मुंबई में हुई खोज की बदौलत अब 100 गुना तक कम हो सकती है MRI मशीनों की कीमत

मुंबई में हुई खोज की बदौलत अब 100 गुना तक कम हो सकती है MRI मशीनों की कीमत

मुंबई/नई दिल्‍ली:

वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि मुंबई में हुई एक महत्‍वपूर्ण खोज की बदौलत मैग्‍नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग यानी एमआरआई मशीनों की कीमत 100 गुना तक कम हो सकती है.

टाटा इंस्‍टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च के वैज्ञानिकों की एक टीम ने खोज की है कि बाइस्मथ (Bismuth) नाम की धातु बिना किसी प्रतिरोध के विद्युत को संचालित कर सकती है और इसका यह गुण इसे सुपरकंडक्‍टर बनाता है.

वैज्ञानिकों के अनुसार सुपरकंडक्‍टर होने का गुण किसी पदार्थ का अदि्वतीय गुण है जिसके कई उपयोग संभव हैं और इसे प्राप्‍त करना बेहद खर्चीला है. माना जा रहा है कि इस नई खोज के बाद 4 दशक पुरानी नोबेल पुरस्‍कार विजेता थ्‍योरी को पुनर्परिभाषित किया जाएगा जो बताती है कि धातु कैसे सुपरकंडक्‍टर बन जाते हैं.

मुंबई के टाटा इंस्‍टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च के प्रोफेसर एस रामकृष्‍णन कहते हैं, 'हम लोगों ने बाइस्मथ में सुपरकंडक्टिविटी की खोज की है और इसे समझाने के लिए हमें एक नई थ्‍योरी और एक नई व्‍यवस्‍था की जरूरत है. एक बार जब यह हो जाएगा तो शायद हमारे पास सुपरकंडक्‍टर्स की नई श्रेणी होगी.'

दशकों के नाकाम वैश्विक प्रयासों के बाद अब ये टीम इसे मूलभूत वैज्ञानिक खोज बता रही है. इस लक्ष्‍य को हासिल करने के लिए वैज्ञानिकों ने धातु बाइस्मथ को ब‍हुत ही ठंडे तापमान पर रखा, ताकि विद्युत के प्रति उसका सारा प्रतिरोध खत्‍म हो जाए.

वर्तमान में एमआरआई मशीनों में जिस सुपरकंडक्‍टर का इस्‍तेमाल होता है उसे मिश्रधातु नियोबियम-टाइटेनियम (Niobium-Titanium) से बनाया जाता है और एक अच्‍छी एमआरआई मशीन की कीमत करीब 10 करोड़ रुपये होती है.

खोजकर्ता टीम का कहना है कि इस खोज के अनुप्रयोगों में हो सकता है कि कुछ वर्ष लग जाएं लेकिन इतना जरूर है कि इससे उच्‍च गुणवत्ता वाली डाइअग्नास्टिक मशीनों की कीमत जरूर कम होगी.

टाटा इंस्‍टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च के असिस्‍टेंट प्रोफेसर डॉ. अरुमुगम कहते हैं, 'वर्तमान में ऐसी कोई थ्‍योरी नहीं है, जो बाइस्मथ के सुपरकंडक्‍टर गुण की व्‍याख्‍या कर सके. बाकियों की तुलना में यह बिल्‍कुल अलग किस्‍म की सुपरकंडक्टिविटी है. थ्‍योरिस्‍ट इसपर काम कर रहे हैं और शायद कुछ नई थ्‍योरी जल्‍द सामने आए. वर्तमान में एमआरआई स्‍कैन एक सुपरकंडक्‍टर चुंबक की बदौलत ही संभव हो पाता है, इसलिए इस खोज का अगले कुछ वर्षों में प्रायोगिक इस्‍तेमाल संभव है.

वैज्ञानिकों के अनुसार वर्तमान में एमआरआई मशीनों में जिस सुपरकंडक्‍टर का इस्‍तेमाल होता है उसे मिश्रधातु नियोबियम-टाइटेनियम (Niobium-Titanium) से बनाया जाता है और अगर बाइस्मथ से बने सुपरकंडक्‍टर का इस्‍तेमाल होगा तो एमआरआई मशीन की कीमत में 100 गुना की कमी आ सकती है.

वर्तमान में एक अच्‍छी एमआरआई मशीन की कमीत 10 करोड़ रुपये के करीब होती है. यह खोज साइंस जर्नल के ताजा अंक में प्रकाशित की गई है.


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