प्रतीकात्मक तस्वीर...
अहमदाबाद:
अभी हाल ही में सुरेंद्रनगर के महात्मा गांधी सिविल अस्पताल का ऐसा वीडियो सामने आया कि अभी भी अनुसूचित जाति के लोगों से सिर पर मैला ढोने का काम करवाया जाता है. यानि उन्हें अस्पताल के गटर में से खुद अपने हाथ से मल की सफाई करनी पडती है और खुद उसे बाल्टी में भरकर दूर डाल आते हैं. इस तरह गटर साफ किया जाता है. हमें ये बात सोचकर ही घिन्न आ सकती है तो उनके बारे में सोचिये जो ये काम लगातार करते आ रहे हैं.
सरकार कहती है कि राज्य में मैन्युअल स्केवेंजिंग या सिर पर मैला ढोने की प्रथा बंद हो गई है. ये काम मशीन से ही होते हैं, लेकिन सुरेन्द्र नगर जिले के सिविल हॉस्पिटल का वीडियो सरकारी दावों को न मानने को मजबूर कर देता है.
इतना ही नहीं, महत्वपूर्ण ये भी है कि ये काम करने वाले लोग कॉन्ट्रेक्ट पर ही इस अस्पताल में बरसों से काम कर रहे हैं और उन्हें सरकार द्वारा तय मिनिमम वेज या न्यूनतम दैनिक मजदूरी तक नहीं मिलती. बावजूद इसके वो ये घिनौना काम करते हैं, क्योंकि उनकी मजबूरी है. इन कर्मियों का आरोप है कि उन पर दबाव दिया जा रहा है कि ये नहीं करोगे, तो नौकरी से हटा देंगे. ऐसे ही कर्मचारी भरत मारूडा कहते हैं कि वो यह काम करना तो नहीं चाहते, लेकिन अस्पताल प्रशासन के दबाव के चलते करना पडता है. आखिर उन पर अपने परिवार और दो बच्चों का घर चलाने की बड़ी जिम्मेदारी है.
ये घटना सामने लाए हैं ज़िले के मैन्युअल स्केवेंजिंग की विजिलेंस कमेटी के सदस्य और दलित अधिकार कार्यकर्ता मयूर पाटडिया. वो कहते हैं कि अपने एक दौरे के दौरान वो ये घटना देखकर हैरान रह गए, इसीलिए उन्होंने खुद पूरी वीडियोग्राफी की. कलेक्टर को भी इसकी जानकारी दी गई, लेकिन ऐसी गंभीर घटना पर भी प्रशासन ने सिर्फ नोटिस देकर खानापूर्ति कर दी. कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई.
दलित अधिकार कार्यकर्ता पाटडिया कहते हैं कि भारत सरकार ने स्वीकारा है कि गुजरात राज्य में ऐसा कोई काम नहीं होता है, लेकिन ये किस्सा आने से मुझे ऐसा लगता है मेरे जिले में और पूरे गुजरात में ऐसा कहीं न कहीं होता आ रहा है.
सुरेंद्रनगर के कलेक्टर उदित अग्रवाल कहते हैं उन्होंने अस्पताल प्रशासन को नोटिस दिया था. जवाब के आधार पर जांच चल रही है कि जिम्मेदारी अस्पताल प्रशासन की है कि या ठेकेदार की, लेकिन राज्य के गृह राज्यमंत्री दावा करते हैं कि ऐसा कुछ राज्य में होता ही नहीं.
घटना प्रशासन के सामने बीते 22 सितंबर को ही पेश की गई थी. उसे भी अब एक महीने होने आए हैं. लेकिन कोई ठोस कार्रवाई की कमी राज्य की इन गंभीर मामलों में संजीदगी पर सवाल खड़े करता है.
सरकार कहती है कि राज्य में मैन्युअल स्केवेंजिंग या सिर पर मैला ढोने की प्रथा बंद हो गई है. ये काम मशीन से ही होते हैं, लेकिन सुरेन्द्र नगर जिले के सिविल हॉस्पिटल का वीडियो सरकारी दावों को न मानने को मजबूर कर देता है.
इतना ही नहीं, महत्वपूर्ण ये भी है कि ये काम करने वाले लोग कॉन्ट्रेक्ट पर ही इस अस्पताल में बरसों से काम कर रहे हैं और उन्हें सरकार द्वारा तय मिनिमम वेज या न्यूनतम दैनिक मजदूरी तक नहीं मिलती. बावजूद इसके वो ये घिनौना काम करते हैं, क्योंकि उनकी मजबूरी है. इन कर्मियों का आरोप है कि उन पर दबाव दिया जा रहा है कि ये नहीं करोगे, तो नौकरी से हटा देंगे. ऐसे ही कर्मचारी भरत मारूडा कहते हैं कि वो यह काम करना तो नहीं चाहते, लेकिन अस्पताल प्रशासन के दबाव के चलते करना पडता है. आखिर उन पर अपने परिवार और दो बच्चों का घर चलाने की बड़ी जिम्मेदारी है.
ये घटना सामने लाए हैं ज़िले के मैन्युअल स्केवेंजिंग की विजिलेंस कमेटी के सदस्य और दलित अधिकार कार्यकर्ता मयूर पाटडिया. वो कहते हैं कि अपने एक दौरे के दौरान वो ये घटना देखकर हैरान रह गए, इसीलिए उन्होंने खुद पूरी वीडियोग्राफी की. कलेक्टर को भी इसकी जानकारी दी गई, लेकिन ऐसी गंभीर घटना पर भी प्रशासन ने सिर्फ नोटिस देकर खानापूर्ति कर दी. कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई.
दलित अधिकार कार्यकर्ता पाटडिया कहते हैं कि भारत सरकार ने स्वीकारा है कि गुजरात राज्य में ऐसा कोई काम नहीं होता है, लेकिन ये किस्सा आने से मुझे ऐसा लगता है मेरे जिले में और पूरे गुजरात में ऐसा कहीं न कहीं होता आ रहा है.
सुरेंद्रनगर के कलेक्टर उदित अग्रवाल कहते हैं उन्होंने अस्पताल प्रशासन को नोटिस दिया था. जवाब के आधार पर जांच चल रही है कि जिम्मेदारी अस्पताल प्रशासन की है कि या ठेकेदार की, लेकिन राज्य के गृह राज्यमंत्री दावा करते हैं कि ऐसा कुछ राज्य में होता ही नहीं.
घटना प्रशासन के सामने बीते 22 सितंबर को ही पेश की गई थी. उसे भी अब एक महीने होने आए हैं. लेकिन कोई ठोस कार्रवाई की कमी राज्य की इन गंभीर मामलों में संजीदगी पर सवाल खड़े करता है.
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