गुजरात हाईकोर्ट का फाइल फोटो
अहमदाबाद:
गुजरात हाईकोर्ट में कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश की दो जजों की बेंच ने आज एक पीआईएल पर सुनवाई शुरू की जिसमें राज्य के हाईकोर्ट के जजों को रिहाइशी प्लाट देने की प्रक्रिया में अनियमितता होने की बात कही गई है। हाईकोर्ट के ही दो पूर्व जजों ने यह पीआईएल दाखिल की है।
सुनवाई शुरु होते ही, सबसे पहले गुजरात के एडवोकेट जनरल ने आरोप लगाया कि एक्टिंग चीफ जस्टिस वी एम सहाय भी प्लाट लेने के इच्छुक हैं, इसलिए उन्हें इस मामले की सुनवाई नहीं करनी चाहिए। हालांकि जस्टिस सहाय ने इसे खारिज करके मंगलवार को इस मामले की सुनवाई तय की है।
इस मामले में प्लाट पाने वाले सभी जजों, अहमदाबाद कलेक्टर, कोआपरेटिव विभाग के अधिकारियों और राज्य सरकार के रेवेन्यू विभाग को भी नोटिस जारी किए गए हैं। अहमदाबाद के कलेक्टर को प्लाट आवंटन से जुड़े सभी दस्तावेज लेकर हाजिर होने को कहा गया है। यह भी कहा गया है कि क्या जजों को सहकारी सोसायटी बनाए बिना प्लाट आवंटन करना ठीक है? इस प्रक्रिया में जो मुख्य शर्तें रखी गई थीं, उनका पालन करके जजों को प्लाट आवंटन किए गए हैं या नहीं।
फरियाद के मुताबिक गुजरात सरकार ने 1997 में गुजरात हाईकोर्ट के जजों के लिए सस्ते रिहाइशी प्लाट देने की योजना बनार्ई थी। इसके लिए जरूरी था कि जजों की एक सहकारी सोसायटी बने, जमीन सोसायटी को दे दी जाए और फिर उसके सदस्य जजों को वह योग्य तरीके से दे। 1998 में रेवेन्यू डिपार्टमेन्ट ने इसके लिए आदेश भी जारी कर दिए थे कि जमीन हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार को दे दी जाए। लेकिन रजिस्ट्रार ने जमीन नहीं ली। मामला टलता रहा।
आखिरकार 2008 में राज्य सरकार और अन्य संबंधितों के बीच अनौपचारिक बातचीत के आधार पर यह तय किया गया कि सिर्फ मौजूदा जजों को ही प्लाट आवंटन हो सकता है। इसके आधार पर करीब 20 से ज्यादा जजों को प्लाट आवंटित भी हुए। अब कुछ पूर्व जजों ने एक्टिंग चीफ जस्टिस को चिट्ठी लिखकर इसमें अनिमितता की फरियाद की है और इसे जनहित की अर्जी मानकर मुकद्दमा चलाने की गुज़ारिश की है।
सुनवाई शुरु होते ही, सबसे पहले गुजरात के एडवोकेट जनरल ने आरोप लगाया कि एक्टिंग चीफ जस्टिस वी एम सहाय भी प्लाट लेने के इच्छुक हैं, इसलिए उन्हें इस मामले की सुनवाई नहीं करनी चाहिए। हालांकि जस्टिस सहाय ने इसे खारिज करके मंगलवार को इस मामले की सुनवाई तय की है।
इस मामले में प्लाट पाने वाले सभी जजों, अहमदाबाद कलेक्टर, कोआपरेटिव विभाग के अधिकारियों और राज्य सरकार के रेवेन्यू विभाग को भी नोटिस जारी किए गए हैं। अहमदाबाद के कलेक्टर को प्लाट आवंटन से जुड़े सभी दस्तावेज लेकर हाजिर होने को कहा गया है। यह भी कहा गया है कि क्या जजों को सहकारी सोसायटी बनाए बिना प्लाट आवंटन करना ठीक है? इस प्रक्रिया में जो मुख्य शर्तें रखी गई थीं, उनका पालन करके जजों को प्लाट आवंटन किए गए हैं या नहीं।
फरियाद के मुताबिक गुजरात सरकार ने 1997 में गुजरात हाईकोर्ट के जजों के लिए सस्ते रिहाइशी प्लाट देने की योजना बनार्ई थी। इसके लिए जरूरी था कि जजों की एक सहकारी सोसायटी बने, जमीन सोसायटी को दे दी जाए और फिर उसके सदस्य जजों को वह योग्य तरीके से दे। 1998 में रेवेन्यू डिपार्टमेन्ट ने इसके लिए आदेश भी जारी कर दिए थे कि जमीन हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार को दे दी जाए। लेकिन रजिस्ट्रार ने जमीन नहीं ली। मामला टलता रहा।
आखिरकार 2008 में राज्य सरकार और अन्य संबंधितों के बीच अनौपचारिक बातचीत के आधार पर यह तय किया गया कि सिर्फ मौजूदा जजों को ही प्लाट आवंटन हो सकता है। इसके आधार पर करीब 20 से ज्यादा जजों को प्लाट आवंटित भी हुए। अब कुछ पूर्व जजों ने एक्टिंग चीफ जस्टिस को चिट्ठी लिखकर इसमें अनिमितता की फरियाद की है और इसे जनहित की अर्जी मानकर मुकद्दमा चलाने की गुज़ारिश की है।
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