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This Article is From Apr 16, 2022

दिल्ली दंगों में UAPA एक्ट के तहत आरोप झेल रहे लोगों के परिवारों ने आपबीती सुनायी

‘स्टूडेंट्स इस्लामिक ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इंडिया (एसआईओ)’ द्वारा आयोजित इफ्तर में आसिफ इकबाल तन्हा और सफूरा जारगर भी शामिल हुईं. दोनों फिलहाल जमानत पर जेल से बाहर हैं.

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दिल्ली दंगों में UAPA एक्ट के तहत आरोप झेल रहे लोगों के परिवारों ने आपबीती सुनायी
2020 के दिल्ली दंगों में कम से कम 53 लोग मारे गए थे जबकि 200 लोग घायल हुए थे. (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:

दिल्ली में फरवरी 2020 में हुए दंगों के सिलसिले में कठोर यूएपीए कानून के तहत आरोप झेल रहे तमाम लोगों के परिवारों ने शुक्रवार को जुमे के लिए साथ बैठकर इफ्तर किया और आपबीती सुनायी कि कैसे परिवार के लोगों के आरोपी बनने पर उनकी जिंदगी बदल गयी है. ‘स्टूडेंट्स इस्लामिक ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इंडिया (एसआईओ)' द्वारा आयोजित इफ्तर में आसिफ इकबाल तन्हा और सफूरा जारगर भी शामिल हुईं. दोनों फिलहाल जमानत पर जेल से बाहर हैं.

दिल्ली दंगों के पीछे बड़ी साजिश के मद्देनजर पुलिस ने बड़ी संख्या में लोगों को गैरकानूनी गतिविधियां निषेध कानून (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार किया था. संशोधित नागरिकता कानून के पक्ष और विरोध में हो रहे प्रदर्शन के बीच 24 फरवरी, 2020 को उत्तरी-पूर्वी दिल्ली में दंगे भड़क गए और हालात काबू से बाहर हो गए. दंगों में कम से कम 53 लोग मारे गए जबकि 200 लोग घायल हुए. अपनी गिरफ्तारी के बाद परिवार के सामने आयी मुश्किलों के बारे में तन्हा ने कहा, ‘‘मेरी गिरफ्तारी के वक्त मेरे अम्मी-अब्बू झारखंड में थे. जब पुलिस ने मेरे परिवार को गिरफ्तारी के बारे में बताया तो मेरे अब्बू को दिल का दौरा पड़ गया. मेरी गिरफ्तारी के कारण मेरी बहन का निकाह टूट गया.''

उन्होंने कहा कि इन मुकदमों की सुनवाई जल्दी होनी चाहिए. तन्हा ने कहा, ‘‘हमोर मुकदमे के लिए विशेष अदालत होने के बावजूद इसमें इतनी देरी क्यों हो रही है? न्यायपालिका, सरकार और पुलिस को इसका जवाब देना चाहिए.'' तन्हा ने कहा कि न्यायपालिका को उन्हें जेल से छोड़ने में 13 महीने से ज्यादा का वक्त लग गया. उन्होंने सवाल किया, ‘‘....निचली अदालत में छह महीने से ज्यादा और उच्च न्यायालय में तीन महीने से ज्यादा का समय लगा. खालिद सैफी की जमानत याचिका छह महीने से ज्यादा वक्त के बाद खारिज हो गई. उन्होंने यह पहले क्यों नहीं किया?''

तन्हा ने इंगित किया कि ऐसे तमाम पत्रकार, राजनेता और कार्यकर्ता हैं जो सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ बोल रहे हैं. उन्होंने कहा कि अपना विचार रखने वालों और सरकार की कुछ नीतियों के खिलाफ बोलने वालों के खिलाफ वे यूएपीए लगा देते हैं, पहले टाडा हुआ करता था. अपने मामले में फैसले का हवाला देते हुए तन्हा ने कहा कि अदालतों ने खुद ही कहा है कि विरोध प्रदर्शन करना ना तो कोई गुनाह है और ना ही यह आतंकवादी गतिविधि है.

दिल्ली दंगों के सिलसिले में जेल गए मोहम्मद सलीम खान की बेटी सायमा खान कहती हैं, ‘‘अब्बू की गिरफ्तारी के बाद जीना दुश्वार है. उनका मुकदमा लड़ने के लिए हमें ऐसे कई कानून और अधिकार जानने पड़े, जो पहले पता नहीं थे. अब्बू को यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया था, इस कारण कुछ लोगों ने हमें आतंकवादी बना दिया.''

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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