चर्चित आईएफएस अफसर संजीव चतुर्वेदी (Sanjiv Chaturvedi) ने एक बार फिर अपने काम से मिसाल पेश की है. इस बार उन्होंने करीब पौन तीन लाख रुपये की धनराशि पुलवामा के शहीदों के परिवार को दान कर दी है. यह धनराशि उन्हें बतौर आर्बिट्रेटर एक केस की सुनवाई के तौर पर मिलनी थी.जिसे उन्होंने लेने से इन्कार करते हुए अपनी फीस जीरो घोषित कर दी और दोनों पक्षों से कह दिया कि वे इसे शहीदों के परिवार को दान करें. यह धनराशि अब गृह मंत्रालय की ओर से संचालित किए जा रहे 'भारत का वीर' खाते में जमा कराया गया है.दरअसल, IFS संजीव चतुर्वेदी को केंद्र सरकार के अधीन आने वाले चंडीगढ़ हाउसिंग बोर्ड ने जनवरी, 2018 में एक निर्माण कंपनी से जुड़े विवाद के मामले में आर्बिट्रेटर(न्यायकर्ता) नियुक्त किया. छह करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट से जुड़ा यह विवाद हाउसिंग बोर्ड और निर्माण कंपनी के बीच चला आ रहा था. फरवरी 2018 में बतौर आर्बिट्रेटर संजीव चतुर्वेदी ने विवाद की सुनवाई शुरू हुई. करीब साल भर के अंदर ही विवाद का समाधान कर दिया. 23 फरवरी 2019 को इस मामले में उन्होंने आदेश जारी कर दिया.
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मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम(Arbitration and Conciliation (Amendment) Act, 2015) की चौथी अनुसूची के मुताबिक इस केस के निपटारे और अन्य प्रशासनिक खर्चों को जोड़कर फीस करीब 2.70 लाख रुपये हुई. इस बीच जब 14 फरवरी को पुलवामा में हुए आतंकी हमले में 40 सीआरपीएफ जवानों के शहीद होने की खबर आई तो संजीव चतुर्वेदी ने फीस की धनराशि लेने की जगह इसे भारत सरकार की ओर से संचालित 'भारत का वीर' खाते में जमा कराने का निर्णय लिया. फरवरी 2019 में अवॉर्ड के वक्त आर्बिट्रेटर संजीव ने अपनी फीस को जीरो करते हुए दोनों पक्षों से कहा कि वह फीस को शहीदों के परिवार के लिए दें. संजीव चतुर्वेदी ने अपने फैसले में कहा-आर्बिट्रेशन फीस को जीरो किया जाता है. यह संबंधित पक्षों पर छोड़ दिया जाता है कि वह कितनी धनराशि अपनी सुविधा के अनुसार पुलवामा के शहीदों के परिवार की मदद के लिए योगदान देते हैं.
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14.23 लाख पहले भी कर चुके हैं दान
ईमानदारी, सत्यनिष्ठा और भ्रष्टाचार उजागर करने के चलते संजीव चतुर्वेदी को 2015 में प्रतिष्ठित रेमन मैग्सेसे पुरस्कार भी मिल चुका है. हाल में सुप्रीम कोर्ट ने एक फरवरी 2019 को दिए अपने एक फैसले में इस बात का जिक्र भी किया था. कोर्ट ने कहा था- भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के लिए प्रतिवादी(संजीव) को रेमन मैग्सेसे अवार्ड 2015 में मिला था. दस्तावेजों से पता चलता है कि प्रतिवादी ने पुरस्कार स्वरूप मिली 14.23 लाख की धनराशि को प्रधानमंत्री कार्यालय को दान कर दी थी. जबकि एम्स ने इस धनराशि को गरीब और असहाय मरीजों के इलाज के लिए स्वीकार करने से इन्कार कर दिया था.
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एम्स में घोटाला खोलकर चर्चा में आए चतुर्वेदी
संजीव चतुर्वेदी 2002 बैच के भारतीय वन सेवा(IFS) के अफसर हैं. शुरुआत में हरियाणा काडर उन्हें मिला था. 29 जून 2012 को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने के बाद वह एम्स, दिल्ली में मुख्य सतर्कता अधिकारी(CVO)बने थे. यहां उन्होंने गड़बड़ियों के करीब दो सौ मामले उजागर कर खलबली मचा दी. आईएएस विनीत चौधरी उस वक्त एम्स के डिप्टी डायरेक्टर(प्रशासन) थे. संजीव चतुर्वेदी ने उनके खिलाफ भी जांच शुरू कर दी. इस कदम ने उन्हें सत्ता और शासन में बैठे कई पॉवरफुल लोगों की आँख की किरकिरी बना दिया. बाद में बीजेपी की सरकार आने के बाद संजीव को सीवीओ पद से हटा दिया गया. उनकी सत्र 2015-16 में सालाना परफारमेंस रिपोर्ट भी खराब कर दी गई. संजीव चतुर्वेदी की सुप्रीम कोर्ट में दायर एक रिट की मानें तो विनीत चौधरी मौजूदा स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा के करीबी रहे. यही वजह है कि उस वक्त सांसद रहते जेपी नड्डा ने उन्हें सीवीओ पद से हटाने के लिए एक चर्चित चिट्ठी भी लिखी थी.2002 बैच के इस अफसर की पहचान आज व्हिसिल ब्लोवर के रूप में बन चुकी है. हरियाणा में रहने के दौरान भी कई घोटालों का चतुर्वेदी ने खुलासा किया था. 2015 से उत्तराखंड काडर के IFS के रूप में चतुर्वेदी हल्द्वानी में तैनात हैं.
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