सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
1 फरवरी को जब वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बजट पेश करते हुए दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना का एलान किया तो सुनने में ये बेहद आकर्षक योजना लगी लेकिन जल्द ही इस योजना के क्रियान्वन पर सवाल भी खड़े हो गए. केंद्र ने इसका एलान तो कर दिया लेकिन अब वो राज्य जहां बीजेपी की सरकार नहीं है वो इससे काफ़ी नाराज़ है क्योंकि इस योजना को लागू करने के लिए केंद्र के साथ-साथ राज्यों को भी काफ़ी पैसा इसके लिए देना होगा.
हेल्थ बीमा योजना एक क्रांतिकारी कदम : केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा
स्वास्थ्य बीमा योजना में 50 करोड़ लोगों को 5 लाख सालाना बीमा का पूरा खर्च केन्द्र सरकार अपने कंधों पर नहीं लेगी. राज्य सरकारों को भी इसका 10 से 40 फीसदी तक बोझ सहना होगा. गैर बीजेपी राज्य विरोध में सरकार की महात्वाकांक्षी बीमा योजना के पक्ष में नहीं है. वहीं नीति आयोग ने कहा है कि इस योजना को लागू करने के लिए 11 हज़ार करोड़ लगेंगे. केरल और त्रिपुरा में सत्तारूढ़ सीपीएम का कहना है कि राज्यों के अपने स्वास्थ्य बजट और योजनाएं हैं. सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा कि केंद्र सरकार की प्रस्तावित बीमा योजना अव्यवहारिक है और उसे इसका बोझ राज्य सरकारों पर नहीं डालना चाहिए.
नीति आयोग के सदस्य विनोद पॉल ने बजट में घोषित बीमा योजना का रोडमैप बताते हुए शुक्रवार को एनडीटीवी इंडिया से कहा था कि प्रीमियम का बंटवारा केंद्र और राज्य सरकार के बीच होगा. लेकिन कम से कम गैर बीजेपी शासित राज्य इसके लिये तैयार नहीं दिख रहे.
Exclusive: नीति आयोग ने कहा, स्वास्थ्य बीमा योजना में 11-12 हजार करोड़ तक का आएगा सालाना खर्च
शुक्रवार को स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्डा ने पत्रकारों से कहा था कि 50 करोड़ लोगों को पांच लाख रुपये सालाना स्वास्थ्य बीमा देने की योजना की सारी रूपरेखा तैयार है. हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि यह योजना कैसे लागू होगी, प्रीमियम कितना होगा और पैसा कहां से आएगा.
उधर, बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी बजट की कड़ी आलोचना की है. टीएमसी के सांसद दिनेश त्रिवेदी ने प्रस्तावित बीमा योजना और प्रीमियम के बंटवारे पर कहा कि यह तो 'राज हमारा, खर्च तुम्हारा' जैसी बात है. मोदी सरकार ने हवाई किले बनाये हैं. वह अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों से पहले जनता को भ्रमित करने के लिये अव्यवहारिक वादे कर रही है और ऐसी योजनाओं का बोझ राज्यों पर डालना चाहती है.
VIDEO: सरकार की महात्वाकांक्षी बीमा योजना के विरोध में गैर बीजेपी राज्य
नीति आयोग के मुताबिक, योजना पहले तीन राज्यों में ही लागू होगी और इसका फायदा गरीब और ज़रूरत मंदों को होगा लेकिन रास्ते में व्यवहारिक, आर्थिक और राजनीतिक रोड़े साफ दिख रहे हैं.
हेल्थ बीमा योजना एक क्रांतिकारी कदम : केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा
स्वास्थ्य बीमा योजना में 50 करोड़ लोगों को 5 लाख सालाना बीमा का पूरा खर्च केन्द्र सरकार अपने कंधों पर नहीं लेगी. राज्य सरकारों को भी इसका 10 से 40 फीसदी तक बोझ सहना होगा. गैर बीजेपी राज्य विरोध में सरकार की महात्वाकांक्षी बीमा योजना के पक्ष में नहीं है. वहीं नीति आयोग ने कहा है कि इस योजना को लागू करने के लिए 11 हज़ार करोड़ लगेंगे. केरल और त्रिपुरा में सत्तारूढ़ सीपीएम का कहना है कि राज्यों के अपने स्वास्थ्य बजट और योजनाएं हैं. सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा कि केंद्र सरकार की प्रस्तावित बीमा योजना अव्यवहारिक है और उसे इसका बोझ राज्य सरकारों पर नहीं डालना चाहिए.
नीति आयोग के सदस्य विनोद पॉल ने बजट में घोषित बीमा योजना का रोडमैप बताते हुए शुक्रवार को एनडीटीवी इंडिया से कहा था कि प्रीमियम का बंटवारा केंद्र और राज्य सरकार के बीच होगा. लेकिन कम से कम गैर बीजेपी शासित राज्य इसके लिये तैयार नहीं दिख रहे.
Exclusive: नीति आयोग ने कहा, स्वास्थ्य बीमा योजना में 11-12 हजार करोड़ तक का आएगा सालाना खर्च
शुक्रवार को स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्डा ने पत्रकारों से कहा था कि 50 करोड़ लोगों को पांच लाख रुपये सालाना स्वास्थ्य बीमा देने की योजना की सारी रूपरेखा तैयार है. हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि यह योजना कैसे लागू होगी, प्रीमियम कितना होगा और पैसा कहां से आएगा.
उधर, बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी बजट की कड़ी आलोचना की है. टीएमसी के सांसद दिनेश त्रिवेदी ने प्रस्तावित बीमा योजना और प्रीमियम के बंटवारे पर कहा कि यह तो 'राज हमारा, खर्च तुम्हारा' जैसी बात है. मोदी सरकार ने हवाई किले बनाये हैं. वह अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों से पहले जनता को भ्रमित करने के लिये अव्यवहारिक वादे कर रही है और ऐसी योजनाओं का बोझ राज्यों पर डालना चाहती है.
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नीति आयोग के मुताबिक, योजना पहले तीन राज्यों में ही लागू होगी और इसका फायदा गरीब और ज़रूरत मंदों को होगा लेकिन रास्ते में व्यवहारिक, आर्थिक और राजनीतिक रोड़े साफ दिख रहे हैं.
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