देश के चर्चित व्हिसिलब्लोवर आईएफएस अफसर संजीव चतुर्वेदी(Sanjiv Chaturvedi) ने पीएम मोदी(PM Modi) को पत्र लिखकर स्वास्थ्य मंत्री से टेलीफोन पर हुई उस बातचीत के ब्यौरे का खुलासा करने की मांग की है, जिसके बाद से उन्हें एम्स के सीवीओ पद से हटाए जाने और उत्पीड़न का सिलसिला शुरू हो गया. आरटीआई से इस बात का खुलासा हो चुका है कि 23 अगस्त 2014 को एम्स के इस बहुचर्चित केस में पीएम मोदी ने तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन से टेलीफोनिक बातचीत की थी, मगर उन्होंने क्या बातचीत की थी, इसका जिक्र अब तक सार्वजनिक नहीं हुआ है. बातचीत के कंटेंट को अब चतुर्वेदी ने उजागर करने की मांग की है. चतुर्वेदी के मुताबिक, उनकी आरटीआई अर्जी पर खुद मंत्रालय ने बताया था कि केस के सिलसिले मे पीएम ने स्वास्थ्य मंत्री से बातचीत की. आरटीआई जवाब के मुताबिक, 23 अगस्त 2014 को केंद्र सरकार के स्वास्थ्य सचिव लव वर्मा ने पीएमओ को लिखा,"माननीय प्रधानमंत्री ने एम्स के सीवीओ पद से संजीव चतुर्वेदी को हटाने से जुड़े मामले में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री से टेलीफोन पर बातचीत की. इस सबंध में एक विस्तृत नोट भारत के माननीय पीएम के अवलोककनार्थ प्रस्तुत किया गया है."
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संजीव ने पीएम मोदी से पूछा है कि केंद्रीय मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायतों के उन मामलों में अब तक क्या कार्रवाई हुई, जिसे केंद्रीय सूचना आयोग पहले ही सार्वजनिक करने के लिए पीएमओ को कह चुका है. चतुर्वेदी ने यह भी कहा है कि करप्शन के खिलाफ लड़ाई के कारण उन्हें परेशान करने वाले जिम्मेदारों के खिलाफ हुई कार्रवाई की भी जानकारी दी जाए. पीएम मोदी को भेजे पत्र में चतुर्वेदी ने कहा कि प्रधानमंत्री की टेलीफोनिक कॉल के बाद उन्हें न केवल तमाम तरह के उत्पीड़नों से गुजरना पड़ा, बल्कि 'अंतहीन मुकदमेबाजी' भी झेलनी पड़ी. एक अफसर की आवाज को दबाने के लिए सरकार की तरफ से करीब 15 केस अलग-अलग न्यायालयों में ठोक दिए गए, जिसमें चार केस तो हाई कोर्ट में किए गए, वहीं एक सुप्रीम कोर्ट में.
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जिनके खिलाफ की पीएम से शिकायत, उन्हें बना दिया मंत्री
संजीव चतुर्वेदी ने पत्र में हैरानी जताते हुए कहा है- जब एम्स में बतौर सीवीओ 2012-14 के बीच मैं घोटाले के दो सौ से ज्यादा मामलों की जांच कर एक्शन में जुटा था, जिसमें एम्स के तत्कालीन डायरेक्टर, दो डिप्टी डायरेक्टर, जिसमें एक 1982 बैच के आईएएस और दूसरे 1993 बैच के आईपीएस अफसर सहित कई अन्य जिम्मेदार फंसे थे.तब तत्कालीन राज्यसभा सांसद जेपी नड्डा ऐसा करने से रोकने में जुटे थे. सीवीओ पद से हटवाने के लिए नड्डा ने सांसद की हैसियत से 2013 से जून 2014 तक तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन को कुल चार पत्र लिखे और मीटिंग भी की. इसके दस्तावेज़ भी मेरे पास मौजूद हैं. जबकि मेरे इस काम की 23 मई 2014 को खुद एम्स प्रशासन ने एक नोट में तारीफ करते हुए सत्यनिष्ठ और ईमानदार अफसर क़रार दिया था. इस बीच साजिशन अगस्त 2014 में मुझे सीवीओ पद से हटा दिया गया.
जब पीएम मोदी ने पद से हटाने के मामले में स्वास्थ्य मंत्री से बात की तो चतुर्वेदी ने 26 सितंबर 2014 को पीएम मोदी को केस के सभी पहलुओं से अवगत कराने के लिए 56 दस्तावेजों के साथ प्रत्यावेदन भेज कर केस में जांच की मांग की. चतुर्वेदी ने पीएम मोदी को भेजे प्रत्यावेदन मे एम्स मामले में जेपी नड्डा की भूमिका पर सवाल उठाए. जिस पर पीएमओ ने आठ अक्टूबर 2014 और 10 फरवरी 2015 को इस मामले में हेल्थ मिनिस्टी से रिपोर्ट मांगी. हालांकि चतुर्वेदी ने दावा किया है कि स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से रिपोर्ट देने के बावजूद आज तक पीएमओ ने इस मामले में कार्रवाई करने की जरूरत नहीं समझी. खुद एक आरटीआई के जवाब में पीएमओ यह बता चुका है. बकौल चतुर्वेदी,"उम्मीद थी कि मसले पर गंभीर पीएम मोदी कुछ एक्शन लेंगे, मगर धक्का तब लगा, जब उन्होंने एम्स में गड़बड़ी करने वाले आरोपियों के खिलाफ ऐक्शन का निर्देश देने की जगह उन नड्डा को ही स्वास्थ्य मंत्री बना दिया." जिसके बाद नड्डा के अंडर में वह एम्स आ गया, जहां घपले की जांचें वह रुकवाना चाहते थे.
