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This Article is From Jul 12, 2014

कांठ की गांठ : एक खामोश लाउडस्पीकर का शोर

कांठ की गांठ : एक खामोश लाउडस्पीकर का शोर
मुरादाबाद से लौटकर:

6 जून, 2014 की गर्म दोपहर में मेरी कार मुरादाबाद से करीब 30 किलोमीटर दूर कांठ कस्बे की तरफ बढ़ रही थी। सड़क के दोनों ओर हरियाली का दिलकश नजारा था। कई किसान बगीचों से आम तोड़ रहे थे।

सामने एक बड़ा कस्बा दिखाई दिया, नजदीक पहुंचा, तो सड़क पर पुलिस की भनभनाती गाड़ियां और गश्त करती पुलिस दिखी। कई पुलिसवाले गमछा लपेटे गपशप कर रहे थे। उनके होंठ पान से सुर्ख लाल थे। सन्नाटे से भरे बाजार में आगे बढ़ता जा रहा था। दुकानों की शटर पर बड़े-बड़े ताले लटके हुए थे। ऐसे लगा, जैसे पूरा कस्बा खामोश है।

गाड़ी खड़ी कर कई लोगों से बात की। एक अधिवक्ता जो कोर्ट से लौटा था, मेरे कैमरे और माइक की जद में आ गया, बोला, "9 दिन से यह बाजार बंद है...यहां बैडेंज का कारोबार ठप पड़ा है...पूरे शहर में कहीं भी आपको दूध या सब्जी नहीं मिलेगी, अब या तो लाउडस्पीकर मिले, नहीं तो ये शहर ऐसे ही बंद रहेगा"।

जानकारी की तो पता चला की कस्बे की सैकड़ों दुकानें बंद होने से हर रोज करीब 50 लाख रुपये का नुकसान हो रहा है। एक दिन पहले ही यहां बीजेपी कार्यकर्ताओं और पुलिस में जबरदस्त भिड़ंत हुई थी, जिसमें इलाके के डीएम चंद्रकांत समेत 20 लोग घायल हो गए थे।

बीजेपी के कई सांसद और विधायकों को कांठ आने से पहले ही गिरफ्तार कर लिया गया था। गिरफ्तार होनें वालों में मुजफ्नगर दंगों के आरोपी संगीत सोम भी थे। वहीं पुलिस ने उपद्रव फैलाने के आरोप में 63 लोगों को गिरफ्तार किया। गिरफ्तार लोगों का आरोप था कि उन पर थाने में रात भर डंडे चले। ये सब उसी खामोश  लाउडस्पीकर का साइड इफेक्ट था।

कांठ से एक किलोमीटर दूर अकबरपुर चेंदरी गांव में 'लाउडस्पीकर महोदय' से मिलने मैं भी गया। गांव की गलियों में सन्नाटा पसरा था। गाड़ी की आवाज सुनकर कुछ लोग दरवाजे से झांके और फिर दरवाजे बंद हो गए। एक छोटे से शिव मंदिर में महंत होशियारनाथ अपनी चारपाई पर सो रहे थे। मंदिर के सामने पुलिस ही पुलिस थी।

मैंने महंत को हिलाया, अलसाई आंखों के साथ वह चारपाई पर बैठ गए। माइक लगाया, तो बोले, "पुलिसवाले आए और जबरन मंदिर के ऊपर लगा लाइडस्पीकर निकाल दिया, जबकि ये लाउडस्पीकर 14 साल से लगा हुआ था"। इस गांव में 80 फीसदी मुस्लिम, जबकि 20 फीसदी हिंदू रहते हैं।

पुलिस के मुताबिक गांव के लोगों में समझौता हुआ था कि मंदिर में जन्माष्टमी और महाशिवरात्रि पर ही लाउडस्पीकर बजेगा। कई सालों से ऐसा ही चल रहा था, लेकिन इस बार महंत ने तो लाउडस्पीकर उतार लिया, लेकिन 16 जून को मुरादाबाद से बीजेपी सांसद सर्वेश सिंह ने दुबारा एक नया लाउडस्पीकर लगवा दिया। इसकी शिकायत गांव के दूसरे समुदाय ने जब पुलिस से की, तो पुलिस एक्शन में आ गई और लाउडस्पीकर हटा दिया गया।

समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता की तरह बात कर रहे मुरादाबाद के एसएसपी धर्मेंद्र यादव का दावा है, "बीजेपी यहां माहौल खराब करने की फिराक में है...ये सब सर्वेश सिंह के इशारे पर हो रहा है और ये इसलिए हो रहा है क्योंकि ठाकुरद्वारा विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव होने हैं"।

सवाल ये हैं कि जब पुलिस को पूरी साजिश की कहानी पता थी, तो फिर इन नेताओं के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की गई। एसएसपी को इतना पता है, लेकिन ये पता नहीं कि उनके इलाके में एसडीएम कौन है। हंगामे के दौरान एसएसपी ने भीड़ में मौजूद अपने इलाके के एसडीएम की जमकर धुनाई की और फिर बाद में पहचान न पाने की बात कहकर 'सॉरी-सॉरी' बोलते रहे।

खैर, इलाके के सांसद सर्वेश सिंह से मिला। सांसद जी ने कहा, "मेरा इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है...मैं तो अकबरपुर चेंदरी गांव 30 साल से गया ही नहीं"। कमाल है सर्वेश जी कई बार विधायक बने, सांसद बने और 30 साल से गांव गए ही नहीं! वोट मांगने तो गए होंगे।

साफ दिख रहा था कि ये पूरा मामला हर किसी के लिए एक राजनीतिक एजेंडा है। 'समाजवादी' पुलिस और प्रशासन के लिए भी तथा बीजेपी के लिए भी। प्रशासन चाहता, तो बातचीत के जरिये गांववालों को समझा-बुझाकर मामले को वहीं खत्म कर सकता था। हालांकि पुलिस का दावा है कि गांव का कोई भी शख्स हंगामे में शामिल नहीं था, जो गिरफ्तार हुए वे भी कस्बे के बाहर के लोग थे।

मेरा मानना है कि कई मामले कानून से ऊपर होते हैं, खासतौर से आस्था और धर्म से जुड़े मामले और ऐसे मामलों में संयम और बातचीत से ही आगे बढ़ा जा सकता है। धीरे-धीरे अब यहां हालात सामान्य हुए हैं, लेकिन कुछ लोगों के लिए अभी भी मुद्दा जिंदा है, ऐसे में खामोश लाउडस्पीकर कभी भी बोल सकता है।

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