विदेश मंत्री एस जयशंकर ने आतंकवादी कृत्यों द्वारा अंतरराष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा के लिए खतरों पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की उच्च स्तरीय बैठक को संबोधित किया. उन्होंने कहा कि भारत, आतंकवाद से संबंधित चुनौतियों और क्षति से अत्याधिक प्रभावित रहा है. भारत मानता है कि आतंकवाद को किसी धर्म, राष्ट्रीयता, सभ्यता या जातीय समूह से नहीं जोड़ा जाना चाहिए. आतंकवाद के सभी रूपों, अभिव्यक्तियों की निंदा की जानी चाहिए, इसे किसी भी तरह न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता.
जयशंकर ने कहा कि कुछ ऐसे देश हैं जो आतंकवाद से लड़ने के हमारे सामूहिक संकल्प को कमजोर करते हैं, इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती. आईएसआईएस का वित्तीय संसाधन जुटाना और अधिक मजबूत हुआ है, हत्याओं का इनाम अब बिटकॉइन के रूप में भी दिया जा रहा है.
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विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद पहली बार आतंकवाद के बारे में भारत की चिंताओं पर बयान दिया है. उन्होंने न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को संबोधित करते हुए कहा, "चाहे अफगानिस्तान में हो या भारत के खिलाफ, लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे समूह भय के बिना और प्रोत्साहन के साथ काम करना जारी रखते हैं."
मंत्री ने कहा, "कोविड की ही तरह आतंकवाद भी है. जब तक हम सभी सुरक्षित नहीं हैं तब तक कोई भी सुरक्षित नहीं है... (लेकिन) कुछ देश हमारे सामूहिक संकल्प को कमजोर करते हैं." एस जयशंकर ने चीन पर भी निशाना साधा है.
28 जुलाई को चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने तियानजिन में मुल्ला अब्दुल गनी बरादर के नेतृत्व में एक तालिबान प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की. यह समूह आतंक के समर्थन के लिए जाना जाता था.
यी ने बैठक में कहा था, अफ़ग़ानिस्तान अफ़ग़ान लोगों का है, और इसका भविष्य अपने ही लोगों के हाथों में होना चाहिए. चीनी विदेश मंत्रालय ने उनके हवाले से कहा, "अफगानिस्तान से अमेरिका और नाटो सैनिकों की जल्दबाजी में वापसी वास्तव में अफगानिस्तान के प्रति अमेरिकी नीति की विफलता का प्रतीक है. अफगान लोगों के पास अब राष्ट्रीय स्थिरता और विकास हासिल करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है."
मंत्री ने यह भी कहा कि तालिबान "अफगानिस्तान में एक महत्वपूर्ण सैन्य और राजनीतिक ताकत है और देश की शांति, सुलह और पुनर्निर्माण प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की उम्मीद है."
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