यह ख़बर 25 जुलाई, 2011 को प्रकाशित हुई थी

कारगिल शहीद को पिता की अनोखी श्रद्धांजलि

खास बातें

  • पिछले बारह साल से लगातार सैकड़ों मील की दूरी तय कर वह उस उजड़ी और सुनसान जगह पर जाते हैं जहां उनका बेटा दुश्मनों से लोहा लेते हुए खेत हो गया था।
द्रास:

पिछले बारह साल से लगातार सैकड़ों मील की दूरी तय कर वह उस उजड़ी और सुनसान जगह पर जाते हैं जहां उनका बेटा दुश्मनों से लोहा लेते हुए खेत हो गया था। वह ऐसा सिर्फ अपने शहीद बेटे को याद करने के लिए नहीं बल्कि उससे किए गए एक वादे को पूरा करने के लिए भी करते हैं। अपनी इस मूक श्रद्धांजलि के द्वारा सेवानिवृत्त कर्नल वीएन थापर कारगिल युद्ध में शहीद हुए अपने बहादुर बेटे कैप्टन विजयंत थापर से किए गए उस वादे को पूरा करते हैं जिसमें उनके बेटे ने जीवन के अंतिम क्षणों में कहा था कि अगर हो सके तो वह उस जगह आकर देखें जहां भारतीय सेना उनके और देश के भविष्य के लिए लड़ रही है। विजयंत भारतीय सेना के 2 राजपूताना राइफल्स में थे और कारगिल लड़ाई के वक्त उनकी तैनाती डर्टी डजन नामक उस बारह सदस्यीय दल में हुई थी जिसका काम बैटल ऑफ थ्री पिंपल्स के दौरान पहाड़ी पर कब्जा करना था। इसी युद्ध के दौरान बाईस वर्षीय विजयंत शहीद हो गए थे। वीएन थापर कहते हैं, जब विजयंत के कंपनी कमांडर मेजर पी आचार्य शहीद हो गए तो उसने कमांड अपने हाथ में ले ली। सेना में उसने सिर्फ छह महीने व्यतीत किए थे। वह उन अधिकारियों में था जो काफी कम उम्र में ही शहीद हो गए।


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