जस्टिस कर्णन को कोर्ट के समक्ष पेश होने का तीन हफ्ते का वक्त दिया है.
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट की नोटिस के बावजूद जस्टिस कर्णन सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में पेश नहीं हुए. लिहाजा सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस कर्णन को पेश होने का मौका देते हुए उनको तीन हफ्तों का वक्त दिया. अब इस मामले की अगली सुनवाई दस मार्च को होगी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें ये कारण नहीं पता कि जस्टिस कर्णन कोर्ट में पेश क्यों नहीं हुए. इसलिए हम इस मामले की फिलहाल सुनवाई नहीं कर रहे हैं. हम जस्टिस कर्णन से कुछ सवालों के जवाब चाहते हैं.
इसके साथ ही चीफ जस्टिस खेहर ने चेतावनी दी कि अगर कोई वकील इस केस में जज के वकालतनामे के बिना पेश होगा तो उसके खिलाफ कार्यवाही होगी. मामले की सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने जस्टिस कर्णन ने सुप्रीम कोर्ट को लिखी चिट्ठी पर सवाल उठाए. उसमें जस्टिस कर्णन ने सुप्रीम कोर्ट पर ही गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि दलित होने की वजह से उनको निशाना बनाया जा रहा है. इसलिए सुप्रीम कोर्ट को कार्यवाही करनी चाहिए ताकि आम लोगों में न्यायपालिका पर भरोसा बना रहे.
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में सात जजों की संवैधानिक पीठ कलकत्ता हाईकोर्ट के जज जस्टिस सीएस कर्णन के खिलाफ अवमानना के मामले पर सुनवाई कर रही है. इससे पहले पीठ ने जस्टिस कर्णन को नोटिस जारी कर 13 फरवरी को पेश होने को कहा था और उनके न्यायिक और प्रशासनिक कामों पर रोक लगा दी थी. वहीं जस्टिस कर्णन ने इस नोटिस पर सवाल उठाते हुए कहा है कि संविधान पीठ को जज के खिलाफ अवमानना नोटिस जारी करने का अधिकार नहीं है. उन्होंने आरोप लगाया है कि दलित होने की वजह से उनके साथ ऐसा किया जा रहा है.
दरअसल 23 जनवरी को जस्टिस कर्णन ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के वर्तमान 20 जजों की लिस्ट भेजी थी और भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए जांच की मांग की थी. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर संज्ञान लेते हुए जस्टिस कर्णन को अवमानना नोटिस जारी किया था. नौ फरवरी को कलकत्ता हाई कोर्ट के जस्टिस सीएस कर्णन ने सुप्रीम कोर्ट से अवमानना नोटिस जारी होने के बाद इस कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को खत लिखा. इस खत में कहा गया है कि हाई कोर्ट के मौजूदा जस्टिस के खिलाफ कार्यवाही सुनवाई योग्य नहीं है. जस्टिस कर्णन ने यह भी कहा कि मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस जगदीश सिंह खेहर के रिटायर होने के बाद होनी चाहिए. अगर बहुत जल्दी हो तो मामले को संसद रेफर किया जाना चाहिए. इस दौरान न्यायिक और प्रशासनिक कार्य वापस कर दिए जाने चाहिए. चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अगुआई वाली सात जजों की बेंच पर सवाल उठाते हुए जस्टिस कर्णन ने उन पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाया है.
न्यायपालिका के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है जब हाई कोर्ट के मौजूदा जज को सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच ने अवमानना नोटिस जारी किया है. पहली बार ऐसा होगा जब हाई कोर्ट के मौजूदा जज सुप्रीम कोर्ट के जजों के सामने अवमानना के मामले में पेश होंगे. सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाई कोर्ट के जस्टिस सीएस कर्णन को निर्देश दिया है कि वह 13 फरवरी को कोर्ट के सामने पेश हों. साथ ही उन्हें जूडिशल और ऐडमिनिस्ट्रेटिव काम से भी रोक दिया गया है.
जस्टिस कर्णन ने चार पेज के खत में लिखा है कि उन्होंने कोर्ट में अनियमितता और अनैतिकता का मामला उठाया है, ''इस मामले में 20 जजों के खिलाफ रिप्रजेंटेशन दिया गया था. उनका मकसद कोर्ट में करप्शन को खत्म करना है. वो कोर्ट के शिष्टाचार को खराब नहीं कर रहे. वो खुद भी जज हैं और ऐसे में जजों की लिस्ट भेजने के मामले में उनके खिलाफ लिया गया संज्ञान उचित नहीं है.'' उन्होंने यह भी कहा कि हाई कोर्ट के सिटिंग जज के खिलाफ संज्ञान लेते हुए अवमानना नोटिस जारी नहीं किया जा सकता.
