दिल्ली क्राइम ब्रांच की टीम पेट्रोलियम मंत्रालय के नीतिगत फैसलों से जुड़े आरोपियों को जब अपने साथ लेकर शास्त्री भवन पहुंची तब यह देखकर हैरान रह गई कि अभियुक्तों के पास मंत्रालय के ज्वायंट सेक्रेटरी से लेकर डेप्यूटी सेक्रेटरी तक के कमरों की चाबियां थीं।
'उनके पास वह चाबियां थीं जिनका वो इस्तेमाल कर रहे थे। जानकारी के अनुसार ये रैकेट पिछले कई सालों से चल रहा था'। पुलिस कमिशनर बी एस बस्सी ने कहा, 'मामले की जारी जांच में अब पूरे रैकेट की परतें खुल रही हैं'।
एनडीटीवी को मिली जानकारी के मुताबिक पेट्रोलियम मंत्रालय की नीतियों से जुड़े दस्तावेज चोरी किए जाते थे और उन्हें बाद में कॉरपोरेट कंपनियों को बेच दिया जाता था। अगर नीतियां उन कंपनियों के हक में नहीं होती तो मन-मुताबिक बनाने की कोशिशें की जाती थीं। इसके लिए कुछ अफसरों पर दबाव भी बनाया जाता था। यही वजह है कि सरकारी कर्मचारियों के अलावा कई निजी कंपनियों के एग्जिक्यूटिव भी जांच के घेरे में हैं।
पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने कहा, 'हम लोग हर पहलु की जांच करवा रहे हैं'। एनडीटीवी के पास मामले में की गई एफआईआर की कॉपी भी है। जानकारी यह भी मिली है कि इन लोगों ने जल्द पेश होने वाले बजट से जुड़ी जानकारी भी लीक की है।
इस मामले में पुलिस अभी तक सात लोगों को गिरफ्तार कर चुकी है जिनमें दो सरकारी कर्मचारी, एक पूर्व पत्रकार और एक पेट्रो एनर्जी कंसलटेंट शामिल हैं। पुलिस इस बात को लेकर भी कानूनी सलाह ले रही है कि क्या यह मामला जासूसी के दायरे में आता है।
दरअसल पुलिस का कहना है कि ये सिर्फ़ शुरूआत है क्योंकि ये रैकेट पिछले कई सालों से चला आ रहा है। सिर्फ खिलाड़ी बदलते रहते हैं। अब अगर तह तक जाना है तो कुछ समय जरूर लगेगा, खास कर इसलिए क्योंकि इस रैकेट से जुड़े कई आम के साथ-साथ खास लोग भी है।
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