इस बार पोंगल पर जलीकट्टू नहीं होगा
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार से पहले जलीकट्टू पर फैसला देने वाली अर्जी को ठुकरा दिया है. कोर्ट ने कहा कि बेंच को आदेश पास करने के लिए कहना अनुचित है. जलीकट्टू मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के नोटिफिकेशन पर अपना फैसला सुरक्षित रखा हुआ है. गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट से मांग की गई थी कि जलीकट्टू को लेकर अदालत ने जो आदेश सुरक्षित कर रखा है, उस पर शनिवार से पहले आदेश सुना दिया जाए. कोर्ट ने कहा फैसले का ड्रॉफ्ट तैयार हो गया है लेकिन शनिवार से पहले आदेश सुनाना संभव नहीं है. बता दें कि जल्लीकट्टू यानी सांड़ों की दौड़ पर रोक के खिलाफ तमिलनाडू सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था.
दरअसल 22 जनवरी 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने जल्लीकट्टू पर लगाई गई रोक पर पुनर्विचार करने से मना कर दिया था. तमिलनाडु के कुछ निवासियों की तरफ से दायर पुनर्विचार याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में जल्लीकट्टू पर रोक लगाई थी. वहीं केंद्र सरकार ने 8 जनवरी को अधिसूचना जारी कर जल्लीकट्टू पर लगे प्रतिबंध को हटा लिया था. अधिसूचना में कुछ प्रतिबंध भी लगाए गए थे. पशु कल्याण बोर्ड, पीपुल्स फॉर एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स, बेंगलुरू के एक एनजीओ और अन्य ने सुप्रीम कोर्ट में अधिसूचना को चुनौती दी थी. याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अधिसूचना पर रोक लगा दी थी.
पिछले साल जुलाई में तमिलनाडू सरकार ने याचिका में परंपरा का हवाला दिया था. इस पर जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था कि - इस दलील में दम नहीं. 1899 में 10 हज़ार से ज़्यादा बाल विवाह हुए. 12 साल से कम उम्र की लड़कियों की शादी हुई. क्या इसे परंपरा मान कर जारी रहने दिया जा सकता है? हमें सिर्फ ये देखना है कि ये खेल कानून और संविधान की कसौटी पर खरा उतरता है या नहीं.
दरअसल 22 जनवरी 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने जल्लीकट्टू पर लगाई गई रोक पर पुनर्विचार करने से मना कर दिया था. तमिलनाडु के कुछ निवासियों की तरफ से दायर पुनर्विचार याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में जल्लीकट्टू पर रोक लगाई थी. वहीं केंद्र सरकार ने 8 जनवरी को अधिसूचना जारी कर जल्लीकट्टू पर लगे प्रतिबंध को हटा लिया था. अधिसूचना में कुछ प्रतिबंध भी लगाए गए थे. पशु कल्याण बोर्ड, पीपुल्स फॉर एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स, बेंगलुरू के एक एनजीओ और अन्य ने सुप्रीम कोर्ट में अधिसूचना को चुनौती दी थी. याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अधिसूचना पर रोक लगा दी थी.
पिछले साल जुलाई में तमिलनाडू सरकार ने याचिका में परंपरा का हवाला दिया था. इस पर जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था कि - इस दलील में दम नहीं. 1899 में 10 हज़ार से ज़्यादा बाल विवाह हुए. 12 साल से कम उम्र की लड़कियों की शादी हुई. क्या इसे परंपरा मान कर जारी रहने दिया जा सकता है? हमें सिर्फ ये देखना है कि ये खेल कानून और संविधान की कसौटी पर खरा उतरता है या नहीं.
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