नई दिल्ली: यूजीसी ने आरक्षण की नीति पर किसी तरह के रोल बैक का खंडन किया है। यूजीसी का कहना है कि विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की भर्ती के मामले में सरकार के 2006 के आदेश का पालन किया जा रहा है जिसमें ओबीसी उम्मीदवारों के लिये केवल एंट्री लेवल पर आरक्षण है।
ओबीसी आरक्षण को लेकर बुधवार को एक तरफ यूजीसी के दफ्तर के सामने जेएनयू के छात्रों ने विरोध प्रदर्शन किया और दूसरी ओर लालू प्रसाद यादव ने ये ट्वीट किया कि यूजीसी ने आरक्षण नीति पर रोल बैक कर लिया है।
जेएनयू छात्रों का प्रदर्शन और ये ट्वीट यूजीसी के उस सर्कुलर के जवाब में था जिसमें विश्वविद्यालयों से ओबीसी उम्मीदवारों को केवल एंट्री लेवल पर ही आरक्षण का फायदा देने को कहा गया।
लेकिन यूजीसी ने एनडीटीवी इंडिया से कहा कि कमीशन ने वही किया है जो नियम चलते आ रहे हैं। असल में यूपीए-1 सरकार के वक्त केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने यूजीसी को चिट्ठी भेजी थी जिसमें इस नियम का जिक्र किया गया था कि विश्वविद्यालयों में ओबीसी उम्मीदवारों को एंट्री लेवल पर ही आरक्षण का फायदा दिया जाये।
इसके बाद जनवरी 2007 में यूजीसी ने ओबीसी उम्मीदवारों के लिये आरक्षण का फायदा एंट्री लेवल तक सीमित रखने के लिये चिट्ठी लिखी। तब एंट्री लेवल लेक्चरर का पद हुआ करता था जो अब असिस्टेंट प्रोफेसर का हुआ करता है।
एससी-एसटी का आरक्षण पहले से था लेकिन ओबीसी के लिये आरक्षण का प्रावधान 1990 के दशक में आया। ये चिट्ठी बताती है कि सरकार ने 2006 में ओबीसी उम्मीदवारों को केवल एंट्री लेवल पर ही आरक्षण की बात कही। जब ये चिट्ठी भेजी गई तो उस वक्त मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह हुआ करते थे। इस चिट्ठी के तीन महीने बाद जनवरी 2007 में यूजीसी ने इसे लागू किया गया। यूजीसी का मौजूदा सर्कुलर उन्हीं नियमों के तहत है। ये बात अलग है कि तमाम विश्वविद्यालयों में अनुसूचित जाति-जनजाति के वर्ग के साथ-साथ ओबीसी वर्ग की भी कई सीटें खाली ही रहती हैं। इस मामले में संसद के हर सत्र में सवाल भी उठते रहते हैं।