते हैं, 'बीजेपी का जो चरित्र है उस हिसाब से वह समाज को धर्म के नाम पर बांटने का प्रयास कर रही है। यह उसी से जुड़ा एक प्रयास है।'

जनगणना के धार्मिक आधार पर जो आंकड़े सामने आए हैं उनके शोर में यह सच्चाई भुला दी गई है कि आबादी उन्हीं समुदायों में ज्यादा बढ़ती है जहां गरीबी ज्यादा है। ऐसे में इन आंकड़ों पर जो सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश चल रही है वह सही नहीं है।

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