राज्यों के सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ों के लिए आरक्षण के अधिकार पर केंद्र की पुनर्विचार याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों के पीठ ने याचिका खारिज की. सुप्रीम कोर्ट ने अपने पांच मई के फैसले पर दायर केंद्र की पुनर्विचार याचिका पर विचार किया. फैसले में राज्यों के सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ों के लिए नौकरियों और शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश के लिए आरक्षण घोषित करने के अधिकार को खत्म कर दिया गया है. मामले की सुनवाई जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने की. पीठ में जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर, जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस एस रवींद्र भट शामिल हैं. पीठ ने केंद्र सरकार की उस अर्जी पर भी विचार किया जिसमें खुली अदालत में सुनवाई की मांग की गई है.
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट के पांच मई के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की है. सरकार ने साफ किया है कि संविधान में 102वां संशोधन ने राज्यों के सामाजिक और शैक्षिक पिछड़े चिह्नित करने के अधिकार को नहीं छीना है. इसके प्रावधानों से संघीय ढांचे को कोई नुकसान भी नहीं हुआ है. दरअसल पांच मई को जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने महाराष्ट्र में मराठा समुदाय के लोगों को अलग से आरक्षण देने का कानून रद्द कर दिया था.
पीठ ने इंदिरा साहनी फैसले के मुताबिक आरक्षण देने के बाद 50 प्रतिशत की सीमा निर्धारित किए जाने की याद दिलाई. पीठ ने ऐसी जरूरत नहीं समझी कि मराठा समुदाय को आरक्षण देने के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा को तोड़ा जाए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम इस याचिका पर सुनवाई के लिए कोई आधार नहीं पाते हैं. कोर्ट ने केंद्र की खुली अदालत में सुनवाई की मांग भी ठुकरा दी.
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