पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह (फाइल फोटो)
चंडीगढ़:
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह जल्द ही अपनी पुरानी यूनिवर्सिटी में पढ़ाते नज़र आएंगे। चंडीगढ़ की पंजाब यूनिवर्सिटी से बीए, एमए की पढ़ाई के बाद डॉ. सिंह यहीं अर्थशास्त्र के लेक्चरर और फिर प्रोफेसर बने थे।
50 साल पहले पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने पंजाब विश्वविद्यालय में छात्रों को आखिरी बार पढ़ाया था। अब वो फिर छात्रों को पढ़ाने के लिए तैयार हैं। डॉ. सिंह पीयू में जवाहरलाल नेहरू चेयर के प्रमुख होंगे।
इस ख़बर से छात्रों में ख़ास उत्साह है। एमए के छात्र सौरभ कहते हैं कि इकोनॉमिक्स में उनका जो अनुभव रहा है और 1991 के संकट में उनका ज्ञान काम आया था और फिर 10 साल वो प्रधानमंत्री रहे, मुझे लगता है मैं उनसे काफ़ी कुछ सीख सकता हूं।
1954 में पंजाब यूनीवर्सिटी से अर्थशास्त्र में एमए करने के बाद डॉ. सिंह 1957 में यहीं अर्थशास्त्र के सीनियर लेक्चरर तैनात हुए। फिर 1966 में संयुक्त राष्ट्र में आर्थिक मामलों के अधिकारी नियुक्त होने तक वो यहां रहे।
अर्थशास्त्र विभाग की प्रमुख प्रो. उपिंदर साहनी कहती हैं, 'क्योंकि वो एक ऐकडेमिक ही नहीं हैं बल्कि एक प्रैक्टिसनर भी हैं। उन्होंने पब्लिक पॉलिसी बनाए हैं। मॉडर्न इंडीयन इकॉनमी के वो आर्किटेक्ट हैं। तो उनसे काफ़ी कुछ सीखने को मिलेगा, हम ऐसे सेशन रखेंगे ताकि स्टूडेंट्स उनसे सीधे इंटरैक्ट कर सकें।'
बतौर राजनेता डॉ. सिंह के हिस्से आलोचना भी आयी लेकिन पुराने दोस्त मानते हैं कि वो आज भी प्रेरणा स्रोत हैं। पीयू के पूर्व कुलपति प्रो. आर पी बम्बाह कहते हैं, 'इतना मुझे मालूम है, मनमोहन सिंह जो स्टूडेंट थे, जिन्हें मैं जानता हूं, जब वो छात्रों से बात करेंगे तो उन्हें भी समझ आएगा कि दुनिया में कैसे काम होते हैं।'
83 साल की उम्र और व्यस्तता को देखते हुए यूनिवर्सिटी वीडियो कांफ्रेंस के ज़रिये भी डॉ. सिंह के लेक्चर करवाने पर विचार कर रही है।
50 साल पहले पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने पंजाब विश्वविद्यालय में छात्रों को आखिरी बार पढ़ाया था। अब वो फिर छात्रों को पढ़ाने के लिए तैयार हैं। डॉ. सिंह पीयू में जवाहरलाल नेहरू चेयर के प्रमुख होंगे।
इस ख़बर से छात्रों में ख़ास उत्साह है। एमए के छात्र सौरभ कहते हैं कि इकोनॉमिक्स में उनका जो अनुभव रहा है और 1991 के संकट में उनका ज्ञान काम आया था और फिर 10 साल वो प्रधानमंत्री रहे, मुझे लगता है मैं उनसे काफ़ी कुछ सीख सकता हूं।
1954 में पंजाब यूनीवर्सिटी से अर्थशास्त्र में एमए करने के बाद डॉ. सिंह 1957 में यहीं अर्थशास्त्र के सीनियर लेक्चरर तैनात हुए। फिर 1966 में संयुक्त राष्ट्र में आर्थिक मामलों के अधिकारी नियुक्त होने तक वो यहां रहे।
अर्थशास्त्र विभाग की प्रमुख प्रो. उपिंदर साहनी कहती हैं, 'क्योंकि वो एक ऐकडेमिक ही नहीं हैं बल्कि एक प्रैक्टिसनर भी हैं। उन्होंने पब्लिक पॉलिसी बनाए हैं। मॉडर्न इंडीयन इकॉनमी के वो आर्किटेक्ट हैं। तो उनसे काफ़ी कुछ सीखने को मिलेगा, हम ऐसे सेशन रखेंगे ताकि स्टूडेंट्स उनसे सीधे इंटरैक्ट कर सकें।'
बतौर राजनेता डॉ. सिंह के हिस्से आलोचना भी आयी लेकिन पुराने दोस्त मानते हैं कि वो आज भी प्रेरणा स्रोत हैं। पीयू के पूर्व कुलपति प्रो. आर पी बम्बाह कहते हैं, 'इतना मुझे मालूम है, मनमोहन सिंह जो स्टूडेंट थे, जिन्हें मैं जानता हूं, जब वो छात्रों से बात करेंगे तो उन्हें भी समझ आएगा कि दुनिया में कैसे काम होते हैं।'
83 साल की उम्र और व्यस्तता को देखते हुए यूनिवर्सिटी वीडियो कांफ्रेंस के ज़रिये भी डॉ. सिंह के लेक्चर करवाने पर विचार कर रही है।
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