जैसे-तैसे हम होटल पहुंचे, वहां दूसरे चैनल्स के साथी मौजूद थे। इनमें से कई हमारे जैसे दौर से गुजर कर वापस लौटे थे। सभी उदास थे, क्योंकि अपने साथियों के साथ अपनी जान जोखिम में डालकर हम सबने काफी विजुअल्स रिकॉर्ड किए थे, लेकिन इन्हें हम अपलिंक नहीं कर सकते थे, क्योंकि आंधी की वजह से डिशअप नहीं हो सकता और मोबाइल नेटवर्क के बैठने की वजह से इंटरनेट से चलने वाली 3जी यूनिट ने काम करना बंद कर दिया था। सभी की जुबां पर एक ही सवाल था कि आखिर इस तरह लूटपाट मची है। पुलिस प्रशासन और एनडीआरएफ कहां है। दावा तो ऐसा किया गया था कि जैसे कुदरत के इस कहर पर इंतजाम भारी पड़ेगा, लेकिन एक बार फिर वही ढाक के तीन पात।
वास्तविकता यह है कि उस दौरान आपातकालीन सेवाएं पूरी तरह से विफल हो गईं। लोगों की जानें इसलिए बचीं क्योंकि वे वक्त रहते सुरक्षित जगहों तक पहुंच गए और इस कोशिश के लिए स्थानीय प्रशासन की प्रशंसा करनी चाहिए। तभी पता चला कि हमारा ड्राइवर गाड़ी पार्किंग में छोड़ कर भाग गया है। वह दो दिनों के बाद चुपचाप गाड़ी वहां से ले गया।
एनडीटीवी की दूसरी टीम एक दूसरे होटल में रुकी थी, जो कि लगभग हमारे होटल से पांच किलोमीटर दूर था। अंधेरा, आंधी, तेज़ बारिश सड़क पर रुकावट और मोबाइल नेटवर्क के बंद होने से हम लोग एक-दूसरे से संपर्क नहीं कर पा रहे थे। तमाम कोशिशों के बावजूद हम विजुअल्स नहीं भेज सकते, यह तय था। इसी बीच जिस होटल में हम रुके थे, उन्होंने हम सबको चाय पिलाई। साथ यह भी कि खाने की चिंता हम न करें, बुफे का इंतजाम 250 रुपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से किया गया है। यह एक बड़ी राहत थी। हम सभी ने केजी हॉस्पिटल के सामने बने इस होटल विन्सर पैलेस के प्रबंधन का धन्यवाद किया। अगर वह चाहते तो मनमानी रकम वसूल सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया बल्कि यह भी कहा कि 3 घंटे के लिए जनरेटर चलाया जाएगा ताकि हम अपने उपकरणों की बैटरी चार्ज कर सकें और पानी टंकी तक पहुंचाया जा सके। खैर, डिनर हमने तयशुदा वक्त पर करने की हिदायत होटल की तरफ से दी गई थी।
रात तकरीबन 9.00 बजे थे। हम डाइनिंग हॉल पहुंचे, वहां हमें पुलिस के तीन बड़े अधिकारी दिखे वे भी भोजन करने आए थे। होटल के मेहमान थे, क्योंकि स्थानीय पुलिस सर्किल से थे। मैंने उनसे शहर के हालात के बारे में पूछा तो उनका जवाब था कि वायरलेस नेटवर्क बैठ चुका है इसलिए वे कुछ भी नहीं जानते। कुछ ऐसा ही हाल सैटेलाइट फोनों का भी हुआ था।
रात का भोजन करने के बाद सभी रिपोर्टर्स और कैमरामैन तकरीबन 12.30 बजे तक इस उम्मीद के साथ बैठे रहे कि आंधी थमने की फुटेज भेजें, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। तेज गड़गड़ाहट की आवाज से चलने वाली आंधी ने सोने भी नहीं दिया इसलिए कि कभी हमारे होटल का शीशा आंधी उड़ा ले जाती तो कभी बगल में ऐसा कुछ होता, जो एक बेहद डरावना अहसास था, जब कोई चीज उड़कर तेजी से होटल या आसपास के मकान से देर रात टकराती तो ऐसा लगता जैसे भूकंप आ गया हो। जैसे-तैसे रात बीत गई।
13 अक्टूबर को हुदहुद तूफ़ान के बाद की पहली सुबह
