भारत में ऐसा कोई सर्वे नहीं जो सिगरेट का कैंसर से रिश्ता बताता हो : संसदीय समिति प्रमुख

नई दिल्ली:

धूम्रपान के खिलाफ अभियान में भारत पिछड़ रहा है। पिछले साल ही तंबाकू कंपनियों को निर्देश जारी किए गए थे कि 1 अप्रैल 2015 से सिगरेट के डिब्बे के 85 फीसदी भाग पर स्वास्थ्य संबंधी चेतावनी दी जाए। हालांकि संसदीय समिति ने इस मामले में और बातचीत की जरूरत बताई है, जिसके कारण तंबाकू कंपनियों के लिए राहत मिलती दिख रही है।

इस मामले में संसदीय समिति के प्रमुख और बीजेपी नेता दिलीप कुमार गांधी ने एनडीटीवी से बात करते हुए कहा कि सिगरेट और कैंसर के जुड़ाव के संबंध में कुछ स्वतंत्र सर्वे जरूर हुए हैं, लेकिन सिगरेट पीने से कैंसर होता है या नहीं, इसका स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है? इस मामले में हमने कभी कोई सर्वे नहीं किया।

यह तो सरकार पर निर्भर करता है कि उन्हें संसदीय समिति की सिफारिशों को मानना है या नहीं, लेकिन धूम्रपान के खिलाफ अभियान चलाने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं के अनुसार डेडलाइन के अनुसार चेतावनी को लागू नहीं करना अच्छे संकेत नहीं हैं।

वाल्युंटरी हेल्थ एसोसिएशन ऑफ इंडिया की एग्जक्यूटिव डायरेक्टर भावना मुखोपाध्याय का कहना है कि भारत जैसे देशों में जहां समाज का एक बड़ा हिस्सा पढ़ा-लिखा नहीं है, वहां पिक्टोरल वॉर्निंग समय की जरूरत है।

पिछले साल नवंबर में जब भारत सरकार ने सिगरेट खरीदने की न्यूनतम उम्र बढ़ाकर 25 साल करने और खुली सिगरेट बेचने पर रोक लगाने की बात कही थी, तो स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े तमाम लोगों ने इस फैसले का स्वागत किया था। इस योजना को स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा ने संसद में रखा था, लेकिन सरकार इस पर आगे नहीं बढ़ पाई है।

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भारत में हर साल करीब 9 लाख लोग तंबाकू जनित बीमारियों के कारण अपनी जान गंवा देते हैं और यह संख्या चीन के बाद दुनिया में दूसरे नंबर पर है। जानकारों का मानना है कि इस दशक के अंत तक यह आंकड़ा 15 लाख तक पहुंच जाएगा।