राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बहुलवाद एवं सहिष्णुता को भारतीय सभ्यता का प्रतीक और विविधता को एक मजबूत तथ्य बताते हुए शनिवार को चेतावनी दी कि कुछ हठी लोगों की सनक की वजह से इसे कल्पना में नहीं बदलने दिया जा सकता।
नेहरू स्मारक संग्रहालय में दिवंगत कांग्रेस नेता अजरुन सिंह के सम्मान में मेमोरियल व्याख्यान देते हुए उन्होंने कहा कि एक बहुलवादी लोकतंत्र में नागरिकों और खासकर युवकों के मन में सहिष्णुता के मूल्य, विपरीत विचारों का सम्मान और धैर्य स्थापित करना महत्वपूर्ण है।
बहुलवाद और सहिष्णुता हमारी सभ्यता के प्रतीक
उन्होंने कहा, ‘बहुलवाद और सहिष्णुता हमारी सभ्यता के प्रतीक रहे हैं। यह मुख्य दर्शन है जिसे निर्बाध जारी रहना चाहिए। क्योंकि, भारत की मजबूती उसकी विविधता में है।’ राष्ट्रपति ने कहा, ‘हमारे देश की विविधता एक तथ्य है। इसे कुछ हठी लोगों की सनक की वजह से कल्पना में नहीं बदलने दिया जा सकता। हमारे समाज की बहुलता सदियों से विचारों के आपस में जुड़ने से बनी है।’
सदियों से सामूहिक विवेक का हिस्सा है सहिष्णुता
उन्होंने कहा कि भारत अपनी मजबूती सहिष्णुता से ग्रहण करता है। यह सदियों से सामूहिक विवेक का हिस्सा है और यही एकमात्र रास्ता है, जो देश के लिए सही तरीके से काम करेगा।’ उन्होंने कहा, ‘सार्वजनिक विमर्श में विविध रुख हैं। हम बहस कर सकते हैं। हम सहमत नहीं हो सकते हैं। लेकिन हम विचारों की विविधता को नहीं रोक सकते। अन्यथा हमारी चिंतन प्रक्रिया का मूल चरित्र खत्म हो जाएगा।’
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)
नेहरू स्मारक संग्रहालय में दिवंगत कांग्रेस नेता अजरुन सिंह के सम्मान में मेमोरियल व्याख्यान देते हुए उन्होंने कहा कि एक बहुलवादी लोकतंत्र में नागरिकों और खासकर युवकों के मन में सहिष्णुता के मूल्य, विपरीत विचारों का सम्मान और धैर्य स्थापित करना महत्वपूर्ण है।
बहुलवाद और सहिष्णुता हमारी सभ्यता के प्रतीक
उन्होंने कहा, ‘बहुलवाद और सहिष्णुता हमारी सभ्यता के प्रतीक रहे हैं। यह मुख्य दर्शन है जिसे निर्बाध जारी रहना चाहिए। क्योंकि, भारत की मजबूती उसकी विविधता में है।’ राष्ट्रपति ने कहा, ‘हमारे देश की विविधता एक तथ्य है। इसे कुछ हठी लोगों की सनक की वजह से कल्पना में नहीं बदलने दिया जा सकता। हमारे समाज की बहुलता सदियों से विचारों के आपस में जुड़ने से बनी है।’
सदियों से सामूहिक विवेक का हिस्सा है सहिष्णुता
उन्होंने कहा कि भारत अपनी मजबूती सहिष्णुता से ग्रहण करता है। यह सदियों से सामूहिक विवेक का हिस्सा है और यही एकमात्र रास्ता है, जो देश के लिए सही तरीके से काम करेगा।’ उन्होंने कहा, ‘सार्वजनिक विमर्श में विविध रुख हैं। हम बहस कर सकते हैं। हम सहमत नहीं हो सकते हैं। लेकिन हम विचारों की विविधता को नहीं रोक सकते। अन्यथा हमारी चिंतन प्रक्रिया का मूल चरित्र खत्म हो जाएगा।’
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)
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