सुबह 5.30 के आसपास तूफान थम गया। जल्दी-जल्दी फुटेज अपलिंक किया। तभी सामने के केजी हॉस्पिटल पर नजर पड़ी तो देखा की काफी मरीजों के तीमारदार परेशान से घूम रहे हैं। जब मैं उनसे मिला तो भाषा की समस्या खड़ी हो गई वे तेलगु भाषी थे। मेरे सहयोगी गोविंद तेलगु जानते हैं इसलिए समस्या का फौरन समाधान हो गया। पता चला कि पिछले 24 घंटो से डॉक्टर हॉस्पिटल में दिखे ही नहीं। कई वार्ड्स ऐसे मिले जहां कांच बिखरा था। कांच मरीजों के बैड पर भी गिरा था। जान बचाकर वे वहां से हट गए, लेकिन हॉस्पिटल में मरीजों को न तो खाना मिला न दवा। उनकी हालत खराब थी। जगह-जगह से मलमूत्र की गंध आ रही थी। कुल मिलाकर मरीजों को उनकी हालत पर ही छोड़ दिया गया था।
एक बात तो साफ थी कि प्रशासन तूफान से पहले जितना चुस्त था, तूफान के दौरान और बाद में उतना चुस्त नहीं दिखा। नतीजा ये हुआ कि तूफान के दौरान कई दूकानें लुटीं और तूफान के बाद कालाबाजारी ने लोगों का जीना मुश्किल कर दिया। पेट्रोल और डीजल के दाम 20 से 25 रुपये लिटर बढ़ गया। पेट्रोल पंप पर लम्बी कतारें लगने लगीं।
इसी बीच विशाखापत्तनम हवाई अड्डे की तस्वीर सामने आई। वह तहस-नहस हो चुका था। चिड़ियाघर भी तबाह हो चुका था हालांकि जानवरों को सुरक्षित जगहों तक पहुंचा दिया गया था फिर भी तीन हिरनों की मौत हो गई। समंदर, पहाड़ियों और पेड़ों की वजह से बेहद खूबसूरत विशाखापत्तनम तबाह हो चुका था। 30 हजार पेड़ गिरकर मलबे में तबाह हो गए। इसका पर्यावरण पर कितना बुरा असर पड़ेगा यह बताने की जरूरत नहीं। विशाखापत्तनम में लगी मूर्तियां धराशायी हो चुकी हैं। बंदरगाह की दीवार टूट चुकी थी। कुछ घंटो के तूफान ने एक खूबसूरत तटीय शहर को वीरान कर दिया।
हुदहुद तूफान के बाद का विशाखापत्तनम
शहर में हर जगह पेड़, खंभे, मूर्तियां और सिग्नल लाइट्स गिरे हुए थे। ऐसे में प्रशासन ने कुछ खास रास्तों की सफाई पर विशेष ध्यान दिया। इसकी वजह बाद में पता चली। मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू जायजा लेने आ रहे थे। पुलिस बंदोबस्त उनकी सुरक्षा और रास्ते की साफ़ सफाई में लगा तो असामाजिक तत्वों को मौका मिल गया। राहत सामग्री की लूट मच गई, जिसके हाथ जो लगा वह ले भागा और जो लूटा उसे कई गुना ज्यादा कीमत पर बेचा। कहीं प्याज लूटा गया तो कहीं पानी के पैकेट्स, कहीं सब्जी तो कहीं दूसरी चीजें।
इसी बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दौरे की खबर आई। सुरक्षा कवच तैयार करने में और सुरक्षाकर्मियों को लगाया गया, इसके बावजूद कलेक्टर ऑफिस के पास उनकी सुरक्षा से समझौता लिया गया। प्रधानमंत्री की गाड़ी से महज़ 1-2 फीट की दूरी पर निजी गाड़ियां खड़ी रहीं और लोग उनसे महज कुछ कदम दूर थे। नरेन्द्र मोदी ने 1000 करोड़ रुपये की अंतरिम राहत तो दे दी है, लेकिन जरूरत रुपये के साथ-साथ सीख लेने की भी है।
बिजली पानी जरूरी समानों की आपूर्ति न होने और सुरक्षाकर्मियों की कमी की वजह से अफरातफरी कई दिनों तक जारी रही। पता नहीं कब हम सबक लेंगे एक बेहतर आपदा प्रबंधन के लिए।
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