नागरिकता संशोधन कानून की हिमायत में यह दावा किया जा रहा है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश से आए सारे हिंदू शरणार्थी हिंदू होने की वजह से सताए हुए हैं जबकि मुसलमान वहां से रोज़गार के लिए आए हैं. लेकिन हमें ऐसे तमाम हिंदू शरणार्थी भी मिल रहे हैं जो इस दावे के विपरीत दूसरी वजहों से भारत आए. एक किताब पाकिस्तान से भारत आए 80 हिंदू शरणार्थियों की दास्तान सुनती है. किताब का दावा है कि हिंदू होने की वजह से उन पर इतना अत्याचार हुआ कि वे भागकर भारत आ गए. सरकारी दावे की हिमायत में इसका प्रचार किया जा रहा है.
उक्त पुस्तक में अलीगढ़ की कमली देवी की कहानी है. किताब कहती है कि ''पाकिस्तान में वो धार्मिक उत्पीड़न का शिकार थीं. हिंदू होने की वजह से बात-बात में बेइज़्ज़त किया जाता था. औरतों से बलात्कार आम बात थी. बच्चों का अपहरण हो रहा था. धर्म परिवर्तन को मजबूर किया जा रहा था. मजबूर होकर भारत आना पड़ा.''
लेकिन कमली देवी ने NDTV से कहा कि उनके मामा भोपाल में रहते थे. उनके बच्चे नहीं थे इसलिए उनकी मां ने उन्हें मामा को दे दिया था. बाद में उन्होंने अलीगढ़ में उनकी शादी की. कमली देवी को नागरिकता नहीं मिली है लेकिन उन्होंने कविता सोनवानी के नाम से वोटर आईडी और आधार कार्ड वगैरह बनवा लिया है. शरणार्थी कमली देवी ने बताया कि वे सन 1978 में भारत आई थीं. उन्होंने कहा कि ''ऐसे ही घूमने आए थे. हमारे मम्मी-पापा, भाई-बहन आए थे साथ में.'' यहां रहने के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि वे अपने मामा के पास रहीं. उन्होंने कहा कि ''हमारे मामा के पास मम्मी छोड़ गईं. उनके पास अपना बच्चा नहीं था.''
इस किताब में मीना बाई की भी कुछ ऐसी ही कहानी दर्ज है, जो अब नई बस्ती अलीगढ़ में रहती हैं. किताब मीना बाई की आपबीती कुछ यूं बताती है- ''पाकिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा. हिंदू होने की वजह से बात-बात पर बेइज्जत किया जाता.औरतों से जोर-जबरदस्ती होती. बच्चों का अपहरण होने लगा और धर्म परिवर्तन के लिए ज़ुल्म किया गया. मजबूर होकर भारत आ गईं.''
मीना बाई के पास नागरिकता नहीं है लेकिन उन्होंने शोभा देवी के नाम से वोटर आईडी और आधार कार्ड बनवा लिया है. 30 साल से वोट भी डाल रही हैं. उन्होने NDTV से कहा कि उनके साथ कोई ज़ुल्म नहीं हुआ. दूसरों के साथ अब होता है. उनसे आपबीती पूछने पर उन्होंने कहा कि ''हमारे सामने इतना नहीं होता था. अब तो ज़्यादा, बहुत ज्यादा हो रहा है.'' यह पूछने पर कि कैसे पता कि जुल्म बढ़ गया है, उन्होंने कहा, ''नहीं हमारे साथ कुछ नहीं हुआ है. और परिवारों के साथ हो रहा है, जो सब देख रहे हैं. हमारे साथ ऐसा कुछ नहीं है.''
लेकिन ऐसे भी कई हैं जो अपराधियों के निशाने पर होने की वजह से यहां आए. राजेश कुमार आगरा में एक फोटो स्टूडियो चलते हैं. उनके दादा 1990 में उन्हें लेकर आए थे.
शरणार्थी राजेश मिश्रा बताते हैं कि ''वहां उस टाइम डकैती की ज़्यादा प्राब्लम चल रही थी.जो हिंदू पैसे वाले थे हमारे आसपास, उनके बच्चों को ले जाते थे उठाकर, कभी बीस लाख...40 लाख..जैसी फिरौती. मेरे फादर न होने की वजह से ग्रेंड फादर…इनसेक्योर फील करते थे. हम छोटे थे. यहां दादा जी के साले साहब रहते थे. उनके यहां छोड़ गए, आगरा में.''
संतराम दास पाकिस्तान के सिंध प्रांत से आगरा आए हैं. यहां अपना बिजनेस है. कहते हैं कि बाबरी मस्जिद तोड़ने पर वहां हिंसक प्रतिक्रिया हुई तो यहां आ गए. संतराम दास ने कहा कि ''जब अयोध्या कांड हुआ था तो हमारा सब कुछ वहां पर खत्म हो गया. दुकान जलाई गईं हिंदुओं की. छह-सात मंदिर थे..वहां पर खंडहर बना दिए गए. और गवर्नमेंट ने कराया. बहुत सारे हिंदू भागे वहां से. भागकर यहां इंडिया में आए.''
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