नई दिल्ली:
भारतीय वायुसीमाओं की रक्षा करने के लिए भारतीय वायुसेना के पास इस वक्त लड़ाकू विमानों के सिर्फ 32 स्क्वाड्रन हैं, और यह संख्या पिछले एक दशक में सबसे कम है। इस जानकारी की पुष्टि भारतीय वायुसेना के शीर्ष कमांडरों ने NDTV से बातचीत में की है।
वायुसेना के सामने लड़ाकू विमानों की किल्लत के चलते आ रही संचालन संबंधी दिक्कतों के बारे में हाल ही में रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी अवगत कराया था तथा एक विस्तृत प्रेज़ेंटेशन भी दिया था।
पुराने रूस-निर्मित मिग-21 (MiG 21) विमानों के तीन स्क्वाड्रनों को वायुसेना द्वारा डी-कमीशन किए जाने के बाद हमारे स्क्वाड्रनों की संख्या 34 से घटकर 31 हो गई थी, जिनमें रूस-निर्मित सुखोई-30 एमकेआई (Su-30 MKI) के एक अतिरिक्त स्क्वाड्रन को जोड़ा गया।
भारतीय वायुसेना को पाकिस्तान और चीन से सटी पश्चिमी और उत्तरी सीमाओं की रक्षा के लिए कम से कम 42 स्क्वाड्रनों की ज़रूरत है। गौरतलब है कि वर्ष 2019-2020 तक भारतीय वायुसेना से पुराने होते जा रहे मिग-21 (MiG 21) और मिग-27 (MiG 27) के 14 स्क्वाड्रन और कम हो चुके होंगे। वैसे, एक स्क्वाड्रन में 16 से 18 विमान होते हैं।
अब हमारी वायुसेना सुखोई-30 एमकेआई (Su-30 MKI), मिग-29 (MiG 27), ब्रिटेन में बने जगुआर (Jaguar) तथा फ्रांस-निर्मित मिराज-2000 विमानों पर निर्भर है। जगुआर (Jaguar) लड़ाकू विमानों का अपग्रेडेशन सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (Hindustan Aeronautics Limited - HAL) कर रही है, जिसमें दो साल की देरी पहले ही हो चुकी है।
संचालन में विमानों की कमी की वजह से आ रही दिक्कतों को दूर करने के लिए सरकार की योजना फ्रांस-निर्मित 36 राफेल लड़ाकू विमानों तथा स्वदेश-निर्मित तेजस (Tejas) विमानों को शामिल करने की थी, लेकिन फिलहाल उसे भी अमली जामा नहीं पहनाया जा सका है।
एक तरफ राफेल को लेकर फ्रांस से जारी सौदेबाजी अभी तक पूरी नहीं हो पाई है, और दूसरी तरफ भले ही वायुसेना ने तेजस को शामिल करने के लिए हामी भर दी है, लेकिन अभी तक पहला विमान भी उसके पास नहीं पहुंचा है। दरअसल, इसी साल बहरीन एयरशो के दौरान पहली बार प्रदर्शित किए गए तेजस को अब तक अंतिम संचालन मंजूरी (Final Operational Clearance - FOC) नहीं मिली है।
वास्तविकता यह है कि पिछले तीन दशकों से भी अधिक समय से विकसित किए जा रहे तेजस में बहुत-सी कमियां हैं, जिन्हें हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड ही भारतीय वायुसेना के साथ विचार-विमर्श करते हुए दूर करने की कोशिश कर रही है।
एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, "बहरहाल, बहरीन में इसका (तेजस का) प्रदर्शन उत्साहवर्द्धक था, और हमें उम्मीद है कि FOC जल्द ही हासिल हो जाएगी... भारतीय वायुसेना अपनी किल्लत को दूर करने के लिए तेजस लड़ाकू विमानों को, जितनी संख्या में भी उनका मिलना संभव हो, शामिल करने के लिए तैयार है..."
