भारतीय वायु सेना के विंग कमांडर को पाकिस्तान द्वारा बुधवार को हिरासत में लेने का मामला 1929 की जिनेवा संधि के तहत आएगा. विशेषज्ञों के अनुसार पाकिस्तान ने भारतीय पायलट के साथ मारपीट का वीडियो जारी करकेसंधि की शर्तों का उल्लंघन किया है. हालांकि वीडियो शेयर करने के बाद पाक ने उसे हटा लिया लेकिन तब तक सोशल मी़डिया पर इसे खासा शेयर किया जा चुका था. सोशल मीडिया पर ही जेनेवा संधि और #SayNoToWar भी ट्रेंड कर रहा है. जहां दोनों देशों से युद्ध के बजाय बातचीत से मसला सुलझाने की कोशिश करने की गुजारिश की जा रही है. हालांकि बड़ी संख्या में लोग #SayNoToWar से असहमत भी नजर आ रहे हैं.
Our prayers are with the brave IAF pilot & his family in this very difficult time
— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) February 27, 2019
Under Article 3 of Geneva Conventions every party is required to treat prisoners humanely. Pakistan must respect its obligations towards the IAF pilot, regardless of ongoing circumstances
I as a citizen of Pakistan request my govt to treat the “captive” Indian pilot well and send him back ASAP as a gesture of peace. Come on Pakistan you can do this #SayNoToWar
— Tooba Syed (@Tooba_Sd) February 27, 2019
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उनके विमान को गिराए जाने के बाद पाकिस्तान ने उन्हें हिरासत में ले लिया. पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता मेजर जनरल आसिफ गफूर ने ट्विटर पर कहा, ‘‘ पाकिस्तानी सेना की हिरासत में सिर्फ एक पायलट है. विंग कमांडर के साथ सैन्य आचरण के मुताबिक सलूक किया जा रहा है.'' युद्ध बंदियों का सरंक्षण (POW) करने वाले नियम विशिष्ट हैं. इन्हें पहले 1929 में जिनेवा संधि के जरिए ब्यौरे वार किया गया था और द्वितीय विश्व युद्ध से सबक सीखते हुए 1949 में तीसरी जिनेवा संधि में उनमें संशोधन किया गया था.
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नियमों के मुताबिक, जंगी कैदी का संरक्षण का दर्जा अंतरराष्ट्रीय सशस्त्र संघर्षों में ही लागू होता है. संधि के मुताबिक, युद्ध बंदी वह होते हैं जो संघर्ष के दौरान आमतौर पर किसी एक पक्ष के सशस्त्र बलों के सदस्य होते हैं जिन्हें प्रतिद्वंद्वी पक्ष अपनी हिरासत में ले लेता है. यह कहता है कि पीओडब्ल्यू को युद्ध कार्य में सीधा हिस्सा लेने के लिए उन पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है. इसके मुताबिक, उनकी हिरासत सज़ा के तौर पर नहीं होती है बल्कि इसका मकसद संघर्ष में उन्हें फिर से हिस्सा लेने से रोकना होता है. युद्ध खत्म होने के बाद उन्हें रिहा किया जाना चाहिए और बिना किसी देरी के वतन वापस भेजना चाहिए.
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हिरासत में लेने वाली शक्ति उनके खिलाफ संभावित युद्ध अपराध के लिए मुकदमा चला सकती है लेकिन हिंसा की कार्रवाई के लिए नहीं जो अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानूनों के तहत विधिपूर्ण है. नियम साफतौर पर कहते हैं कि जंगी कैदियों के साथ हर परिस्थिति में मानवीय तरीके से सलूक किया जाना चाहिए. जिनेवा संधि कहती है कि वह हिंसा की किसी भी कार्रवाई के साथ-साथ डराने, अपमानित करने और सार्वजनिक नुमाइश से पूरी तरह से सरंक्षित हैं.
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