यह ख़बर 22 अक्टूबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

निहाल किदवई की कलम से : हुदहुद की यादें, पार्ट-4

हुदहुद से मची तबाही का दृश्य

विशाखापट्टनम से लौटकर:

हर पल हालात बद से बदतर हो रहे थे और हम शहर की तरफ लौटने की कोशिश में जुटे थे। हम आगे बढ़ रहे थे, लेकिन यह तय नहीं कर पा रहे थे कि आगे बढ़ना सही है या नहीं, क्योंकि आंधी बार-बार कार को इस तरह हिला देती, जैसे अब वह पलटने वाली है। तभी एम्बुलेंस एक-दूसरे के आमने-सामने खड़ी दिखी। हमने अपनी गाड़ी उसके बीच में लगा दी। तब जाकर सुकून मिला। हम वहीं अगले 3 घंटे तक फंसे रहे। ऑफिस से संपर्क तो दूर ओबी वैन जो पीछे खड़ी थी, उससे भी संपर्क नहीं हो पा रहा था।

विजिबिलिटी 3-4 फीट से कम की रह गई थी। तभी 20-25 युवाओं और बच्चों का एक दल सड़क पर दौड़ता भागता दिखा। हम आपस में बात करने लगे कि आखिर यह उतावलापन किस लिए है। हमें फौरन जवाब मिल गया कि ये लोग दुकान लूटने लगे। शायद एक घंटे में दुकान खाली हो गई थी इस लिए वे लड़के गायब हो गए। धुंध इतनी थी कि हम इसे रिकॉर्ड नहीं कर पा रहे थे। अब 4 बज चुके थे। हम अब भी जहां के तहां खड़े थे। आंधी विश्वास को डगमगा रही थी। मनोरंजन भारती जी और सुनील सैनी जी ने बार-बार कहा था कि जोखिम उठाने की जरूरत नहीं है। खुद की हिफाजत पहले करें, इसके बावजूद मैंने अपने साथ पांच और लोगों को इस भंवर में फंसा दिया। इसका मुझे अफसोस हुआ, लेकिन अब यह हो चुका था। भले ही मेरी बेवकूफी ही क्यों न। वैसे इस पेशे में रिस्क तो लेना ही पड़ता है।

मेरे सहयोगी कैमरामैन गोविन्द मूर्ति को कोई गिला नहीं था। ओबी इंजीनियर सुरेश और दोनों ड्राइवर कया सोच रहे थे, मैं नहीं जानता, लेकिन बाद में उन्होंने भी कोई शिकायत नहीं की।

मोबाइल नेटवर्क पूरी तरह बैठ चुका था। इसी बीच आंधी की रफ्तार थोड़ी थमी तो मैंने होटल की दिशा पकड़ ली और मेरे पीछे ओबी वैन भी चल पड़ी।

होटल तक तकरीबन 9 किलोमीटर की दूरी हमने 2 घंटे में पूरी की, क्योंकि रास्ते में या तो पानी भरा था या इन पर पेड़ो, पोल्स और होर्डिंग पड़े थे। सभी लोग खुद ही रास्ता निकाल रहे थे और इन सबके बीच डरावना दृश्य तब देखने को मिला जब छोटी गाड़ियों के टायर सड़क पर तेज़ रफ्तार से दौड़ते नजर आए शायद किसी ट्यूब रिपेयर शॉप से आंधी इन्हें खींच लाई थी। रास्ते में हमें सैकड़ों स्कूटी और बाइक बगैर किसी सवार के हवा की रफ्तार के साथ इधर-उधर गिरती पड़ती दिखाई दीं।

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इन सबके साथ चलने वाली तेज हवा की वजह से होने वाली आवाज अंधेरे में किसी रोमांचक भूत फिल्म के बैकग्राउंड में बजने वाले संगीत से कम नहीं थी। ऐसे में मौसम ने जो चुनौती खड़ी की थी, उससे निकलकर सकुशल होटल पहुंचना पूरी टीम के साथ एक अग्नि परीक्षा से कम नहीं था।