नई दिल्ली:
'निरंकुश तथा सत्तावादी' - 500 और 1,000 रुपये के नोटों को अचानक बंद कर दिए जाने के फैसले को इन्हीं शब्दों से बयान किया नोबेल पुरस्कार विजेता तथा देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से नवाज़े जा चुके अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से NDTV के कार्यक्रम 'द बक स्टॉप्स हेयर' में शिरकत करते हुए डॉ सेन ने कहा, "काले धन से निपटने बताया गया उद्देश्य ऐसा है, जिसकी सभी भारतीय प्रशंसा करेंगे ही, लेकिन हमें देखना होगा कि क्या यही सही तरीका है...? इस फैसले से होने वाला फायदा कम से कम है, जबकि तकलीफें ज़्यादा से ज़्यादा..."
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ब्लॉग- ऑपरेशन 'मगरमच्छ' : वीर राजा की कहानी, इसे नोटबंदी से न जोड़ें
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8 नवंबर को अचानक किए गए टेलीविज़न संदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी कि कुछ ही घंटे बाद से बड़ी रकम वाले नोट गैरकानूनी हो जाएंगे. प्रचलित नकदी का 86 फीसदी हिस्सा एक ही झटके में रद्द हो गया, जिससे नकदी का संकट खड़ा हो गया, जिसके बारे में प्रधानमंत्री ने कहा कि ठीक होने में 50 दिन लग सकते हैं, और जनता से अपील की कि वे राष्ट्रहित में कुछ समय की परेशानियों को बर्दाश्त करें, ताकि भ्रष्टाचार और कर चोरी की समस्याओं से लड़ा जा सके.
डॉ सेन ने कहा कि काले धन का बहुत छोटा हिस्सा नकद के रूप में रखा है. उनके मुताबिक, "लगभग छह फीसदी, और निश्चित रूप से 10 फीसदी से कम..." उन्होंने कहा कि विमुद्रीकरण (नोटबंदी) "उपलब्धि के लिहाज़ से बहुत छोटा कदम है, और भारतीय अर्थव्यवस्था को बाधित करने के लिहाज़ से काफी बड़ा..." प्रधानमंत्री के इस कदम के अन्य आलोचकों की ही तरह डॉ अमर्त्य सेन ने भी कहा कि वह कदम उठाने के पीछे के इरादे का समर्थन करते हैं, लेकिन इसे उठाने और लागू करने में रही कमियों को लेकर आलोचना करते हैं. उन्होंने कहा, "हम सभी चाहते हैं कि काले धन को लेकर कुछ किया जाए, लेकिन निश्चित रूप से वह समझदारी से मानवता को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए... वैसा नहीं हुआ है..."
नए नोटों की आपूर्ति कम है, इसलिए बैंकों में सुबह-सुबह ही नकदी खत्म हो जाती है. एटीएम अभी तक रीकैलिब्रेट किए जा रहे हैं, क्योंकि नए नोटों का आकार पुरानों की तुलना में छोटा है. औपचारिक बैंकिंग सेवाएं से अछूता ग्रामीण क्षेत्र खासतौर से नकदी का ज़ोरदार संकट झेल रहा है, हालांकि इसके बावजूद बहुतों का कहना है कि वे प्रधानमंत्री की नई योजना का समर्थन करते हैं.
यह पूछे जाने पर कि एक ऐसी आर्थिक नीति, जिसके लिए लोगों की ओर से सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनों तरह की प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं, की व्याख्या करने के लिए उन्होंने 'निरंकुश' जैसे कड़े विशेषण का प्रयोग क्यों किया, डॉ सेन ने कहा, "यह निरंकुश इस अर्थ में है कि इससे मुद्रा में भरोसा टूट जाता है..." उनका तर्क था कि रुपया प्रॉमिसरी नोट होता है, और किसी भी सरकार के लिए उसे नकार देना मूल वादे से फिर जाने जैसा है. "अगर अचानक कोई सरकार कह देती है कि वह अदायगी नहीं करेगी, तो यह निरंकुश है... मैं पूंजीवाद का प्रशंसक नहीं हूं, लेकिन पूंजीवाद की कुंजी भी भरोसा ही होती है... और यह पूरी तरह भरोसे के खिलाफ है... अर्थव्यवस्था और पूंजीवाद के मूल सिद्धांतों के कमज़ोर हो जाने का खतरा मंडरा रहा है... कल सरकार बैंक खातों के साथ भी ऐसा कर सकती है, और एक निश्चित रकम से ज़्यादा के लेनदेन पर रोक लगा सकती है, जब तक आप साबित न कर दें कि आप रैकेटियर नहीं हैं..."
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के घोर आलोचक रहे डॉ अमर्त्य सेन (हाल ही में उन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय से उन जैसे बोर्ड सदस्यों को हटाए जाने पर भी सरकार की आलोचना की थी) ने इस बात को खारिज किया कि प्रधानमंत्री से उनके वैचारिक मतभेदों की वजह से वह विमुद्रीकरण की आलोचना कर रहे हैं. उन्होंने कहा, "मैं काले धन से छुटकारा पाने की इच्छा के लिए कभी (प्रधानमंत्री नरेंद्र) मोदी की आलोचना नहीं करूंगा... अगर वह इसे कामयाबी से करें, तो मैं ज़ोरदार तारीफ भी करूंगा... मेरी चिंता यह है कि इस कदम से कानून का पालन करने वाले आम नागरिकों की ज़िन्दगी काफी मुश्किल हो गई है... (प्रधानमंत्री नरेंद्र) मोदी से मेरे मतभेद भारत को लेकर हमारे दृष्टिकोण को लेकर हैं... और मैं कहना चाहूंगा कि 31 प्रतिशत वोट लेकर बीजेपी (भारतीय जनता पार्टी) को लाइसेंस नहीं मिल जाता कि वह किसी को भी सिर्फ सरकार से असहमत हो जाने पर राष्ट्र-विरोधी करार दे दें..."
