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This Article is From Jul 09, 2018

जज लोया की मौत के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा 

सुप्रीम कोर्ट ने जज लोया की मौत के मामले में पुनर्विचार याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा है. 

जज लोया की मौत के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा 
सुप्रीम कोर्ट ने जज लोया की मौत के मामले में पुनर्विचार याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा है. 
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने जज लोया की मौत के मामले में पुनर्विचार याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा है. याचिका में वकील इंदिरा जयसिंह ने सुप्रीम कोर्ट की तीखी टिप्पणियों को हटाने की मांग की है. वहीं महाराष्ट्र सरकार ने इसका विरोध करते हुए कहा कि ऐसा कर याचिकाकर्ता विवाद को फिर से खड़ा करना चाहते हैं. आपको बता दें कि जज लोया की साल 2014 में हुई मौत की  एसआईटी जांच की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की गई है. 19 अप्रैल को दिए गए  फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कुछ सख्त टिप्पणियों के साथ एसआईटी  जांच की मांग को खारिज कर दिया था. याचिका में कोर्ट से 19 अप्रैल के देश में की गई उन सख्त टिप्पणियों को हटाने की मांग भी की गई है, जिसमें कोर्ट ने याचिकाकर्ता की मंशा पर सवाल उठाते हुए इसे न्यायपालिका की आज़ादी और संस्थानों की गरिमा पर हमला  बताया था. याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला न्याय का गर्भपात साबित हुआ है.

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जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की बेंच  ने याचिका खारिज करते हुए कहा था कि रिकॉर्ड पर  रखे गए सबूत तस्दीक करते है कि जज लोया की मौत नेचुरल थी. बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन ने पहले बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को सुनवाई के लिए ट्रांसफर कर लिया था.याचिका में कहा गया है कि कोर्ट या तो याचिका को फिर से बॉम्बे हाई कोर्ट ट्रांसफर कर या फिर SIT जांच का आदेश दे. बॉम्बे लॉयर एसोसिएशन की ओर से दुष्यंत दवे ने याचिका दायर की है. न्यायपालिका की स्वतंत्रता और गरिमा को कायम रखने के लिए याचिका दायर की गई है..'याचिकाकर्ता एसोसिएशन'  की कोशिश न्यायपालिका को ये आश्वस्त करने की थी कि किसी  
जज के मुश्किल वक़्त में भी एसोसिएशन उनके साथ खड़ी है और अगर SIT जांच के बाद मौत की वजह हार्ट-अटैक साबित हो जाती, तो सारी शंकाओं पर विराम लग जाता.

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पुनर्विचार याचिका में कहा गया है कि एसोसिएशन ने सिर्फ महाराष्ट्र के इंटेलिजेंस कमिश्नर की रिपोर्ट की सत्यता पर सवाल  उठाये हैं, न कि उन जजों की विश्वसनीयता पर जिन्होंने बयान दर्ज कराए थे. अगर कोर्ट के दिये गए फैसले में की गई प्रतिकूल टिप्पणी कायम रहती है तो न्यायपालिका जैसे संस्थान की रक्षा आने वाले लोगों को हतोत्साहित करेगा. बता दें कि जज लोया अपनी मौत से पहले सोहराबुद्दीन शेख़ मुठभेड़ केस की सुनवाई कर रहे थे. जिसमें भाजपा के मौजूदा अध्यक्ष अमित शाह अभियुक्त थे. लोया के बाद आने वाले सीबीआई जज ने अमित शाह को बरी कर दिया था. 

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