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This Article is From Nov 16, 2020

कई उतार-चढ़ाव के बावजूद नीतीश कुमार का राजनीतिक कद लगातार बढ़ता गया

नीतीश कुमार 70 के दशक में छात्र जीवन में ही जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति आंदोलन के दौरान राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय हो गए थे लेकिन उन्होंने मुख्यधारा की राजनीति में साल 1985 में कदम रखा

कई उतार-चढ़ाव के बावजूद नीतीश कुमार का राजनीतिक कद लगातार बढ़ता गया
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (फाइल फोटो).
नई दिल्ली:

नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने एक बार फिर मुख्यमंत्री (Chief Minister) के रूप में ताजपोशी के साथ बिहार (Bihar) की सत्ता संभाल ली है. वे पूर्व में केंद्रीय रेल मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री पद का सफर तय कर चुके हैं. वैसे तो नीतीश कुमार 70 के दशक में छात्र जीवन में ही जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति आंदोलन के दौरान राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय हो गए थे लेकिन उन्होंने मुख्यधारा की राजनीति में साल 1985 में कदम रखा. वे इस साल पहली बार विधायक चुने गए थे. इसके बाद कई उतार-चढ़ाव के बाद भी नीतीश का राजनीतिक कद लगातार बढ़ता गया. वे सांसद बने, केंद्रीय रेल मंत्री बने और फिर बिहार के मुख्यमंत्री बने. उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में आज सातवीं बार शपथ ग्रहण की. 

वैद्य राम लखन सिंह के बेटे नीतीश कुमार का जन्म एक मई 1950 को पटना के बख्तियारपुर में हुआ था. पटना इंजीनियरिंग कॉलेज से उन्होंने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की. छात्र जीवन में उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की. जयप्रकाश नारायण के सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन में उनकी सक्रिय भागीदारी थी. सन 1985 में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) पहली बार बिहार विधानसभा के सदस्य चुने गए थे. इसके बाद सन 1987 में उन्हें युवा लोकदल का अध्यक्ष बनाया गया था. साल 1989 में उन्हें बिहार में जनता दल का सचिव चुना गया. इसी साल वे बिहार से दिल्ली की ओर बढ़े और नौंवी लोकसभा में सांसद बने. 

नीतीश कुमार वर्ष 2000 से अब तक सात बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं. पहली बार वे तीन मार्च 2000 से 10 मार्च 2000 तक मुख्यमंत्री रहे. सात दिन के बाद ही बहुमत नहीं होने के कारण उन्होंने इस्तीफा दे दिया. इसके बाद वे 24 नवंबर 2005 से 24 नवंबर 2010 तक मुख्यमंत्री रहे. इसके बाद उन्होंने 26 नवंबर 2010 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. वे 19 मई 2014 तक इस पद पर रहे. मई 2014 में लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार की जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और जीतनराम मांझी को बिहार की गद्दी सौंप दी. हालांकि मांझी को उनकी पार्टी ने कुछ ही महीनों के बाद इस्तीफा देने के लिए कहा और 22 फरवरी 2015 को नीतीश कुमार फिर एक बार बिहार के मुख्यमंत्री बने.  

साल 2014 से 2017 के तीन वर्षों के दौरान बिहार में काफी राजनीतिक परिवर्तन देखने को मिले. लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए से नाता तोड़ने के बाद नीतीश कुमार को जब करारी हार का सामना करना पड़ा तो उन्होंने 2015 के विधानसभा चुनाव से पहले अपने धुर-विरोधी लालू यादव की पार्टी आरजेडी से गठबंधन किया. जेडीयू-आरजेडी-कांग्रेस के गठबंधन को शानदार जीत भी मिली. 20 नवंबर 2015 को नीतीश कुमार फिर एक बार मुख्यमंत्री बने. हालांकि यह गठबंधन ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाया. 26 जुलाई 2017 को उन्होंने इस्तीफा देते हुए फिर से अपने पुराने सहयोगी बीजेपी के साथ गठबंधन करने का फैसला किया. अगले ही दिन उन्होंने सीएम पद की शपथ ली. 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दोस्त और तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने नीतीश कुमार के एनडीए में वापसी कराने में अहम भूमिका निभाई थी. इस पूरे घटनाक्रम में सेतु का काम दोनों के भरोसेमंद और बिहार के वर्तमान जल संसाधन मंत्री संजय झा ने किया. वही अरुण जेटली का प्रस्ताव लेकर नीतीश कुमार के पास आए और यहीं से जेडीयू-बीजेपी गठबंधन की कहानी लिखी गई.

इस बार के विधानसभा चुनाव में एनडीए की घटक लोक जनशक्ति पार्टी नीतीश कुमार के विरोध में चुनाव मैदान में आ गई. पार्टी अध्यक्ष चिराग पासवान ने नीतीश को बहुत नुकसान भी पहुंचाया. लेकिन इसके बावजूद बीजेपी अपने वादे पर कायम रही और जेडीयू की सीटें बीजेपी से काफी कम होने के बावजूद मुख्यमंत्री की कुर्सी नीतीश कुमार को सौंपी.

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