केंद्र ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय द्वारा अगस्त 2018 में जारी आदेश का अनुपालन करते हुए आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी को 25 हजार रुपये मुआवजे का भुगतान कर दिया है. अदालत ने इस वर्ष जून में अवमानना नोटिस जारी किया था. चतुर्वेदी ने केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) के समक्ष एक मामला दायर किया था. चतुर्वेदी ने कैट में यह मामला 2015-2016 में एम्स, नयी दिल्ली द्वारा उनके मूल्यांकन रिपोर्ट में प्रतिकूल प्रविष्टि करने को लेकर दायर किया था, जहां उन्होंने 2012 से 2016 तक मुख्य सतर्कता अधिकारी के तौर पर कार्य किया. कैट ने मामले की सुनवायी जुलाई 2017 से करनी शुरू की थी.
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कैट अध्यक्ष ने दिल्ली स्थित कैट की प्रधान पीठ में चतुर्वेदी द्वारा दायर कार्यवाही पर रोक लगा दी थी, जो कि नैनीताल में कैट की एक खंडपीठ के समक्ष लंबित थी. जब चतुर्वेदी ने मूल्यांकन रिपोर्ट को चुनौती देते हुए नैनीताल पीठ के समक्ष एक अर्जी दायर की तो उनके पक्ष में एक अंतरिम आदेश पारित किया गया. उसके बाद केंद्र कैट की प्रधान पीठ के पास पहुंचा था और उससे मामले को नैनीताल से दिल्ली हस्तांतरित करने को कहा था. कैट अध्यक्ष ने नैनीताल में दो सदस्यीय पीठ के समक्ष लंबित कार्यवाही पर छह सप्ताह के लिये रोक लगा दी थी. कैट ने इसके साथ ही चतुर्वेदी को एक नोटिस जारी किया था.
भारतीय वन सेवा (आईएफएस) अधिकारी ने कैट अध्यक्ष के आदेश को गत वर्ष उत्तराखंड उच्च न्यायालय में चुनौती दी. अदालत ने कैट अध्यक्ष के आदेश को रद्द कर करते हुए कहा था कि केंद्र और एम्स का रुख अधिकारी के खिलाफ ‘‘प्रतिशोधी'' था. उसी आदेश में उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने केंद्र और एम्स पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाया था.
उत्तराखंड उच्च न्यायालय के इस आदेश को केंद्र और एम्स ने उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी. उच्चतम न्यायालय ने फरवरी 2019 में न केवल उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा बल्कि आदेश दिया कि 20 हजार रुपये उच्चतम न्यायालय की विधिक सेवा समिति में जमा कराये जाएं. उत्तराखंड उच्च न्यायालय द्वारा लगाये गये जुर्माने का भुगतान चतुर्वेदी को नहीं किया गया. जून 2019 में उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव प्रीति सूदन और एम्स निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया को अवमानना नोटिस जारी किये. इसके जवाब में केंद्र ने पांच अगस्त को उत्तराखंड उच्च न्यायालय के समक्ष एक हलफनामा दायर किया और ‘‘बिना शर्त और अत्यंत ईमानदारी से माफी'' मांगी और बताया कि ऐसा उनके दिल्ली अधिवक्ता की ‘‘गलत सलाह'' के चलते हुआ कि वे राशि का भुगतान चतुर्वेदी को नहीं कर सकते. अधिकारी के नाम 25 हजार रुपये का बैंक ड्राफ्ट जारी किया गया. ऐसे ही एक मामले में हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व वाली तत्कालीन राज्य सरकार ने राज्य सूचना आयोग के आदेश पर चतुर्वेदी को 10 हजार रुपये के मुआवजे का भुगतान उत्पीड़न के लिए किया था.
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