
तेजस्वी यादव की कुर्सी पर उनके नाम की नेमप्लेट लगी थी.
- कौशल विकास कार्यक्रम में तेजस्वी को भी आना था
- आरक्षित सीट पर उनकी नेमप्लेट भी लगी थी
- उनकी अनुपस्थिति को मौजूदा सियासी गतिरोध से जोड़कर देखा जा रहा
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पटना:
महागठबंधन में तनातनी के बीच शनिवार को पटना में आयोजित कौशल विकास कार्यक्रम में उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव नहीं पहुंचे. हालांकि तय कार्यक्रम के मुताबिक उनको भी वहां आना था. आरक्षित सीट पर उनकी नेमप्लेट भी लगी थी. लेकिन जब वह नहीं पहुंचे तो उनकी नेमप्लेट को ढंक दिया गया. इसको सत्तारूढ़ महागठबंधन में राजद और जदयू के बीच बढ़ती खटास के रूप में देखा जा रहा है. दरअसल शुक्रवार को लालू प्रसाद यादव की इस घोषणा के बाद बिहार की सियासत में संकट गहरा गया है कि तेजस्वी यादव इस्तीफा नहीं देंगे.
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अब इस फैसले के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर दबाव बढ़ गया है. दरअसल मंगलवार को नीतीश कुमार ने भ्रष्टाचार के मामले में घिरे तेजस्वी यादव को खुद को बेदाग साबित करने का अल्टीमेटम देने के बाद स्पष्ट कर दिया था कि राजद को इस मसले पर निर्णायक रुख अपनाना होगा. इस बीच राजद के नेता मनोज झा ने कहा है कि यह दलों के बीच नहीं बल्कि जनता के बीच का गठबंधन है.
इन सबके बीच अब सबकी निगाहें नीतीश कुमार के रुख पर टिकी हैं. तेजस्वी के बारे में उनका निर्णय ही बिहार की सियासी भविष्य को तय करेगा. उधर दूसरी तरफ यह बात पाक-साफ सी दिखती है कि 66 साल की उम्र में नीतीश कुमार अपनी ईमेज को नए सिरे से गढ़ना चाहते हैं और इसके लिए वह प्रधानमंत्री बनने की ख्वाहिशों को फिलहाल तिलांजलि देने के इच्छुक भी दिखते हैं. दरअसल उनका यह पीएम पद की रेस में बने रहने का मंसूबा तभी पूरा हो सकता है जब वह बीजेपी के खिलाफ विपक्ष के एक बड़े नेता के रूप में बने रहें. लेकिन हालिया परिदृश्य को देखकर ऐसा लगता है कि नीतीश ने यह निश्चय कर लिया है कि फिलहाल इसकी कोई उपयोगिता नहीं है.
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अब इस फैसले के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर दबाव बढ़ गया है. दरअसल मंगलवार को नीतीश कुमार ने भ्रष्टाचार के मामले में घिरे तेजस्वी यादव को खुद को बेदाग साबित करने का अल्टीमेटम देने के बाद स्पष्ट कर दिया था कि राजद को इस मसले पर निर्णायक रुख अपनाना होगा. इस बीच राजद के नेता मनोज झा ने कहा है कि यह दलों के बीच नहीं बल्कि जनता के बीच का गठबंधन है.
इन सबके बीच अब सबकी निगाहें नीतीश कुमार के रुख पर टिकी हैं. तेजस्वी के बारे में उनका निर्णय ही बिहार की सियासी भविष्य को तय करेगा. उधर दूसरी तरफ यह बात पाक-साफ सी दिखती है कि 66 साल की उम्र में नीतीश कुमार अपनी ईमेज को नए सिरे से गढ़ना चाहते हैं और इसके लिए वह प्रधानमंत्री बनने की ख्वाहिशों को फिलहाल तिलांजलि देने के इच्छुक भी दिखते हैं. दरअसल उनका यह पीएम पद की रेस में बने रहने का मंसूबा तभी पूरा हो सकता है जब वह बीजेपी के खिलाफ विपक्ष के एक बड़े नेता के रूप में बने रहें. लेकिन हालिया परिदृश्य को देखकर ऐसा लगता है कि नीतीश ने यह निश्चय कर लिया है कि फिलहाल इसकी कोई उपयोगिता नहीं है.
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