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This Article is From Sep 25, 2020

क्या शव से भी COVID-19 फैलने का खतरा? ऐसे कई सवालों का जवाब तलाशेगा भोपाल AIIMS

भोपाल एम्स में जो अनुसंधान हो रहा है वो शायद कोरोना से होने वाली मौत और शवों के प्रति इस दृष्टिकोण को बदल सकते हैं कि मृतकों से संक्रमण फैल सकता है.

क्या शव से भी COVID-19 फैलने का खतरा? ऐसे कई सवालों का जवाब तलाशेगा भोपाल AIIMS
क्या कोविड मृतकों से फैलता है, क्या वैक्सीन रहेगी कारगर? भोपाल एम्स के रिसर्च से मिलेंगे कई सवालों के जवाब
Quick Take
Summary is AI generated, newsroom reviewed.
क्या मृतकों से फैलता है COVID-19?
क्या कोरोना वैक्सीन रहेगी कारगर?
भोपाल एम्स के रिसर्च से मिलेंगे कई सवालों के जवाब
भोपाल:

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में एम्स (AIIMS) में वैज्ञानिकों की एक टीम यह जानने के लिए एक शोध कर रही है कि क्या कोरोनावायरस (Coronavirus) संक्रमण के कारण मरने वाले लोगों के शरीर से भी लोग संक्रमित हो सकते हैं. पिछले कुछ दिनों में कई ऐसी खबर आई हैं, जिसमें संक्रमण के डर से मरीजों के परिजनों ने भी अंतिम संस्कार में हिस्सा नहीं लिया. संक्रमण के डर से मृतकों को अंतिम विदाई भी ठीक से नहीं दी गई. जुलाई में कर्नाटक के बेल्लारी से तस्वीरें आईं कि कैसे कोरोना संक्रमित आठ लोगों के शव को एक गड्ढे में फेंक दिया गया. 

हालांकि, भोपाल एम्स में जो अनुसंधान हो रहा है वो शायद कोरोना से होने वाली मौत और शवों के प्रति इस दृष्टिकोण को बदल सकते हैं कि मृतकों से संक्रमण फैल सकता है. एम्स-भोपाल (AIIMS-Bhopal) के निदेशक प्रोफेसर सरमन सिंह ने इस विषय पर एनडीटीवी से बातचीत की.

एम्स-भोपाल के निदेशक प्रोफेसर सरमन सिंह ने एनडीटीवी को बताया, "प्रारंभिक निष्कर्षों में शरीर की सतह पर वायरस की मौजूदगी या शरीर की सतह पर इसके गुणन की मौजूदगी नहीं है, जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुरूप ही है." उन्होंने कहा कि “हिस्टोपैथोलॉजी और अन्य विश्लेषण के प्राथमिक निष्कर्ष बताते हैं कि संवहनी प्रणाली ( वैस्कुलर सिस्टम) वायरस से सबसे ज्यादा प्रभावित होती है. इसके परिणामस्वरूप रक्त वाहिकाओं में जमावट और रिसाव होता है, जिसके परिणामस्वरूप घनास्त्रता (थ्रोम्बोसिस) शुरू हो जाती है, बहुत सारे मरीज़ों की थ्रोम्बोसिस से मौत हो रही है. मरीज़ ठीक होकर घर जा रहा है तो थ्रोम्बोसिस से उसकी मौत हो जा रही है. 

उन्होंने कहा कि मार्च की शुरुआत में केंद्र ने COVID-19 पीड़ितों के शवों को संभालने के लिए दिशानिर्देश जारी किए. उन दिशानिर्देशों में से एक है जो कहता है: "शव को रिसाव-प्रूफ प्लास्टिक बॉडी बैग में रखें, जिसमें हाइपोक्लोराइट घोल का इस्तेमाल होता है. 

प्रोफेसर सिंह ने एक और बात बताई, जो परेशानी का सबब बन सकती है, दरअसल कोरोना वायरस अपना रूप बदल रहा है, जो वैक्सीन बनाने वाले वैज्ञानिकों के लिये चुनौती बन सकता है. प्रोफेसर सरमन सिंह ने कहा कि कोरोना का वायरस तेजी से अपना रूप बदल रहा है जिसे वैज्ञानिक भाषा में म्यूटेशन कहते हैं. ये एक देश से दूसरे देश, या देश में भी ये रूप बदल रहा है ...ये बदलाव या रूपांतरण जेनेटिक तरीके से होता है. 

उन्होंने बताया कि करीब 1325 सैंपल, जो उन्होंने देखे उनमें 88 से ज्यादा में वायरस बदला हुआ मिला. ऐसे में एक वैक्सीन (Vaccine) जो सारे रूपों पर प्रभाव डाले, उसकी ज़रूरत है. इसलिये इसमें वक्त लग सकता है. एक वैक्सीन, जो आज प्रभाव में है, वो हो सकता है 6 महीने, 3 महीने बाद प्रभावी ना रहे जो आज असरदार है. 

भोपाल के एम्स में कोरोना संक्रमितों पर माइक्रोबैक्टीरियम-डब्ल्यू दवा के ट्रायल के नतीजे भी उत्साजनक रहे हैं, कुष्ठ रोगियों को दी जाने वाली ये दवा गंभीर मरीज़ों को भी दी गई, जो काफी असरदार रही. अब संस्थान ये जानने की कोशिश कर रहा है कि क्या इसे स्वस्थ लोगों को दिया जा सकता है, जिससे उनमें असर हो सके. भारत में कोरोनोवायरस संक्रमण के कारण 92,000 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है.

वीडियो: कोरोना का दोबारा संक्रमण पहले वाले से ज्यादा खतरनाक

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