
नई दिल्ली:
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जिस लेटर ऑफ कंफर्ट के नाम पर खुले मंच से नौकरशाह शकुंतला गैमलिन पर बिजली कंपनी से सांठ-गांठ का आरोप लगाया था। अब यह जानकारी सामने आ रही है कि दो नौकरशाह, ने भी ऐसी ही चिट्ठियां बिजली कंपनियों को जारी की थीं। ये दोनों ही अरविंद केजरीवाल के करीबी बताए जाते हैं।
अब 2008 की एक चिट्ठी सामने आई है जिसमें वर्तमान में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के प्रमुख सचिव और सबसे भरोसेमंद नौकरशाह राजेंद्र कुमार ने भी ऐसी ही एक चिट्ठी एक बिजली कंपनी के लिए जारी की थी। यही नहीं, परिमल राय जिन्हें अरविंद केजरीवाल, मुख्य सचिव बनाना चाहते थे, वह भी 2011 में ऐसी ही चिट्ठी जारी कर चुके हैं।
इसी आरोप को आधार बनाकर सीएम केजरीवाल ने गैमलिन के दिल्ली में करीब 10 दिनों के लिए मुख्य सचिव पद पर नियुक्ति का विरोध किया था। उपराज्यपाल नजीब जंग ने गैमलिन की नियुक्ति की थी। यह विवाद इतना गहरा गया है कि अब दिल्ली में संवैधानिक संकट खड़ा होता दिखाई दे रहा है।
जानकारों का कहना है कि यह लेटर बिजली कंपनियों को दिल्ली सरकार को इसलिए जारी करना होता है क्योंकि बिजली कंपनियों में दिल्ली सरकार की 49 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। जानकार बताते हैं कि यह नियमित प्रक्रिया है कि जब भी बिजली कंपनियों को रुपये की जरूरत होती है तब वह इस प्रकार की चिट्ठी की आवश्यकता होती है, जिसे सरकारें देती रही हैं।
यह चिट्ठी एक प्रकार की अनापत्ति प्रमाण पत्र होता है और यह किसी प्रकार की सरकार की ओर से लोन की गारंटी नहीं होता है।
अब 2008 की एक चिट्ठी सामने आई है जिसमें वर्तमान में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के प्रमुख सचिव और सबसे भरोसेमंद नौकरशाह राजेंद्र कुमार ने भी ऐसी ही एक चिट्ठी एक बिजली कंपनी के लिए जारी की थी। यही नहीं, परिमल राय जिन्हें अरविंद केजरीवाल, मुख्य सचिव बनाना चाहते थे, वह भी 2011 में ऐसी ही चिट्ठी जारी कर चुके हैं।
इसी आरोप को आधार बनाकर सीएम केजरीवाल ने गैमलिन के दिल्ली में करीब 10 दिनों के लिए मुख्य सचिव पद पर नियुक्ति का विरोध किया था। उपराज्यपाल नजीब जंग ने गैमलिन की नियुक्ति की थी। यह विवाद इतना गहरा गया है कि अब दिल्ली में संवैधानिक संकट खड़ा होता दिखाई दे रहा है।
जानकारों का कहना है कि यह लेटर बिजली कंपनियों को दिल्ली सरकार को इसलिए जारी करना होता है क्योंकि बिजली कंपनियों में दिल्ली सरकार की 49 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। जानकार बताते हैं कि यह नियमित प्रक्रिया है कि जब भी बिजली कंपनियों को रुपये की जरूरत होती है तब वह इस प्रकार की चिट्ठी की आवश्यकता होती है, जिसे सरकारें देती रही हैं।
यह चिट्ठी एक प्रकार की अनापत्ति प्रमाण पत्र होता है और यह किसी प्रकार की सरकार की ओर से लोन की गारंटी नहीं होता है।
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