डॉ अमर्त्य सेन को अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के कार्यकाल के दौरान देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' प्रदान किया गया था.
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8 नवंबर को अचानक किए गए टेलीविज़न संदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी कि कुछ ही घंटे बाद से बड़ी रकम वाले नोट गैरकानूनी हो जाएंगे. प्रचलित नकदी का 86 फीसदी हिस्सा एक ही झटके में रद्द हो गया, जिससे नकदी का संकट खड़ा हो गया, जिसके बारे में प्रधानमंत्री ने कहा कि ठीक होने में 50 दिन लग सकते हैं, और जनता से अपील की कि वे राष्ट्रहित में कुछ समय की परेशानियों को बर्दाश्त करें, ताकि भ्रष्टाचार और कर चोरी की समस्याओं से लड़ा जा सके.
डॉ सेन ने कहा कि काले धन का बहुत छोटा हिस्सा नकद के रूप में रखा है. उनके मुताबिक, "लगभग छह फीसदी, और निश्चित रूप से 10 फीसदी से कम..." उन्होंने कहा कि विमुद्रीकरण (नोटबंदी) "उपलब्धि के लिहाज़ से बहुत छोटा कदम है, और भारतीय अर्थव्यवस्था को बाधित करने के लिहाज़ से काफी बड़ा..." प्रधानमंत्री के इस कदम के अन्य आलोचकों की ही तरह डॉ अमर्त्य सेन ने भी कहा कि वह कदम उठाने के पीछे के इरादे का समर्थन करते हैं, लेकिन इसे उठाने और लागू करने में रही कमियों को लेकर आलोचना करते हैं. उन्होंने कहा, "हम सभी चाहते हैं कि काले धन को लेकर कुछ किया जाए, लेकिन निश्चित रूप से वह समझदारी से मानवता को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए... वैसा नहीं हुआ है..."
नए नोटों की आपूर्ति कम है, इसलिए बैंकों में सुबह-सुबह ही नकदी खत्म हो जाती है. एटीएम अभी तक रीकैलिब्रेट किए जा रहे हैं, क्योंकि नए नोटों का आकार पुरानों की तुलना में छोटा है. औपचारिक बैंकिंग सेवाएं से अछूता ग्रामीण क्षेत्र खासतौर से नकदी का ज़ोरदार संकट झेल रहा है, हालांकि इसके बावजूद बहुतों का कहना है कि वे प्रधानमंत्री की नई योजना का समर्थन करते हैं.
यह पूछे जाने पर कि एक ऐसी आर्थिक नीति, जिसके लिए लोगों की ओर से सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनों तरह की प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं, की व्याख्या करने के लिए उन्होंने 'निरंकुश' जैसे कड़े विशेषण का प्रयोग क्यों किया, डॉ सेन ने कहा, "यह निरंकुश इस अर्थ में है कि इससे मुद्रा में भरोसा टूट जाता है..." उनका तर्क था कि रुपया प्रॉमिसरी नोट होता है, और किसी भी सरकार के लिए उसे नकार देना मूल वादे से फिर जाने जैसा है. "अगर अचानक कोई सरकार कह देती है कि वह अदायगी नहीं करेगी, तो यह निरंकुश है... मैं पूंजीवाद का प्रशंसक नहीं हूं, लेकिन पूंजीवाद की कुंजी भी भरोसा ही होती है... और यह पूरी तरह भरोसे के खिलाफ है... अर्थव्यवस्था और पूंजीवाद के मूल सिद्धांतों के कमज़ोर हो जाने का खतरा मंडरा रहा है... कल सरकार बैंक खातों के साथ भी ऐसा कर सकती है, और एक निश्चित रकम से ज़्यादा के लेनदेन पर रोक लगा सकती है, जब तक आप साबित न कर दें कि आप रैकेटियर नहीं हैं..."
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के घोर आलोचक रहे डॉ अमर्त्य सेन (हाल ही में उन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय से उन जैसे बोर्ड सदस्यों को हटाए जाने पर भी सरकार की आलोचना की थी) ने इस बात को खारिज किया कि प्रधानमंत्री से उनके वैचारिक मतभेदों की वजह से वह विमुद्रीकरण की आलोचना कर रहे हैं. उन्होंने कहा, "मैं काले धन से छुटकारा पाने की इच्छा के लिए कभी (प्रधानमंत्री नरेंद्र) मोदी की आलोचना नहीं करूंगा... अगर वह इसे कामयाबी से करें, तो मैं ज़ोरदार तारीफ भी करूंगा... मेरी चिंता यह है कि इस कदम से कानून का पालन करने वाले आम नागरिकों की ज़िन्दगी काफी मुश्किल हो गई है... (प्रधानमंत्री नरेंद्र) मोदी से मेरे मतभेद भारत को लेकर हमारे दृष्टिकोण को लेकर हैं... और मैं कहना चाहूंगा कि 31 प्रतिशत वोट लेकर बीजेपी (भारतीय जनता पार्टी) को लाइसेंस नहीं मिल जाता कि वह किसी को भी सिर्फ सरकार से असहमत हो जाने पर राष्ट्र-विरोधी करार दे दें..."
डॉ अमर्त्य सेन को अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के कार्यकाल के दौरान देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' प्रदान किया गया था.
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