यह ख़बर 10 अक्टूबर, 2011 को प्रकाशित हुई थी

लोकायुक्त नियुक्ति मसले पर गुजरात हाईकोर्ट विभाजित

खास बातें

  • राज्यपाल द्वारा लोकायुक्त की नियुक्ति के मुद्दे पर गुजरात हाईकोर्ट विभाजित नजर आया। एक जज ने इसे सही ठहराया तो दूसरे ने भिन्न विचार व्यक्त किए।
अहमदाबाद:

राज्यपाल द्वारा लोकायुक्त की नियुक्ति के मुद्दे पर गुजरात उच्च न्यायालय विभाजित नजर आया। एक जज ने इसे सही ठहराया तो दूसरे ने भिन्न विचार व्यक्त किए। अदालत ने राज्यपाल कमला बेनीवाल द्वारा 25 अगस्त को न्यायाधीश आरएन मेहता को लोकायुक्त पद पर नियुक्त किए जाने को चुनौती देती राज्य सरकार की याचिका को खारिज कर दिया। खंडपीठ के न्यायाधीश अकील कुरैशी ने सरकार के इस तर्क को खारिज कर दिया कि राज्यपाल ने मंत्रिमंडल की सलाह और सहायता के बिना काम किया। उन्होंने कहा कि सामान्य तौर पर राज्यपाल को मंत्रिमंडल की सलाह पर काम करना पड़ता है लेकिन यह एक अनोखा मामला था। खंडपीठ की दूसरी न्यायाधीश सोनिया गोकानी ने कहा, महत्वपूर्ण बिंदुओं पर मैं अपने साथी न्यायाधीश से पूरी तरह सहमत नहीं हूं। उन्होंने अपना फैसला पढ़ना शुरू किया लेकिन अदालत के दिनभर के लिए उठने के समय तक वह इसे पूरा नहीं कर पाईं। वह अपना बाकी का फैसला मंगलवार को सुनाएंगी। विभाजित फैसले की सूरत में मामला तीसरे न्यायाधीश के पास जा सकता है। अपने आदेश में पीठ के वरिष्ठ न्यायाधीश कुरैशी ने कहा कि लोकायुक्त का पद पिछले आठ साल से खाली पड़ा था तथा न्यायाधीश मेहता के नाम को लेकर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा मुख्यमंत्री के बीच गतिरोध था। उन्होंने कहा, जब मुख्य न्यायाधीश ने मेहता का नाम सुझाया तो मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडल ने उनके नाम को खारिज कर दिया। दोनों के बीच गतिरोध था और ऐसी स्थिति में उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का विचार सर्वोच्च है। न्यायाधीश कुरैशी ने कहा कि पिछले लोकायुक्त के वर्ष 2003 में सेवानिवृत्त होने के बाद से सरकार ने 2006 तक विचार विमर्श की प्रक्रिया शुरू नहीं की और जब वर्ष 2006 में प्रक्रिया शुरू हुई भी तो वर्ष 2011 तक कोई नियुक्ति नहीं हुई। उन्होंने कहा, हमारा यह दृष्टिकोण है कि मौजूदा सामाजिक-आर्थिक स्थिति में लोकायुक्त का पद एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है और इसे लंबे समय तक खाली नहीं रहना चाहिए।


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