एमके स्टालिन और राहुल गांधी.
नई दिल्ली:
क्या राहुल गांधी 2019 में प्रधानमंत्री पद के लिए विपक्ष के साझा उम्मीदवार हो पाएंगे? कल स्टालिन ने यह पेशकश कर कई विपक्षी दलों को असमंजस में डाल दिया.
डीएमके अध्यक्ष एमके स्टालिन के इस बयान "राहुल में मोदी सरकार को हराने की काबलियत है. तमिलनाडु की तरफ से 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के लिए मैं राहुल गांधी के नाम का प्रस्ताव रखता हूं," से विपक्षी खेमे में अचानक हलचल मच गई. इसके पहले तीन राज्यों के नतीजों के बाद असम के AIUDF नेता बदरुद्दीन अज़मल यही प्रस्ताव रख चुके हैं. बदरुद्दीन अज़मल ने NDTV से कहा, "राहुल गांधी अब विपक्ष की एकता का चेहरा बन गए हैं. अब विपक्षी दलों के पास कोई विकल्प भी नहीं है. अब राहुल गांधी को विपक्ष का नेतृत्व करना होगा."
लेकिन ज़्यादातर विपक्षी नेता अभी इसे समय से पहले उठाया गया सवाल मान रहे हैं. आरजेडी के प्रवक्ता मनोज झा ने कहा, "राहुल गांधी में तमाम काबलियत हैं, लेकिन राहुल भी नहीं चाहेंगे कि व्यक्तिवादी विमर्श में उलझकर सामूहिकता के मुद्दे गौण हो जाएं." जबकि तृणमूल कांग्रेस के सांसद सुखेंदु शेखर रॉय ने कहा, " मैं इस पर टिप्पणी नहीं करना चाहता हूं (विपक्ष का नेतृत्व कौन करेगा?) यह वक्त ही बताएगा."
यह भी पढ़ें : राजस्थान : शपथ समारोह में विपक्ष एकजुट, लेकिन अखिलेश और मायावती नदारद; जानिए- क्या हैं इसके मायने
बीजेडी नेता कहते हैं कि पार्टी की रणनीति बीजेपी सुप्रीमो नवीन पटनायक तय करेंगे और लीडरशिप का सवाल विपक्ष को मिलकर ही तय करना होगा. और लोकमत के हिसाब से यह सवाल तय होना चाहिए.
उधर टीआरएस की पेशकश है कि क्षेत्रीय दल एक फेडरल फ्रंट बनाएं. टीआरएस सांसद बी विनोद कुमार ने एनडीटीवी से कहा, "हम अगले कुछ दिन में एक फेडरल फ्रंट का आइडिया रखेंगे. हमारे नेता के चंद्रशेखर राव ने कई अहम क्षेत्रीय दलों के नेताओं से बात की है. राहुल गांधी को पीएम कैंडिडेट के तौर पर प्रोजेक्ट करने का स्टालिन का ऐलान उनकी निजी राय है. हमने उनसे मुलाकात कर उन्हें बताया है कि डीएमके को किसी भी राष्ट्रीय पार्टी सेहाथ नहीं मिलाना चाहिए."
खुद कांग्रेस को अहसास है कि इस मामले में फूंक-फूंक कर कदम बढ़ाना ही बेहतर होगा. सोमवार को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने इस पर कुछ भी बोलनेसे इनकार कर दिया.
VIDEO : स्टालिन ने राहुल को पीएम पद का दावेदार बताया
दरअसल डीएमके अध्यक्ष एमके स्टालिन ने समय से काफी पहले वह सवाल उठा दिया जिससे विपक्षी पार्टियां बचती रही हैं. फिलहाल उनकी पहली प्राथमिकता चुनावी नतीजे हासिल करना है. साथ ही उन्हें यह अहसास भी है कि नेतृत्व का सवाल तोड़ेगा ज्यादा, जोड़ेगा कम.
डीएमके अध्यक्ष एमके स्टालिन के इस बयान "राहुल में मोदी सरकार को हराने की काबलियत है. तमिलनाडु की तरफ से 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के लिए मैं राहुल गांधी के नाम का प्रस्ताव रखता हूं," से विपक्षी खेमे में अचानक हलचल मच गई. इसके पहले तीन राज्यों के नतीजों के बाद असम के AIUDF नेता बदरुद्दीन अज़मल यही प्रस्ताव रख चुके हैं. बदरुद्दीन अज़मल ने NDTV से कहा, "राहुल गांधी अब विपक्ष की एकता का चेहरा बन गए हैं. अब विपक्षी दलों के पास कोई विकल्प भी नहीं है. अब राहुल गांधी को विपक्ष का नेतृत्व करना होगा."
लेकिन ज़्यादातर विपक्षी नेता अभी इसे समय से पहले उठाया गया सवाल मान रहे हैं. आरजेडी के प्रवक्ता मनोज झा ने कहा, "राहुल गांधी में तमाम काबलियत हैं, लेकिन राहुल भी नहीं चाहेंगे कि व्यक्तिवादी विमर्श में उलझकर सामूहिकता के मुद्दे गौण हो जाएं." जबकि तृणमूल कांग्रेस के सांसद सुखेंदु शेखर रॉय ने कहा, " मैं इस पर टिप्पणी नहीं करना चाहता हूं (विपक्ष का नेतृत्व कौन करेगा?) यह वक्त ही बताएगा."
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बीजेडी नेता कहते हैं कि पार्टी की रणनीति बीजेपी सुप्रीमो नवीन पटनायक तय करेंगे और लीडरशिप का सवाल विपक्ष को मिलकर ही तय करना होगा. और लोकमत के हिसाब से यह सवाल तय होना चाहिए.
उधर टीआरएस की पेशकश है कि क्षेत्रीय दल एक फेडरल फ्रंट बनाएं. टीआरएस सांसद बी विनोद कुमार ने एनडीटीवी से कहा, "हम अगले कुछ दिन में एक फेडरल फ्रंट का आइडिया रखेंगे. हमारे नेता के चंद्रशेखर राव ने कई अहम क्षेत्रीय दलों के नेताओं से बात की है. राहुल गांधी को पीएम कैंडिडेट के तौर पर प्रोजेक्ट करने का स्टालिन का ऐलान उनकी निजी राय है. हमने उनसे मुलाकात कर उन्हें बताया है कि डीएमके को किसी भी राष्ट्रीय पार्टी सेहाथ नहीं मिलाना चाहिए."
खुद कांग्रेस को अहसास है कि इस मामले में फूंक-फूंक कर कदम बढ़ाना ही बेहतर होगा. सोमवार को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने इस पर कुछ भी बोलनेसे इनकार कर दिया.
VIDEO : स्टालिन ने राहुल को पीएम पद का दावेदार बताया
दरअसल डीएमके अध्यक्ष एमके स्टालिन ने समय से काफी पहले वह सवाल उठा दिया जिससे विपक्षी पार्टियां बचती रही हैं. फिलहाल उनकी पहली प्राथमिकता चुनावी नतीजे हासिल करना है. साथ ही उन्हें यह अहसास भी है कि नेतृत्व का सवाल तोड़ेगा ज्यादा, जोड़ेगा कम.
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