अधिकारी के अनुसार, "हाल के समय तक हम लोगों का सारा ध्यान सिर्फ खरीद प्रक्रिया पर रहता था, और विमानों के प्रदर्शन पर नहीं, सो नतीजा यह रहा कि वास्तव में किसी ने भी वायुसेना की ज़रूरतों और उनकी तैयारी पर ध्यान ही नहीं दिया..." इस अधिकारी का इशारा फ्रांस के साथ 10 साल तक मीडियम मल्टी-रोल लड़ाकू विमानों के लिए चली बातचीत की ओर था, जिसे सौदेबाजी में बहुत-सी कमियों के चलते नरेंद्र मोदी सरकार को रद्द करना पड़ा था।
वायुसेना के सामने लड़ाकू विमानों की किल्लत के चलते आ रही संचालन संबंधी दिक्कतों के बारे में हाल ही में रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी अवगत कराया था तथा एक विस्तृत प्रेज़ेंटेशन भी दिया था।
पुराने रूस-निर्मित मिग-21 (MiG 21) विमानों के तीन स्क्वाड्रनों को वायुसेना द्वारा डी-कमीशन किए जाने के बाद हमारे स्क्वाड्रनों की संख्या 34 से घटकर 31 हो गई थी, जिनमें रूस-निर्मित सुखोई-30 एमकेआई (Su-30 MKI) के एक अतिरिक्त स्क्वाड्रन को जोड़ा गया।
भारतीय वायुसेना को पाकिस्तान और चीन से सटी पश्चिमी और उत्तरी सीमाओं की रक्षा के लिए कम से कम 42 स्क्वाड्रनों की ज़रूरत है। गौरतलब है कि वर्ष 2019-2020 तक भारतीय वायुसेना से पुराने होते जा रहे मिग-21 (MiG 21) और मिग-27 (MiG 27) के 14 स्क्वाड्रन और कम हो चुके होंगे। वैसे, एक स्क्वाड्रन में 16 से 18 विमान होते हैं।
अब हमारी वायुसेना सुखोई-30 एमकेआई (Su-30 MKI), मिग-29 (MiG 27), ब्रिटेन में बने जगुआर (Jaguar) तथा फ्रांस-निर्मित मिराज-2000 विमानों पर निर्भर है। जगुआर (Jaguar) लड़ाकू विमानों का अपग्रेडेशन सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (Hindustan Aeronautics Limited - HAL) कर रही है, जिसमें दो साल की देरी पहले ही हो चुकी है।
संचालन में विमानों की कमी की वजह से आ रही दिक्कतों को दूर करने के लिए सरकार की योजना फ्रांस-निर्मित 36 राफेल लड़ाकू विमानों तथा स्वदेश-निर्मित तेजस (Tejas) विमानों को शामिल करने की थी, लेकिन फिलहाल उसे भी अमली जामा नहीं पहनाया जा सका है।
एक तरफ राफेल को लेकर फ्रांस से जारी सौदेबाजी अभी तक पूरी नहीं हो पाई है, और दूसरी तरफ भले ही वायुसेना ने तेजस को शामिल करने के लिए हामी भर दी है, लेकिन अभी तक पहला विमान भी उसके पास नहीं पहुंचा है। दरअसल, इसी साल बहरीन एयरशो के दौरान पहली बार प्रदर्शित किए गए तेजस को अब तक अंतिम संचालन मंजूरी (Final Operational Clearance - FOC) नहीं मिली है।
वास्तविकता यह है कि पिछले तीन दशकों से भी अधिक समय से विकसित किए जा रहे तेजस में बहुत-सी कमियां हैं, जिन्हें हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड ही भारतीय वायुसेना के साथ विचार-विमर्श करते हुए दूर करने की कोशिश कर रही है।
एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, "बहरहाल, बहरीन में इसका (तेजस का) प्रदर्शन उत्साहवर्द्धक था, और हमें उम्मीद है कि FOC जल्द ही हासिल हो जाएगी... भारतीय वायुसेना अपनी किल्लत को दूर करने के लिए तेजस लड़ाकू विमानों को, जितनी संख्या में भी उनका मिलना संभव हो, शामिल करने के लिए तैयार है..."
अधिकारी के अनुसार, "हाल के समय तक हम लोगों का सारा ध्यान सिर्फ खरीद प्रक्रिया पर रहता था, और विमानों के प्रदर्शन पर नहीं, सो नतीजा यह रहा कि वास्तव में किसी ने भी वायुसेना की ज़रूरतों और उनकी तैयारी पर ध्यान ही नहीं दिया..." इस अधिकारी का इशारा फ्रांस के साथ 10 साल तक मीडियम मल्टी-रोल लड़ाकू विमानों के लिए चली बातचीत की ओर था, जिसे सौदेबाजी में बहुत-सी कमियों के चलते नरेंद्र मोदी सरकार को रद्द करना पड़ा था।
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