नई दिल्ली:
पाकिस्तान से आए छह आतंकियों ने पंजाब के पठानकोट स्थित वायुसेना अड्डे पर किस तरह हमले को अंजाम दिया, इसकी जांच में जुटे सैन्य विशेषज्ञों ने जांच निष्कर्षों को एनडीटीवी से साझा किया है।
हाल ही में सरकार को सौंपी गई रिपोर्ट में सैन्य विशेषज्ञ इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि छह आतंकियों के इस जत्थे के दो आतंकियों को अन्य चार का गाईड बनकर उन्हें एयरफोर्स बेस के टेक्निकल एरिया तक ले जाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, जहां वायुसेना के लड़ाकू विमान और हेलिकॉप्टर रखे हुए थे। हमलावरों के इस जोड़े के पास कोई मशीनगन तो नहीं था, लेकिन उनके पास आईईडी और अमोनियम नाइट्रेट के अलावा बेहद तेजी से जलने वाला तरल था। उनकी मंशा ज्यादा से ज्यादा सैन्य साजो-सामान को नुकसान पहुंचाने की थी। आतंकियों की इस योजना को तो भारतीय जवानों ने नाकाम कर दिया, लेकिन इस हमले में सात जवान शहीद हो गए।
रिपोर्ट के मुताबिक, चार आतंकियों का जत्था 2 जनवरी की सुबह की 10 फुट ऊंची दीवार और कंटीली तारों को पार कर वायुसेना अड्डे में प्रवेश कर गया। टोही विमानों के थर्मल उपकरण के जरिये अगले दिन ही उनकी मौजूदगी का पता चल सका। वहीं दूसरा जत्था पहली जनवरी को ही एयरफोर्स बेस के अंदर पहुंच चुका था, हालांकि अभी तक यह नहीं पता चल पाया है कि वे वहां कैसे पहुंचे।
रिपोर्ट में कहा गया कि ये छह आतंकी कभी एक साथ थर्मल डिवाइस की पकड़ में नहीं आए। इससे इस बात की पुष्टि होती है कि ये हमलावर अलग-अलग दल में एयरफोर्स बेस में दाखिल हुए थे।
शनिवार 2 जनवरी के तड़के चार आतंकियों के पहले जत्थे ने कैफेटेरिया के पास गोलीबारी शुरू कर दी। सैन्य बलों ने तुरंत ही जवाबी कार्रवाई शुरू की, जिसकी वजह से ये आतंकी एक जगह ही फंसे रह गए। वे ना तो टेक्निकल एरिया तक जा पा रहे थे जहां सैन्य साजो-सामान और लड़ाकू विमान रखे थे और ना आवासीय क्षेत्र की तरफ ही, जहां करीब 1600 लोग रहा करते थे। ऐसे में सेना के हाथों मार गिराए जाने से पहले उन्होंने वहां खड़ी गाड़ियों और मोटरसाइकिलों को उड़ा दिया। आतंकियों के खिलाफ अभियान में शामिल एक वरिष्ठ अधिकारी ने एनडीटीवी को बताया, 'आतंकियों ने जिस तरह से असैन्य वाहनों को निशाना बनाया, उससे पता चलता है कि वे टेक्निकल एरिया में नहीं घुस पाने की वजह से कितना हताश हो गए थे।'
3 जनवरी आने तक बाकी बचे दो आतंकी एक रिहायशी इमारत की निचली मंजिल में जा छुपे, जिस वजह से उसी इमारत की पहली मंजिल पर मौजूद वायुसेना के पांच अधिकारी वहां फंस गए। उन अधिकारियों ने खुद को कमरों में बंद कर लिया और दरवाजों को फर्नीचरों से घेर दिया। आतंकियों के सफाए के अंतिम चरण शुरू होने से ठीक पहले एनएसजी कमांडो ने इन अधिकारियों को वहां से निकाला।
हाल ही में सरकार को सौंपी गई रिपोर्ट में सैन्य विशेषज्ञ इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि छह आतंकियों के इस जत्थे के दो आतंकियों को अन्य चार का गाईड बनकर उन्हें एयरफोर्स बेस के टेक्निकल एरिया तक ले जाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, जहां वायुसेना के लड़ाकू विमान और हेलिकॉप्टर रखे हुए थे। हमलावरों के इस जोड़े के पास कोई मशीनगन तो नहीं था, लेकिन उनके पास आईईडी और अमोनियम नाइट्रेट के अलावा बेहद तेजी से जलने वाला तरल था। उनकी मंशा ज्यादा से ज्यादा सैन्य साजो-सामान को नुकसान पहुंचाने की थी। आतंकियों की इस योजना को तो भारतीय जवानों ने नाकाम कर दिया, लेकिन इस हमले में सात जवान शहीद हो गए।
रिपोर्ट के मुताबिक, चार आतंकियों का जत्था 2 जनवरी की सुबह की 10 फुट ऊंची दीवार और कंटीली तारों को पार कर वायुसेना अड्डे में प्रवेश कर गया। टोही विमानों के थर्मल उपकरण के जरिये अगले दिन ही उनकी मौजूदगी का पता चल सका। वहीं दूसरा जत्था पहली जनवरी को ही एयरफोर्स बेस के अंदर पहुंच चुका था, हालांकि अभी तक यह नहीं पता चल पाया है कि वे वहां कैसे पहुंचे।
रिपोर्ट में कहा गया कि ये छह आतंकी कभी एक साथ थर्मल डिवाइस की पकड़ में नहीं आए। इससे इस बात की पुष्टि होती है कि ये हमलावर अलग-अलग दल में एयरफोर्स बेस में दाखिल हुए थे।
शनिवार 2 जनवरी के तड़के चार आतंकियों के पहले जत्थे ने कैफेटेरिया के पास गोलीबारी शुरू कर दी। सैन्य बलों ने तुरंत ही जवाबी कार्रवाई शुरू की, जिसकी वजह से ये आतंकी एक जगह ही फंसे रह गए। वे ना तो टेक्निकल एरिया तक जा पा रहे थे जहां सैन्य साजो-सामान और लड़ाकू विमान रखे थे और ना आवासीय क्षेत्र की तरफ ही, जहां करीब 1600 लोग रहा करते थे। ऐसे में सेना के हाथों मार गिराए जाने से पहले उन्होंने वहां खड़ी गाड़ियों और मोटरसाइकिलों को उड़ा दिया। आतंकियों के खिलाफ अभियान में शामिल एक वरिष्ठ अधिकारी ने एनडीटीवी को बताया, 'आतंकियों ने जिस तरह से असैन्य वाहनों को निशाना बनाया, उससे पता चलता है कि वे टेक्निकल एरिया में नहीं घुस पाने की वजह से कितना हताश हो गए थे।'
3 जनवरी आने तक बाकी बचे दो आतंकी एक रिहायशी इमारत की निचली मंजिल में जा छुपे, जिस वजह से उसी इमारत की पहली मंजिल पर मौजूद वायुसेना के पांच अधिकारी वहां फंस गए। उन अधिकारियों ने खुद को कमरों में बंद कर लिया और दरवाजों को फर्नीचरों से घेर दिया। आतंकियों के सफाए के अंतिम चरण शुरू होने से ठीक पहले एनएसजी कमांडो ने इन अधिकारियों को वहां से निकाला।
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