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This Article is From Nov 16, 2016

नोटबंदी के बाद गुजरात में बीजेपी के भीतर ही सुलग रहे विरोध के सुर

नोटबंदी के बाद गुजरात में बीजेपी के भीतर ही सुलग रहे विरोध के सुर
अहमदाबाद: आठ नवंबर को नोटबंदी का फैसला आने के बाद गुजरात में जिला कोऑपरेटिव बैंकों में भी अन्य बैंकों की तरह ही कारोबार चल रहा था, लेकिन 12 नवंबर को अचानक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने एक सर्कुलर जारी कर जिला सहकारी बैंकों को पुराने नोट लेने पर प्रतिबंध लगा दिया. बस फिर क्या था इस फैसले से सबसे ज्यादा राज्य में भाजपा के नेता ही भड़के हुए हैं और आरबीआई को कोस रहे हैं.

भाजपा के सांसद और राजकोट जिला सहकारी बैंक के चेयरमैन विट्ठल रादडिया कह रहे हैं कि इस फैसले से गांव के किसान बेहाल हो गये हैं, कहीं बाहर जाने के लिए उनके पास पैसे नहीं बचे हैं. ग्रामीण इलाकों में बदहाली हो गई है, रिज़र्व बैंक का ये तुगलकी फैसला है और इसकी भर्त्सना जरूरी है.

लेकिन आखिर ये फैसला लेने की जरूरत क्यों पड़ी, ये भी महत्वपूर्ण है. जैसे ही नोटबंदी के फैसले के बाद बैंक खुले तो अन्य बैंकों की तरह जिला सहकारी बैंकों में भी नोट बदलवाने और पुराने नोट जमा करवाना शुरू हुआ. गुजरात सरकार ने माना की कई जगह से ये फरियादें आने लगीं कि जिला सहकारी बैंकों में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार होने लगा है.
महत्वपूर्ण है कि ज्यादातर किसानों के बैंक खाते सहकारी बैंकों में ही होते हैं. आखिर उन्हें लोन वगैरह लेने के लिए गांव की सहकारी मंडली के पास ही जाना होता है. किसानों की कमाई पूरी तरह टैक्‍स फ्री है इसलिए इन बैंकों का उपयोग होने के आरोप लगे.

गौरतलब है कि राज्य की राजनीति में सहकारी मं‍डलियों का बड़ा रोल रहता है. इसीलिए राज्य के करीब 18 जिला सहकारी बैंकों में से ज्यादातर के चेयरमैन राजनीतिज्ञ ही हैं. 15 से ज्यादा के जिला सहकारी बैंकों के चेयरमैन भाजपा से जुड़े लोग और एक बैंक कांग्रेस के पास है. रिजर्व बैंक ने भी अफरा-तफरी में पहले गुजरात में फिर देश भर में इन सहकारी बैंकों पर प्रतिबंध लगाया.

महत्वपूर्ण है कि केंद्र के इस फैसले के खिलाफ मोदी की अपनी राज्य सरकार भी खड़ी नजर आ रही है. गुजरात के उपमुख्यमंत्री और वित्त मंत्री नितिन पटेल ने कहा कि हरेक छोटे छोटे डिस्ट्रिक्ट में भी कोऑपरेटिव बैंक हैं और उनकी शाखायें ज्यादातर गांवों में हैं और किसान लोगों के अकाउंट इन बैंक में हैं. ऐसे में रिजर्व बैंक को जो छानबीन करनी हो वो जल्द करके जितना जल्‍दी हो सके डिस्ट्रिक्‍ट कोऑपरेटिव बैंको को भी बैंकिंग कामकाज शुरू करने की मंजूरी मिलनी चाहिए.

भाजपा के लिए ये स्थिति धर्मसंकट की है क्योंकि एक तरफ इस पूरे फैसले को भ्रष्टाचार के खिलाफ बताया जाता है तो जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं उन बैंकों के काम जल्दी शुरू करवाने की भाजपा पैरवी कर रही है. लेकिन इस बीच किसानों की स्थिति मुश्किल होती जा रही है क्योंकि उनके खाते ज्यादातर इन बैंकों में हैं.

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