
शहीद भगत सिंह (फाइल फोटो)
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भगत सिंह ने फांसी से एक दिन पहले लिखा था खत.
फांसी से पहले भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव गले मिले थे.
भगत सिंह ने देश के नाम दिया था संदेश.
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सच तो ये है कि भगत सिंह 23 मार्च 1931 की उस शाम के लिए लंबे अरसे से बेसब्र थे. एक दिन पहले यानी 22 मार्च 1931 को अपने आखिरी पत्र में भगत सिंह ने इस बात का ज़िक्र भी किया था. भगत सिंह ने खत में लिखा, ‘साथियों स्वाभाविक है जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए. मैं इसे छिपाना नहीं चाहता हूं, लेकिन मैं एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूं कि कैंद होकर या पाबंद होकर न रहूं. मेरा नाम हिन्दुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है. क्रांतिकारी दलों के आदर्शों ने मुझे बहुत ऊंचा उठा दिया है, इतना ऊंचा कि जीवित रहने की स्थिति में मैं इससे ऊंचा नहीं हो सकता था. मेरे हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ने की सूरत में देश की माताएं अपने बच्चों के भगत सिंह की उम्मीद करेंगी. इससे आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना नामुमकिन हो जाएगा. आजकल मुझे खुद पर बहुत गर्व है. अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतजार है. कामना है कि यह और नजदीक हो जाए.’
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कहते हैं फांसी से पहले भगत सिंह ने बुलंद आवाज में देश के नाम एक संदेश भी दिया था. उन्होंने इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाते हुए कहा, मैं ये मानकर चल रहा हूं कि आप वास्तव में ऐसा ही चाहते हैं. अब आप सिर्फ अपने बारे में सोचना बंद करें, व्यक्तिगत आराम के सपने को छोड़ दें, हमें इंच-इंच आगे बढ़ना होगा. इसके लिए साहस, दृढ़ता और मजबूत संकल्प चाहिए. कोई भी मुश्किल आपको रास्ते से डिगाए नहीं. किसी विश्वासघात से दिल न टूटे. पीड़ा और बलिदान से गुजरकर आपको विजय प्राप्त होगी. ये व्यक्तिगत जीत क्रांति की बहुमूल्य संपदा बनेंगी.
फांसी दिए जाने से पहले भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव से उनकी आखिरी ख्वाहिश पूछी गई. तीनों ने एक स्वर में कहा कि हम आपस में गले मिलना चाहते हैं. इजाजत मिलते ही ये आपस में लिपट गए.
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