पहले तो जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की सरकार ने एक अध्यादेश जारी कर कहा कि राज्य में तिरंगे का साथ राज्य का झंडा सरकारी इमारतों और वाहनों पर फहराना जरूरी होगा, लेकिन देर रात एक और आदेश जारी कर कहा कि फिलहाल ऐसा जरूरी नहीं है। सरकार ने तर्क दिया है कि पहले गलती से आदेश जारी कर दिया गया था।
इससे पहले जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद ने बीजेपी को एक और झटका दिया था हालांकि विवाद बढ़ते ही सरकार ने फैसला वापस ले लिया। पहले राज्य सरकार ने एक आदेश जारी कर कहा था कि अब राज्य में संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों तथा उन सभी इमारतों पर जहां भारतीय तिरंगा फहराया जाता है वहां पर तिरंगे के साथ ही राज्य का झंडा भी फहराना जरूरी होगा। ऐसा न करने पर सजा का प्रावधान रखा गया है। मुफ्ती सरकार का यह फैसला बीजेपी की उस मांग और उस नारे का ‘जवाब’ माना जा रहा था, जिसमें वह राज्य से दो संविधान और दो निशान हटाने की मांग करती रही है।
खबर है कि मुफ्ती सरकार के इस अध्यादेश को लाने की वजह है कि बीजेपी के कुछ मंत्री अपने सरकारी वाहनों से राज्य का झंडा लगाने में आनाकानी कर रहे थे। वैसे जम्मू-कश्मीर में राज्य का अपना संविधान होने के कारण सरकारी वाहनों और सरकारी इमारतों पर तिरंगे के साथ ही राज्य का झंडा को भी फहराना जरूरी होता है। सरकार ने यह कदम 1952 में हुए दिल्ली समझौते को लागू करते हुए उठाया है। कहा जा रहा है ये आदेश फिर मुफ्ती के कहने पर ही जारी हुआ था, क्योंकि उनके पास ही सामान्य प्रशासनिक विभाग का कार्यभार भी है। इस अध्यादेश के मुताबिक, अगर कोई राज्य का झंडा का अपमान करता है या फिर उससे जुड़े निर्देशों का पालन नहीं करता है तो उसके खिलाफ ठीक वैसी ही कार्रवाई की जाएगी जैसा कि तिरंगे के अपमान पर की जाती है।
वैसे इसको लेकर जम्मू-कश्मीर हाइकोर्ट में एक मामला भी चल रहा है, जिसमें सरकारी इमारतों और वाहनों पर राज्य का झंडा फहराना अनिवार्य तथा साथ ही राज्य का अपना गणतंत्र दिवस भी मनाने की मांग पर मामला चल रहा है।
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