जस्टिस कर्णन ने कहा है कि बिना पक्ष सुने उनके खिलाफ ऐसा आदेश कैसे जारी किया जा सकता है. अवमानना नोटिस जारी करने से उनके संवैधानिक अधिकार प्रभावित हुए हैं. इससे समानता का अधिकार और राइट टू डिग्निटी प्रभावित हुआ है.
इसके साथ ही चीफ जस्टिस खेहर ने चेतावनी दी कि अगर कोई वकील इस केस में जज के वकालतनामे के बिना पेश होगा तो उसके खिलाफ कार्यवाही होगी. मामले की सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने जस्टिस कर्णन ने सुप्रीम कोर्ट को लिखी चिट्ठी पर सवाल उठाए. उसमें जस्टिस कर्णन ने सुप्रीम कोर्ट पर ही गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि दलित होने की वजह से उनको निशाना बनाया जा रहा है. इसलिए सुप्रीम कोर्ट को कार्यवाही करनी चाहिए ताकि आम लोगों में न्यायपालिका पर भरोसा बना रहे.
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में सात जजों की संवैधानिक पीठ कलकत्ता हाईकोर्ट के जज जस्टिस सीएस कर्णन के खिलाफ अवमानना के मामले पर सुनवाई कर रही है. इससे पहले पीठ ने जस्टिस कर्णन को नोटिस जारी कर 13 फरवरी को पेश होने को कहा था और उनके न्यायिक और प्रशासनिक कामों पर रोक लगा दी थी. वहीं जस्टिस कर्णन ने इस नोटिस पर सवाल उठाते हुए कहा है कि संविधान पीठ को जज के खिलाफ अवमानना नोटिस जारी करने का अधिकार नहीं है. उन्होंने आरोप लगाया है कि दलित होने की वजह से उनके साथ ऐसा किया जा रहा है.
दरअसल 23 जनवरी को जस्टिस कर्णन ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के वर्तमान 20 जजों की लिस्ट भेजी थी और भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए जांच की मांग की थी. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर संज्ञान लेते हुए जस्टिस कर्णन को अवमानना नोटिस जारी किया था. नौ फरवरी को कलकत्ता हाई कोर्ट के जस्टिस सीएस कर्णन ने सुप्रीम कोर्ट से अवमानना नोटिस जारी होने के बाद इस कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को खत लिखा. इस खत में कहा गया है कि हाई कोर्ट के मौजूदा जस्टिस के खिलाफ कार्यवाही सुनवाई योग्य नहीं है. जस्टिस कर्णन ने यह भी कहा कि मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस जगदीश सिंह खेहर के रिटायर होने के बाद होनी चाहिए. अगर बहुत जल्दी हो तो मामले को संसद रेफर किया जाना चाहिए. इस दौरान न्यायिक और प्रशासनिक कार्य वापस कर दिए जाने चाहिए. चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अगुआई वाली सात जजों की बेंच पर सवाल उठाते हुए जस्टिस कर्णन ने उन पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाया है.
न्यायपालिका के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है जब हाई कोर्ट के मौजूदा जज को सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच ने अवमानना नोटिस जारी किया है. पहली बार ऐसा होगा जब हाई कोर्ट के मौजूदा जज सुप्रीम कोर्ट के जजों के सामने अवमानना के मामले में पेश होंगे. सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाई कोर्ट के जस्टिस सीएस कर्णन को निर्देश दिया है कि वह 13 फरवरी को कोर्ट के सामने पेश हों. साथ ही उन्हें जूडिशल और ऐडमिनिस्ट्रेटिव काम से भी रोक दिया गया है.
जस्टिस कर्णन ने चार पेज के खत में लिखा है कि उन्होंने कोर्ट में अनियमितता और अनैतिकता का मामला उठाया है, ''इस मामले में 20 जजों के खिलाफ रिप्रजेंटेशन दिया गया था. उनका मकसद कोर्ट में करप्शन को खत्म करना है. वो कोर्ट के शिष्टाचार को खराब नहीं कर रहे. वो खुद भी जज हैं और ऐसे में जजों की लिस्ट भेजने के मामले में उनके खिलाफ लिया गया संज्ञान उचित नहीं है.'' उन्होंने यह भी कहा कि हाई कोर्ट के सिटिंग जज के खिलाफ संज्ञान लेते हुए अवमानना नोटिस जारी नहीं किया जा सकता.
जस्टिस कर्णन ने कहा है कि बिना पक्ष सुने उनके खिलाफ ऐसा आदेश कैसे जारी किया जा सकता है. अवमानना नोटिस जारी करने से उनके संवैधानिक अधिकार प्रभावित हुए हैं. इससे समानता का अधिकार और राइट टू डिग्निटी प्रभावित हुआ है.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं