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This Article is From Oct 19, 2016

हिंदुत्व भारतीय जीवन शैली का हिस्सा है या फिर धर्म? सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू

हिंदुत्व भारतीय जीवन शैली का हिस्सा है या फिर धर्म? सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू
प्रतीकात्मक फोटो
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने 20 साल पहले कहा था कि हिदुत्व धर्म नहीं जीवन शैली है लेकिन इस मामले में अब दोबारा सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने मंगलवार से सुनवाई शुरू की है. हिंदुत्व भारतीय जीवन शैली का हिस्सा है या फिर धर्म है इस मामले की सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की बेंच ने समीक्षा शुरू की है. इस दौरान मंगलवार को चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर की अगुवाई वाली सात जजों की बेंच ने सुनवाई शुरू की. बुधवार को भी सुनवाई जारी रहेगी.

मंगलवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस ने कई बड़े सवाल उठाए. क्या कोई एक समुदाय का व्यक्ति अपने समुदाय के लोगों से अपने धर्म के आधार पर वोट मांग सकता है? क्या यह भ्रष्ट आचरण की श्रेणी में आता है? क्या एक समुदाय का व्यक्ति दूसरे समुदाय के  प्रत्याशी के लिए अपने समुदाय के लोगों से वोट मांग सकता है ? क्या किसी धर्म गुरू के किसी दूसरे के लिए धर्म के नाम पर वोट मांगना भ्रष्ट आचरण होगा और प्रत्याशी का चुनाव रद्द किया जाए?

दरअसल भारत में चुनाव के दौरान धर्म, जाति समुदाय इत्यादि के आधार पर वोट मांगने या फिर धर्म गुरुओं द्वारा चुनाव में किसी को समर्थन देकर धर्म के नाम पर वोट डालने संबंधी तौर तरीके कितने सही और कितने गलत हैं? इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है.

सुप्रीम कोर्ट ने मामले की पहली सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार को फिलहाल पार्टी बनाने से इनकार कर दिया है. चीफ जस्टिस ने केंद्र सरकार को मामले में पार्टी बनाने संबंधी मांग को खारिज करते हुए कहा कि यह एक चुनाव याचिका का मामला है, जो कि सीधे चुनाव आयोग से जुड़ा है. इसमें केंद्र सरकार को पार्टी नहीं बनाया जा सकता.

दरअसल 1995 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 'हिंदुत्व' के नाम पर वोट मांगने से किसी उम्मीदवार को कोई पायदा नहीं होता है.' उस वक्त सुप्रीम कोर्ट ने हिंदुत्व को 'वे ऑफ लाइफ' यानी जीवन जीने का एक तरीका और विचार बताया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हिन्दुत्व भारतीयों की जीवन शैली का हिस्सा है और इसे हिंदू धर्म और आस्था तक सीमित नहीं रखा जा सकता. कोर्ट ने कहा था कि हिंदुत्व के नाम पर वोट मांगना करप्ट प्रैक्टिस नहीं है और रिप्रजेंटेशन ऑफ पिपुल एक्ट की धारा-123 के तहत यह भ्रष्टाचार नहीं है.  

याचिकाकर्ता के वकील ने रिप्रजेंटेशन ऑफ पिपुल एक्ट की धारा-123 व इसके अनुभाग तीन पर कहा कि वर्ण, धर्म, जाति, भाषा और समुदाय के आधार पर अगर कोई व्यक्ति वोट मांगता है तो इसे चुनाव के गलत तरीकों की संज्ञा दी जाती है. ऐसा मामला पाए जाने पर दोषी व्यक्ति का पूरा चुनाव रद्द कर दिया जाता है.

गौरतलब है कि 1992 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव हुए थे. उस समय वहां के नेता मनोहर जोशी ने बयान दिया था कि महाराष्ट्र को वे पहला हिंदू राज्य बनाएंगे. जिस पर विवाद हुआ था और 1995 में बाम्बे हाईकोर्ट ने उक्त चुनाव को रद्द कर दिया था. फिर यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था. बाद में सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस जेएस वर्मा की बेंच ने फैसला दिया था कि हिंदुत्व एक जीवन शैली है, इसे हिंदू धर्म के साथ नहीं जोड़ा जा सकता और बाम्बे हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया था. 2002 में  मामले को  विचार के लिए सात जजों की संवैधानिक पीठ को भेजा गया था. इसी तरह का एक मामला मध्य प्रदेश में भी हुआ था.

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