नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने टिप्पणी की कि राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण का वर्तमान स्तर 'चिंताजनक' स्थिति तक पहुंच गया है और यह 'गैस चैंबर में रहने' जैसा है। अदालत ने साथ ही केन्द्र और दिल्ली सरकार को इससे निपटने के लिए विस्तृत कार्य योजनाएं पेश करने का भी निर्देश दिया।
न्यायमूर्ति बदर दुरेज अहमद और न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा की पीठ ने पर्यावरण मंत्रालय और दिल्ली सरकार द्वारा दायर कार्य योजनाओं के बारे में कहा कि ये विस्तृत नहीं हैं, क्योंकि इनमें हर प्राधिकरण की स्पष्ट जिम्मेदारी तथा इन्हें करने के लिए समयसीमा नहीं है। पीठ ने उन्हें 21 दिसंबर को सुनवाई की अगली तारीख पर विस्तृत कार्य योजनाएं देने का निर्देश दिया।
अदालत ने कहा कि दिल्ली में वायु प्रदूषण के दो प्रमुख कारण धूल कण और वाहनों से निकलने वाला धुआं है। अदालत ने केन्द्र तथा दिल्ली सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि पहले कम से कम धूल सुनिश्चित किए बगैर किसी इमारत या सड़क का निर्माण नहीं हो।
अदालत ने दिल्ली सरकार को यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण के निर्देश के अनुसार, लोगों द्वारा खुले में कूड़ा और पत्तियां नहीं जलाई जाएं। पीठ ने शहर प्रशासन को प्रिंट, ऑडियो और विजुअल मीडिया के जरिए इस तरह के क्रियाकलापों पर प्रतिबंध के बारे में जानकारी देने का निर्देश दिया।