देश के 300 बड़े-छोटे मैन्युफैक्चरिंग यूनिट पर मंडरा रहा है कोरोना संकट का साया: FICCI

अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने की जद्दोजहद के बीच फिक्की ने देश की 300 छोटी-बड़ी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स के सर्वे में पाया है की वो अपनी क्षमता का सिर्फ 28% से 63% तक ही काम कर पा रही हैं.

देश के 300 बड़े-छोटे मैन्युफैक्चरिंग यूनिट पर मंडरा रहा है कोरोना संकट का साया: FICCI

प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली:

कोरोना संकट का साया देश के बड़े-छोटे मैन्युफैक्चरिंग यूनिट पर अब भी मंडरा रहा है. अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने की जद्दोजहद के बीच फिक्की ने देश की 300 छोटी-बड़ी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स के सर्वे में पाया है की वो अपनी क्षमता का सिर्फ 28% से 63% तक ही काम कर पा रही हैं. लॉकडाउन हटने और अनलॉक फेज शुरू होने के बाद भी मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर कोरोना संकट का साया मंडरा रहा है.

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करीब 2.5 लाख करोड़ की कुल टर्नओवर वाली देश की 300 छोटी-बड़ी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स के एक बड़े सर्वे में फिक्की ने पाया है कि अप्रैल से जून 2020 के बीच मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स अपनी क्षमता का सिर्फ 28% से 63% तक ही काम कर पाईं. इस दौरान इन यूनिट्स ने 33% से 57% तक ही वर्कफोर्स का डिप्लॉयमेंट किया. इसके साथ-साथ 85% मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स ने अगले 3 महीने में नया हायरिंग नहीं करने का फैसला किया है. सिर्फ 22% यूनिट्स का अगले 6 महीने में अपनी प्रोडक्शन कैपेसिटी बढ़ने की योजना है.

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अर्थशास्त्री टी हक ने NDTV से कहा, 'भारतीय अर्थव्यवस्था में कोविड-19 की वजह से डिमांड और सप्लाई दोनों की समस्या है. 100 % कैपेसिटी उपयोग कहीं नहीं है. कहीं वर्कर्स नहीं है, ट्रांसपोर्ट सिस्टम में अब भी अड़चने हैं. जब तक सप्लाई चैन सिस्टम ठीक से काम नहीं करेगा कोई नया निवेश नहीं करेगा.' 

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फिक्की की सर्वे में ये बात सामने आई है की उद्योग धंधों को फिर से शुरू करने के कारखानों और उद्यमों तक बुनियादी चीजें सही तरीके से नहीं पहुंच पा रही हैं. बाजार से पूंजी और कच्चा माल उठाना काफी महंगा हो रहा है, अर्थव्यवस्था में डिमांड को लेकर अनिश्चितता है, स्किल्ड लेबर की कमी है और वर्किंग कैपिटल का संकट भी बना हुआ है.

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अर्थशास्त्री मानते हैं कि अर्थव्यवस्था में डिमांड बढ़ाने के लिए सरकार और निजी क्षेत्र को स्पेंडिंग और बढ़ाना पड़ेगा. लोगों के हाथ में ज्यादा पैसा पहुंच सके इसके लिए गावों और सेमि-अर्बन इलाकों में  रोज़गार के अवसर पैदा करने होंगे और सोशल और फिजिकल इंफ्रास्ट्रक्चर को भी मज़बूत करना होगा. साफ है, चुनौती बड़ी है और हालात सामान्य होने में अभी काफी लंबा वक्त लगेगा. 

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