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कांग्रेस सरकार में भी हुआ उत्पीड़न
आईएफएस संजीव चतुर्वेदी ने कांग्रेस सरकार में भी हुए अपने उत्पीड़न की कहानी बयां की है. कहा है कि हरियाणा काडर में 2008-2014 के बीच झूठे मामले बनाकर उनके निलंबन और एसीआर में प्रतिकूल प्रवृष्टि जैसी कार्रवाई तत्कालीन तत्कालीन राज्य सरकार(कांग्रेस) ने की थी. जिस पर तत्कालीन राष्ट्रपति ने हस्तक्षेप करते हुए चार बार आदेश देकर कार्रवाई को गलत करार देते हुए खारिज कर दिया, मगर राज्य सरकार ने किसी की जवाबदेही तय नहीं की. वही हाल अब वर्तमान केंद्र सरकार (बीजेपी) में भी है, उत्पीड़न सहना पड़ रहा है. जब एम्स में दो सौ घोटाले उजागर करने का खामियाजा उन्हें आज तक भुगतना पड़ रहा है. झूठे मामले में अदालतों का न केवल चक्कर लगाना पड़ रहा है, बल्कि एसीआर में जीरो ग्रेडिंग कर करियर खराब करने की सरकार के स्तर से कोशिश हुई. चतुर्वेदी के मुताबिक इससे साबित होता है कि हर दल की सरकारें आतीं-जातीं रहतीं हैं, मगर ईमानदार अफसरों को लेकर सिस्टम का रवैया बदलता नहीं.
कोर्ट की नोटिस के बाद कैसे जलीं अहम फाइलें?
आईएफएस संजीव चतुर्वेदी ने पत्र में कई गंभीर बातों का जिक्र किया है. इसमें अप्रैल 2013 और फरवरी 2015 की पुलिस रिपोर्ट का जिक्र है, जिसमें एम्स में सीवीओ पद सृजित करने से जुड़ी फाइलों के गायब होने और जल जाने की बात है.संजीव चतुर्वेदी के मुताबिक दिल्ली हाईकोर्ट से स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा को एक पीआइएल पर नोटिस जारी होने के दो दिन बाद ही दफ्तर में आग लगने की घटना हुई, जिसमें सैकड़ों फाइलें जल गईं. पुलिस ने धारा 326 के तहत केस दर्ज किया. इससे पता चलता है कि दफ्तर में शरारतपूर्ण तरीके से आग लगने की घटना हुई. जिससे संदेह पैदा होता है. सवाल उठता है क्या यह संयोग रहा या फिर साजिश...
अपने ही अफसर से बदला लेने पर कोर्ट ने ठोका जुर्माना
एम्स में करप्शन के खिलाफ जांच से कई नेताओं और अफसरों की आंख की किरकिरी बनने पर संजीव चतुर्वेदी की वार्षिक प्रदर्शन रिपोर्ट(APR)में जीरो ग्रेड दिए जाने से जुड़े हालिया केस में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार व एम्स को इस बात के लिए फटकार लगाई थी कि उनका रवैया अपने ही अफसर के खिलाफ बदला लेने वाला है. हाई कोर्ट ने 25 हजार का जुर्माना लगाया था. जब केंद्र के समर्थन से एम्स ने सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील की तो फिर सुप्रीम कोर्ट ने भी झटका देते हुए 25 हजार का जुर्माना लगा दिया. चतुर्वेदी के पत्र में मौजूदा सीवीसी के खिलाफ शिकायत पर डीओपीटी की प्रतिक्रिया का भी उल्लेख किया गया है, जिसमें कहा गया था कि उनके खिलाफ शिकायतों की जांच के लिए दिशा-निर्देश तैयार हो रहे हैं. चतुर्वेदी 2002 बैच के आईएफएस अफसर हैं.2008-2014 के बीच उन्होने हरियाणा काडर के अफसर के रूप में काम किया. फिर 2012-14 के बीच प्रतिनियुक्ति पर एम्स में सीवीओ के रूप में काम किए. इस दौरान कई घोटाले उजागर कर खलबली मचा दी. अगस्त, 2015 में उन्हें भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के लिए प्रतिष्ठित रेमन मैग्सेसे पुरस्कार मिला.पत्र के आखिर में संजीव चतुर्वेदी ने पीएम मोदी से कहा है- यदि भ्रष्टाचार से जुड़े उक्त मुद्दों पर ठोस और कठोर कार्रवाई नहीं होती है तो फिर भ्रष्टाचार के खिलाफ 'न खाऊंगा न खाने दूंगा', 'जीरो टॉलरेंस' और 'चौकीदार' होने जैसे नारे लगाने या दोहराने का कोई मतलब नहीं है.
वीडियो- एम्स में भ्रष्टाचार की जांच में ढिलाई बरत रही सरकार?
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